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अल्बर्टो
ने हर्षा के हाथ को अपनी मुट्ठी में लेते हुए कहने लगा: "हम सब-कुछ भूल जाएंगे,
सोचकर तो दिल्ली छोड़कर यहाँ आए थे, हाना, मगर ऐसा लग रहा है जैसे दुख हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा। फिर स्वर्ग की दहलीज पर बैठकर हमें दु: ख की बात क्यों करनी चाहिए,? क्या
तुमने फ्रीडा, मैक्सिकन कलाकार का नाम सुना है? वह तुम्हारी तरह विषाद की देवी थी। उसके जीवन में दर्द के सिवाय कुछ भी नहीं था। फिर भी
वह अपने जीवन की हर क्षण को अपने दिल से उपभोग करना चाहती थी। क्या वह उन सभी चीजों को संभाल कर रखती थी जिसे दुनिया में दुःख कहा जाता है? "
"अल्बर्टो, मैं भी दुखों से परे जाना चाहती हूं, उन सभी रातों के बुरे सपने को भूलना चाहती हूँ। मगर मैं तो कलाकार नहीं हूँ, जो
तूलिका से रंग भरकर अपने वेदना-बोध
को चित्रित कर दूँ।
"
ऐसा लगा रहा था कि वे दोनों ठंड में कांप रहे थे। आपस में एक-दूसरे के
हाथ रगड़कर एक-दूसरे
को गर्मी देना चाहते थे; इसी तरह
वे एक-दूसरे
को सांत्वना दे रहे थे। ऋषिकेश की नदी के किनारे वे बैठे हुए थे। यहां दिल्ली की कोई भीड़-भाड़ नहीं, कोई शोरगुल नहीं, राजनीति सरगर्मी नहीं, कोई धूल-धंगड नहीं है, कोई नारेबाजी नहीं, कोई पुतली-दहन नहीं, कोई आतंकवाद नहीं है और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार। चारों तरफ निर्मल शांति।
अल्बर्टो
ने कहा: "उस बड़े पर्वत की तरफ देखो, यह तुम्हारे शिव की तरह सुंदर और कमनीय है और यह बहती हुई गंगा नदी शक्ति का प्रतीक है।यहां मानो सृष्टि का महामिलन हुआ हो ।"
हर्षा
अल्बर्टो की भावुकता देखकर आश्चर्यचकित
थी। एक
विदेशी के मुंह से शिव और
शक्ति का चित्रण! "अल्बर्टो, उस पहाड़ के ऊपर देखो, जिसका
शिखर बादलों से आच्छादित है। क्या कहीं तुम्हारे बुद्ध गहरे ध्यान में तो नहीं बैठे है?"
दोनों सहजता से हंसने लगे। जैसे यह हंसी गंगा के प्रवाह के
साथ-साथ कुछ दुःखों को बहाकर ले जा रही हो। घाट के इस तरफ इतनी भीड़ नहीं थी। फिर भी दो-तीन पंडे घूम रहे थे। उनकी उपस्थिति इतनी विशाल प्रकृति के सामने तुच्छ लग रही थी।अल्बर्टो ठीक ही कह रहा था कि वे लोग वास्तव में स्वर्ग की दहलीज पर पहुंचे हैं। वे बैठे रहे, तभी
एक कार
थोड़ी दूरी पर रुक गई। कुछ समय बाद कार से कुछ मोटे आदमी और औरतें उतरी। चेहरे से वे राजस्थानी लग रहे थे।
उन्हें देखकर ज़ोर से मंत्रोंच्चारण करने वाले
दोनों पंडों में प्रतिस्पर्धा
शुरू हो गई कि कौन इन नए तीर्थयात्रियों के पास पहले पहुंचे। फिर उनमें जो वयस्क था,उसके
नेतृत्व में पूरा दल 'घाट' की ओर बढ़ा। फिर शुरू हुआ स्नान,
तिल-तर्पण और पिंडदान प्रक्रिया।
"क्या
वे 'माँ गंगा की पूजा कर रहे हैं?” अल्बर्टो
ने उत्साह से पूछा।
"नहीं, अल्बर्टो, वे अपने पितृ-पुरुषों को पिंडदान दे रहे हैं। पितृ-पुरुषों का मतलब दिवंगत आत्माएँ।
क्या तुम
जानते हो कि
हिंदू धर्म और दर्शन में आत्मा अमर है? "
"हाँ, मुझे
पता है, मगर इन परंपरागत मान्यताएं अर्थहीन हैं। मैंने सुना है कि आत्माओं को चावल, कपड़ों का दान दिया जाता है। मगर मरा हुआ आदमी इन प्रसादों को कैसे स्वीकार करेंगा? वास्तव
में, हाना, मैं यह देखकर हैरान हूं कि भारत में शंकर जैसे दार्शनिक, बौद्ध धर्म का उत्पत्ति-स्थल होने के बावजूद
लोग इन
सब बातों पर कैसे विश्वास
करते है? शंकर मेरे प्रिय दार्शनिक है, बुद्ध
मेरा लक्ष्य है और हिंदू धर्म की कहानियां और किंवदंतियां मुझे तृप्ति देती हैं। फिर भी मुझे स्पिनोजा के देवता पर अधिक
विश्वास है। "
"यह
स्पिनोज़ा कौन है? इसके अलावा, बौद्ध
होने के कारण तुम्हारा
स्पिनोजा के देवता पर विश्वास क्यों है?
"
"स्पिनोजा
एक यहूदी था।उनके अनुसार पूरी दुनिया एक ही नियम से चलती है और उस नियम से परे कोई भगवान नहीं है। इसलिए तुम उस नियम को भगवान कह सकती हो। मगर एक बात निश्चित है कि इस नियम में भी ऐसी कोई ताकत नहीं है कि जिसे बुलाने पर बारिश कर देगी या तुम्हारे मांगने पर
तुम्हें वांछित
फल दे देगी। इन
दृष्टिकोणों से तुम उसे तटस्थ कह सकते हो। आइंस्टीन भी स्पिनोजा के भगवान में विश्वास करते थे। मुझे लगता है स्पिनोज़-दर्शन भारतीय-दर्शन की तुलना
में अधिक तार्किक है। इसके
अलावा,यह अधिक
विश्वसनीय भी है।"
"अल्बर्टो, तुम एक या दो ऐसे दार्शनिकों को पढ़कर भारतीय दर्शन भंडार को कमतर नहीं आंक सकते। यहाँ विभिन्न मतवालों का अलग-अलग समय में प्रादुर्भाव हुआ है। तुम्हारा स्पिनोजा हमारे कनाद जैसा मुझे लगता है। कनाद वैदिक काल के एक संत थे। उन्होंने केवल चावल के कणों को खाकर भगवान शिव की उपासना की थी और सिद्धि प्राप्त की थी, इसलिए उनका नाम ‘कनाद’ पड़ा। उन्होंने स्पिनोज़ा की तरह कहा कि भगवान केवल मूक दर्शक हैं। उसका सृजन-प्रक्रिया से कोई लेना-देना नहीं है। दुनिया अदृश्य परमाणुओं से उत्पन्न हुई है और इसकी गतिविधियां चलती रहती हैं। परमाणुओं के संयोजन से सृष्टि का निर्माण और उनके विखंडन से प्रलय होता है। मेरा मानना है कि कनाद स्पिनोजा से बहुत पहले पैदा हुए है।”
अल्बर्टों ने मुस्कराते हुए कहा, “क्या तुम्हें गुस्सा आ रहा है? मेरा तुम्हें दुख पहुंचाने का इरादा नहीं था और न ही तुलना करना मेरा उद्देश्य था। यदि तुम्हें मेरी बातों से
दुख पहुंचा है तो मुझे बहुत खेद है। मुझे बताओ, कनाद के बारे में मुझे अध्ययन-सामग्री कहां से मिलेगी? तुम्हें सुनने के बाद मेरी उनके बारे में जानने की इच्छा पैदा हो गई है। क्या तुम्हें पता है कि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण चीज क्या है? "
"क्या?"
"जिस वजह से मैं तुम्हें प्यार
करता हूँ। मुझे लगता है कि तुम मेरे जीवन का एक अनमोल उपहार हो।"
"नहीं, अल्बर्टो, मैं नहीं बता सकती कि कनाद के बारे में तुम्हें कहाँ से जानकारी मिलेगी। तुम्हारे पास एक बड़ी लाइब्रेरी है, तुम वहां से या अपने सहयोगियों से परामर्श कर बेहतर और अधिक जानकरी प्राप्त कर सकते हो। मुझे याद नहीं है मैंने उनके बारे में कब और कहाँ पढ़ा था। वास्तव में, हम भारतीय चन्दन के प्रलेप
की तरह आध्यात्मिकता को हमारे
शरीर पर लगाते हैं। चाहे, वह पढ़ा-लिखा या अनपढ़ हो, वह दर्शन के बारे
में कुछ-न-कुछ जानता है। सबसे बड़ी बात यह है अल्बर्टों कि हम ईश्वर को विश्वास में खोजते हैं, तर्क-वितर्क में नहीं। सभी तर्कों और वैज्ञानिक मतों से परे रहस्य
की एक दुनिया है, जहां तक हम अभी तक नहीं पहुंच पाएहैं। 'निर्वाण' या 'मोक्ष' की तरह रहस्यमय है।"
अल्बर्टो हर्षा को मुग्ध नेत्रों से देखने लगा। मेरी असली हाना कहाँ है?वाग्मिता से
परिपूर्ण अथवा पहले वाली जीवन युद्ध में हारी हुई विषादग्रस्त। क्या वही लड़की है? वास्तव में दोनों रूपों में
अद्वितीय।
अंधेरा होने लगा था। मलिन आसमान में फीका चाँद दिखने लगा था। धीरे-धीरे यह जगह निर्जन होती जा रही थी । बहुत दिनों से हर्षा की ऋषिकेश आने की इच्छा थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने से पहले
अपने दोस्तों के साथ यहाँ आने के बारे में सोचकर रखा था
उसने। मगर अचानक अल्बर्टो ने उसके पास यह प्रस्ताव रखा।'नवमी' के दिन उनके अपनी जगह लौटने पर हर्षा की मां ने उसे फोन
किया: "तुम्हारे ससुराल वाले फोन पर पूछ रहे थे कि तुम पूजा पर घर आ रही हो या नहीं? इतनी बड़ी दुर्गा
पूजा चली गई, मगर तुम्हारी बेटी नहीं आई ? ऐसा क्या पढ़ रही है? या पत्रकारिता कर
रही है। घर की बहू सड़कों पर रिपोर्टर बनकर घूमेगी? वह छोटी बच्ची है, मगर आप लोगों ने तो दुनिया देखी है, आप लोग तो उसे रोक सकते थे। बहू ने अपने पति को छोड़ दिया है इसलिए वह अपना चेहरा नहीं दिखा पा रही हैं।लोगों ने इधर-उधर की बातें करना शुरू कर दिया है। "
हर्षा अपनी मां से बातचीत करने के बाद बहुत रोई थी। उसके माता-पिता को उसके कारण कष्ट हो रहा है, लोग उन्हें दोषी
ठहरा रहे हैं। बुरे दिन अभी तक उसका
पीछा नहीं छोड़ रहे थे। उसे बहुत
अकेलापन महसूस हो रहा था। उसकी इच्छा हों रही थी कि वह किसी अनिर्दिष्ट सड़क पर जाकर कहीं
खो जाए।
उस समय अल्बर्टो का फोन आया।
"हाना, मैं ऋषिकेश जा रहा
हूं। तुम्हारी छुट्टियां हैं; क्या तुम मेरे साथ जाओगी ?"
अगर यह कोई दूसरा दिन होता तो हर्षा यह कहकर टाल देती:
"क्या तुम्हें लगता है कि यह यूरोप है? मैं तुम्हारी सहेली बनकर आश्रमों और मठों में घूमती रहूँ ?हम लोग कुछ समय के लिए अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, इसका मतलब यह नहीं
है कि तुम मुझे दिल्ली से बाहर जाने के लिए आमंत्रित करोगे और मैं सब-कुछ छोड़कर पागल की तरह तुम्हारे पीछे चली जाऊंगी। मैंने बहुत जमाना देखा है, अल्बर्टो। "
मगर हर्षा ने ऐसा नहीं कहा। इसके विपरीत, उसके मन में पाप या पुण्य, अच्छे और बुरे का ख्याल नहीं आया। यहां तक कि उस वक्त अगर
रावण आकर बुला देता,तो भी वह लक्ष्मण -रेखा पार कर चली जाती। जबकि, अल्बर्टो उसका दोस्त है, उसका प्रेमी है।
"क्या हुआ, हाना?" तुम्हारे मन में
क्या चल रहा है? " उसने कहा:" तुम देखोगी, कुछ देर बाद चाँद और उज्ज्वल होगा, गंगा चांदनी रात में मनमोहक लगेगी। कुछ और समय हम बैठेंगे , फिर चले जाएंगे, तुम क्या कहती हो? "
हर्षा ने दीर्घश्वास छोड़ी :"जैसी तुम्हारी इच्छा।" मानो जगह बदलने के बाद भी दुःख लगातार उसका पीछा कर रहे थे। किसी चोर की तरह
किसी भी फांक से घुस जा रहे थे। एक पल में सभी सुख लूटकर चले जाते थे।
अल्बर्टो ने हर्षा की पीठ पर अपना हाथ रख दिया और उसे अपने करीब लाया:"ऐसा
लगता है कि मेरी उपस्थिति का कोई मूल्य नहीं है, अन्यथा तुम अपने
प्रेमी के बाहों में दुख के दिनों का स्मरण
कर पाती ? हाना, मेरी प्यारी हाना, मेरी प्यारी मत्स्य-कन्या, मैं तुम्हें फ्रीडा के बारे में बता रहा हूँ, ध्यान से सुनो। फ्रीडा नाटी थी,मगर उसके पति डिएगो का शरीर सुडोल था, लोग मजाक में उन्हें हाथी और चींटी की जोड़ी कहते थे। वे दिखने में भी सुंदर नहीं थे।
जब
फ्रीडा छह वर्ष की थी, तब उसे पोलियो हो गया था। उसका दायाँ पैर बचपन से बहुत कमजोर हो गया था। जब वह अठारह साल की हुई, तब एक बस दुर्घटना में रीढ़ की
हड्डी समेत ग्यारह
जगहों पर फ्रेक्चर हुआ था। दायां पैर तो पूरी तरह से टूट गया था। वह महीनों-महीनों तक प्लास्टिक कवर के भीतर सोती रहती थी । उस समय उसने अपने जिंदा रहने की आशा खो दी थी। मगर चमत्कारिक रूप से
वह बच गई, पूरे
शरीर में निशान-ही-निशान और दर्द
लेकर। उसे
जीवन में तीस बार ऑपरेशन करना पड़ा। दर्द से राहत पाने के लिए उसके पास शराब, ड्रग्स और सिगरेट का सहारा लेने के
बजाय और कोई
विकल्प नहीं था। फिर भी उसके जीवन में एक
जबरदस्त उत्साह था। अच्छा,हाना,तुम्हारी शादी कितनी उम्र में हुई थी? अठारह या उन्नीस में? "
"उन्नीस
वर्ष में," हर्षा ने कहा।
"ओह, हाना, डिएगो
के साथ उसकी शादीशुदा जिंदगी बिल्कुल अच्छी नहीं थी। उसका वैवाहिक जीवन
आँधी- तूफान वाला था। पीड़ादायक। गर्भपात। पति के साथ वैचारिक मतभेद। उसका नाम बदनाम होने वाला था। मगर वह निराश नहीं हुई थी। चित्रकारी उसकी 'साधना' थी; और कला के लिए चाहिए प्रेम। फ्रीडा की कुरूपता, प्रेमहीनता, अभाव और यंत्रणा के बावजूद भी बहुत सारे प्रेमी थे। प्रसिद्ध
कम्युनिस्ट नेता नीयन ट्रॉट्स्की से लेकर फोटोग्राफर निकोलस मूरे सभी उसके पाँव पड़ते थे । मगर क्या तुम जानती हो, कुछ
लोगों को संदेह है कि फ्रीडा ट्रॉट्स्की की हत्या में शामिल थी? ऐसा
इसलिए है उसकी हत्या के बाद वह स्टैलिन को बहुत पसंद करने लगी, जो ट्रॉट्स्की
का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी और दुश्मन था। मगर तुम्हें पता है कि मुझे क्या लगता है? ये सब
झूठ हैं। उनके विरोधियों द्वारा फैलाई हुई अफवाहें है। फ्रीड़ा जैसी प्रेमिका कभी भी ऐसा काम नहीं कर सकती। हाना, हालांकि यह अविश्वसनीय लगता है, उसने
अपनी विख्यात पेंटिंग 'गोडेस' का चित्रांकन तब
किया, जब वह ट्रॉट्स्की के साथ संभोग कर रही
थी।”
हर्षा मंत्र-मुग्ध होकर अल्बर्टो से फ्रीडा के जीवन की कहानी सुन रही थीं। हर्षा को उस महान रहस्यमयी व्यक्तित्व को देखने की इच्छा हो रही थी I
: फ्रीडा बिल्कुल सुंदर नहीं थी। उसकी नाक के नीचे पतली नीली मूंछें थी।
उसकी भौहें जुड़ गई थी। उसने अपनी कुरूपता को अपने चित्रों में आँकने में कभी भी झिझक नहीं की थी। "क्या तुम्हें लगता है कि उसका इतने सारे लोगों से प्यार करना एक छल था ? तुम तो एक औरत हो, बहुत अच्छी तरह से समझ सकती हो। "
"नहीं, नहीं, अल्बर्टो, प्रेम में छल-कपट कभी भी हृदय को सर्जनशील
नहीं बना पाता है। वह निश्चय एक महान प्रेमिका थी; वास्तव
में प्रेममयी।
"
"हां, तुम सही
कहती हो, हाना, केवल छल-कपट रहित प्रेम
ही रचनात्मक
हो सकता है, अगर छल-कपट है तब संभव नहीं है। उसके प्रेमी उसे ‘गोडेस’ कहते थे। सेक्स
और पेंटिंग से उसे इतनी प्रसिद्धि मिली कि सुंदर मडोना की लोकप्रियता भी उसके साथ प्रतिस्पर्धा करने में नाकाम
रही।"
"
मगर इतनी बड़ी विदुषी की मौत
बहुत दर्दनाक हुई थी। उसका पैर सूज गया था। डॉक्टरों ने सलाह दी कि पैर काटना पड़ेगा। फ़्रीडा प्यार की देवी थी, सैक्स की देवी
थी; पैर कटवाने से पहले ही उसने आत्महत्या कर ली। पता है; हाना, उसने
आत्महत्या करने से पहले अपने नोट में क्या लिखा था?
'आई होप द एक्ज़िट विल होपफुल एंड आई होप
नेवर टू रिटर्न।' फ्रीडा को अपने जीवन में कुछ नहीं मिला, मगर
मानव-सभ्यता को बहुत कुछ दे गई। मनुष्य ऊर्जा का स्रोत है,हाना। फ्रीडा के जीवन में तो दुखों की कमी नहीं थी ? फिर
क्या
उसने जीवन जीना छोड़
दिया? पता नहीं कैसे,
तुम्हारी जिंदगी फ्रीडा
के साथ मेल खाती हैं। चेहरे से या व्यक्तित्व से, मगर है तो निश्चित। "
हर्षा ने एक दीर्घ-श्वास छोड़ी। अल्बर्टो ने उसे कसकर पकड़ लिया। नहीं, और दीर्घश्वास नहीं।
और निराशा नहीं। कभी हमने जीवन में बुरे सपने देखे थे तो क्या आज हमे जीवन जीना छोड़ देंगे ? नहीं, मेरी हाना, नहीं।
हर्षा
अल्बर्टो के प्यार में पूरी तरह से डूब गई थी। अगर किसी को ज़िंदगी में क्या चाहिए, अगर
दुर्दिनों में कोई अपने बांह फैलाकर उसे निर्भय आश्रय प्रदान करें ? अल्बर्टो
उस समय उसे सबसे
प्यारा इंसान लग रहा था। अब लता की तरह लोटने में कोई पछतावा नहीं लग रहा था, न ही कोई पश्चाताप और न ही अपराध-बोध। साठ या सत्तर साल के इस जीवन में
बहुत ही कम रंगीन तितलियों की तरह खुशियाँ हाथ में आती है।उन सुखों को मुट्ठी में बांधकर रखना उचित है
।
चाँद गंगा की छाती पर
चमक रहा था। सम्पूर्ण वातावरण आकर्षक था। हर्षा की इच्छा हो रही थी कि वह अल्बर्टो
के साथ इस चांदनी रात में स्वर्ग के गंधर्व और अप्सरा की तरह नृत्य करें। उसने
अल्बर्टो की गोद में अपना सिर रखा। अपनी उंगलियों से उसके बालों को सहलाते हुए वह
कहने लगा: " चलें, हाना? देखो,
चारों तरफ कैसे निर्जन हो
गया है और यहां बैठना सुरक्षित नहीं है।
मैं नहीं चाहता कि ऐसी कोई अप्रिय घटना घटे, जिसके लिए मैं
जिम्मेदार बनूँ। "
"क्या तुम्हारा मन इस चांदनी रात में तैरने का नहीं हो रहा
हैं?"
"किसने कहा? यदि मैं सुरक्षा वलय तैयार कर पाता,अगर मेरे अंदर ऋषि विश्वामित्र की तरह स्वर्ग पैदा करने की क्षमता होती , तो तुम देखती मैं तुम्हारे लिए कैसा स्वर्ग बनाता। वहां सदैव चांदनी रात
होती।वलय भेद कर शैतान की कभी वहां प्रवेश करने की हिम्मत नहीं होती। वहाँ पक्षी
सदा गायन करते। न तो भूख लगती और न ही प्यास। हम बारहमासी नदी की तेजस्वी छाती पर
नौका-विहार करते। "
अल्बर्टो के माथे पर बड़ी-बड़ी लकीरें दिखाई दे रही थीं, जबकि उस समय वे अदृश्य हो गई। मानो उसने जिस दार्शनिक
अल्बर्टो से मुलाक़ात की थी, वह नहीं है, मगर उसका प्रेमी एल्बी है।
"हे, एल्बी, मेरी प्यारे
स्वप्नहार, बहुत हो गया। पृथ्वी पर लौट आओ। मुझे डर लग रहा
है। ऐसे सपने मनुष्य के भाग्य में नहीं है।"
दोनों होटल में लौट आए, हाथ में हाथ डालकर।अल्बर्टो ने कमरे की खिड़की
खोली।ठंडी-ठंडी हवा के साथ चाँदनी कमरे में घुस आई। हर्षा खिड़की के पास कुर्सी
लेकर बैठ गई। पर्दा हटाया। चांदनी बिस्तर पर पसर रही थी।
ऐसी मायावी रात में भी वह आदमी मानो सुरंग खोदकर छत के ऊपर वाले
कमरे में घुस आया। हर्षा को अपने डरावने दाँत और नुकीले नाखूनों से डराने लगा।
अदृश्य मकड़ी की जाल में एक चालाक शिकारी
की तरह उसे उलझा दिया।
अल्बर्टो पहले से बिस्तर
पर फैलकर सो गया था। उसने कहा, "यू आर लुकिंग ब्युटीफूल माय स्वीट हार्ट। यू
आर लुकिंग लाइक ए गोल्डन स्टेचू। आई वांट टू टच यू। मे आई?”
दुख क्यों हजारों दरवाजे
खोलकर पहुँच जाता है,अल्बी ? उसने उन स्वर्गीय क्षणों को
क्यों छीन लिया? 'मुझे नहीं पता है, इस
समय वह राक्षस पहुंच जाएगा और मुक्का मारकर तुम्हारे होंठ फाड़ देगा। तो मैं क्या
करूंगी ? मुझे नहीं पता कि मैं तुम्हारी रक्षा के लिए ढाल बन
पाऊँगी या नहीं। जब मैं उस आदमी से दूर चली आई और पुरी में थी, तो मुझे डर नहीं लग रहा था। जब मैं पुरी से दिल्ली
आई तो भी मुझे इस तरह का डर नहीं लगा था, अचानक मुझे इतनी
घबराहट क्यों लगने लगी। नहीं, मैं इस कारण से डरी हुई नहीं
हूं कि मुझे उस आदमी ने मारा था। मैं भयभीत इसलिए थी कि वह किसी भी क्षण मेरी
मुट्ठी से सभी आनंदमय क्षणों को लूट लेगा,जिसे मैंने करोड़ों
के खजाने की तरह संभाल कर रखा है। अगर कल वह आदमी मुझे अदालत में घसीट लेता है,
तो क्या मैं वकीलों के अश्लील सवालों का उत्तर दे पाऊँगी ? '
अल्बर्टो आधा सोया हुआ था। उसने कहा: "दुःख को इस तरह खींचकर
जगह ने दें। याद रखना कि दुःख शैतान की संपति है।" उसने उठकर हर्षा को गले
लगाते हुए कहा:"मेरी सुनहरी तितली, तुम मुझे
अपने होंठ समर्पित कर दो। मुझे तुम्हारे सारे दुखों को चूसना है। तुम अपनी मेघवर्णी आँखें खोलो।मैं तुम्हारे
आँखों की सारी बारिश-बूंदों को चाटना चाहता हूं। "
हर्षा ने सामने आईने में देखा, वे दोनों स्वर्ग से निष्कासित गंधर्व और अप्सरा की
तरह दिखाई दे रहे थे। अल्बर्टो की गर्म सांस उसके गाल और माथे को स्पर्श कर रही
थी। बसंत की मलय पवन की तुलना में यह पवन अधिक प्रेममय और उत्तेजक थी। सभी
इंद्रियों ने अपने दरवाजे एक के बाद एक खोलना शुरू किया। मन ने उसे अपने मायावी
बंधन से मुक्त कर दिया था: "मैं तुम्हारे शरीर की सुगंध में खो जाना चाहता
हूँ,हाना, मैं बार-बार अवगाहन करना चाहता हूं, हे मेरी
योजनगन्धा, हे मेरी विषादेश्वरी फ्रीडा!
चारों तरफ घिर गए थे जैसे बादल
अंधेरा छा गया था सारे आसमान में
जैसे
कहीं घनघोर बारिश हो रही हो
दस दिशाएँ ,
हुलसित हवा
टिपटिप बारिश की बूंदें
देखते-देखते ही गीली हो गई
सूखी मिट्टी
सौंधी गंध से आकर्षित मन
मुग्ध हृदय
कहाँ वह छुपाएगी खुद को ?
कहाँ है वह चारदीवारी और छत ?
जहां होगा माँ की गोद का आश्रय
अब इस घने जंगल को छोड़कर
क्या जा पाएगी वहीं, कहीं दूर बचपन में
जहां वह खुद छुपा पाएगी
बारिश में भीगी इस मिट्टी की सुगंध को ?
देखते-देखते ही निरंतर बारिश ने भिगो दिया
उसका तन-मन, उसे किसी का डर नहीं
न ओलों का,न बिजली का
यह जंगल छोड़ने का मन नहीं है उसका
वह महसूस कर पाई एक बूंद बारिश कैसे
उसके अंतर्वस्त्र से होकर निकल गई चुपके से
निकल गई उसके दोनों कोमल फूलों के ऊपर से
अनजाने अपना स्पर्श देकर
जब आँखें खुशी में बंद हो रही थी
एक और बारिश की बूंद ने उसे आवेशित किया
प्रेम-माया हो गया मानो उसका शरीर
कुछ समझने से पहले उसने
खो दिया था अपना नियंत्रण
निस्तेज होते हुए उसने जान लिया था
वह सिर्फ जल-मग्न हो चुकी, और कुछ नहीं
जल ही जल, उसकी नसों में, धमनियों में
जल
न कुछ करने का था
न कुछ कर पाई।
अल्बर्ट के होठों पर संतोष की मुस्कान थी। हर्षा चकित थी। यह कैसा है
मैजिक … ? उसकी
नजरों से विषाद कहाँ गायब हो गया? थकावट? पश्चाताप? वह हैंगओवर
कहाँ गया ? उसके अंतकरण का शून्य भाव ? क्या यह वही अल्बर्टो है, जो तूफान से बिखरे पंखों
वाले पक्षी की तरह कभी बिस्तर पर एक दयनीय
स्थिति में पड़ा हुआ रहता था? क्या यह वही अल्बर्टो है, जिसने कहा था, " आई मेक लव एंड सेक्स विथ पार्सीमानी ?"
बल्कि वह सुख का पन्ना बदल कर बाहर आ गई थी। "अल्बी"।
"हां, मैं तुम्हें
सुन रहा हूं। मैं तुम्हें हर हालत में खुश देखना चाहता हूं। मेरी राजकुमारी,
मैं तुम्हें सब-कुछ देना चाहता हूं, जो
तुम्हें कभी नहीं मिला। "
"तुम मुझे, एल्बी क्या दे सकते हो? कुछ
गुप्त अंतरंग क्षणों को छोड़कर? क्या तुम मुझे अंजुली भर
जीवन दे सकते हो ? क्या तुम हमारे संबंधों को मान्यता दे
सकते हो? नहीं, यह संभव नहीं हैं।नहीं, कभी
नहीं। हम अपनी सीमाओं को फांद नहीं सकते हैं। मुझे तुम्हारा यह थोड़ा-सा पल नहीं
चाहिए, मुझे चाहिए फसलों से भरी हुई पूरी क्यारी।अल्बर्टो!
मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती हूं। "
"हाना, तुम बहुत ही पजेसिव हो। तुम मुझे भी पजेसिव करने
लगी हो। मुझे लगता है कि प्राच्य लोग अपने रिश्तों में अधिक पजेसिव हैं?जब हम एक अच्छी फिल्म देखते हैं, तो हम फिल्म की
दुनिया के पात्रों में जीने लगते हैं,कुछ समय के लिए;
उस समय हम अपने अस्तित्व को भूल जाते हैं, ठीक
उसी तरह हम कुछ समय के लिए अपने दुःखों को भूल जाएँ। "
ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने एक पिन चुभाकर हृदय को छेद दिया हो।
चारों ओर खून के छींटे। हर्षा ने पूछा, "क्या तुम अभी तक प्यार का अभिनय कर रहे थे, जिसे मैं सच
मान रही थी?"
"नहीं, मैं अभिनय नहीं कर रहा था। परंतु ...."
"परंतु?"
"नहीं; मैं तुम्हें समझा नहीं सकता। यह पूर्व और पश्चिम
की मानसिकता का फर्क है। "
"अल्बर्टो, तुम क्या
कहना चाहते हो? कुछ समय पहले तुमने कहा था कि तुम मुझे पूरी
तरह से खुश देखना चाहते हो। "
"अब भी मैं यही चाहता हूँ ।"
"तुम्हें समझना बड़ा मुश्किल है। किसी भी जटिल अंक की तुलना
में तुम्हारा मन अधिक अस्पष्ट और रहस्यपूर्ण है। तुम्हारे मित्र तुम्हें 'फ्रायड' नाम
से बुलाते थे I तब तो तुम मनुष्य के मन को बहुत अच्छी तरह से
पढ़ सकते हो। क्या तुमने कभी अपने मन का अध्ययन किया है? "
अल्बर्टो हँसने लगा: "हां, मैंने अपने स्कूल के दिनों में फ्रायड की पूरी
किताबें पढ़ी हैं। यही कारण है कि मेरे दोस्त मुझे 'फ्रायड'
के नाम से संबोधित करते थे, मगर मुझे समझ में
नहीं आ रहा है कि मेरा दिमाग तुम्हें जटिल क्यों दिखाई देता है? इसके अलावा, यह मेरी समझ से परे है कि तुम मुझसे
क्या चाहती हो ? मगर यह सच है कि मैं तुम्हारे पास केवल अपनी
भूख मिटाने नहीं आया हूं। हम दोस्त बने रह सकते हैं, भले ही, हमारे बीच कोई शारीरिक संबंध स्थापित न हो। "
" सार्त्र का शिष्य हो ? सभी दार्शनिक ऐसे ही होते हैं? "
"तुम मुझे सार्त्र का शिष्य कह रही हो। पर क्यों ?"
"तुम दोनों पलायनवादी हो। अभी तुमने मुझे बताया था कि पूर्व
के लोग बहुत ही पजेसिव होते हैं, पश्चिम में नहीं । क्या तुम नहीं जानते कि सार्त्र
और सिमोन के बीच क्या हुआ? सिमोन का पहला प्रेमी सार्त्र था।
किसी ने भी उसे पहले भी चुंबन नहीं दिया था, वह सार्त्र के
साथ 'गैरजिम्मेदाराना' प्रेम के लिए
सहमत हुई थी। जिसे तुम पजेसिवनेस कहते हो - वही पजेसिवनेस उनमें नहीं होनी चाहिए, यह मूल शर्त थी। सार्त्र ठंडे आदमी थे, फिर भी उनकी
कई गर्लफ्रेंड थीं। सार्त्र और सिमोन के बीच ठंडे शारीरिक संबंधों ने उसे
अमेरिकी उपन्यासकार अलग्रेन के साथ प्यार
में बांध दिया, फिर भी वह सार्त्र को नहीं छोड़ पाई। क्या
तुम जानते हो, अल्बी, सिमोन ने अपने
पत्र में अल्ग्रेन को क्या लिखा था?यह सच नहीं है कि
तुम्हारे लिए मेरा प्यार कम है, इसलिए मैं तुम्हारे बजाय
सार्त्र के साथ रह रही हूं। बात यह है कि सार्त्र मुझे चाहते हैं। वह मेरे बिना
अकेले हो जाएंगे। मैं उनकी एकमात्र सहेली
हूं।तुम्हारे से ज्यादा शारीरिक और मानसिक रूप से सार्त्र से प्यार करना मेरे लिए
संभव नहीं है, फिर भी मेरे लिए उन्हें छोड़ देना असंभव है
क्योंकि वह मुझे चाहते हैं। मगर एक दिन सिमोन ने सार्त्र को छोड़ दिया क्योंकि
प्यार का खेल खेलना उसके लिए असहनीय था।
उसने यह बात भी अलग्रेन को लिखी। 'माय डियरेस्ट मेन विथ गोल्डन आर्म्स।’ जीवन मेरे लिए बेहद दर्दनाक होता जा रहा है,
भले ही मैं ऊपर से खुश
लगती हूं। मैं अपने आखिरी बूंद तक जीवन का उपभोग करना चाहती हूँ,
कभी भी मरना नहीं
चाहती। मैं जीवन के बारे में इतनी उत्साही हूं कि मैं इसे पूरी तरह से प्राप्त
करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि एक आदमी मुझसे एक औरत का पूरा जीवन मांगे। मैं
चाहती हूँ कि बहुत सारे दोस्त, बहुत सारी निसंगता भी। मैं बहुत मेहनत से एक अच्छी किताब लिखना
चाहती हूं और बहुत मौज-मस्ती के साथ घूमना-फिरना चाहती हूं। मैं बहुत स्वार्थी हूँ
और निस्वार्थ भी। तुम जानते हो कि एक साथ सब पाना वास्तव में मुश्किल है। जब मुझे
ये सारी चीजें एक साथ नहीं मिलती है, तो मुझे गुस्सा आ जाता है। '
“ अल्बी, अब तुम्हें समझ में आया कि केवल पूर्व के लोग ही पजेसिव नहीं होते
हैं।"
अल्बर्टो हँसने लगा, "यह ठीक है, मगर मैं इस बात को नहीं
समझ सका कि तुम सार्त्र को किस कारण से
पलायनवादी कह रही हो। इसके अलावा, मैं अपनी पूर्व धारणा को बदलकर
कहना चाहता हूं कि महिलाएं अधिक पजेसिव होती है, मगर पुरुष नहीं। "
" सुनो, अल्बर्टो, सबसे पहली बात यह है कि मैं सार्त्र को इसलिए पलायनवादी कहती हूं
क्योंकि वे जीवन में कभी भी किसी भी तरह की सांसारिक जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते
थे। तुम जीवन की सारे सुखों को लूट लेना चाहते हो, मगर कोई भी जिम्मेदारी
नहीं लेना चाहते हो, यह कैसा रवैया है? प्रत्येक कार्य के पीछे
कोई न कोई कारण होता है, इसी तरह कार्य पूरा होने के बाद उसे किसी संज्ञा से परिभाषित किया
जाता है। और महिलाएं ज्यादा पजेसिव होती है, उसका उत्तर मैं और किसी दिन दूँगी। "
अल्बर्टो बिस्तर से उठकर बाथरूम में गया। हर्षा ने देखा, उस समय भी बिस्तर पर
अंजुली भर चाँदनी बिखरी हुई थी , मगर उसे पहले की तरह आकर्षक नहीं लग रही थी। मगर क्यों ?
अल्बर्टो के साथ उसका रिश्ता क्या है? आज वह है, कल वह नहीं हो सकता है। वह अनजाने में दिन-ब-दिन अल्बर्टो का सहारा
क्यों ले रही है ? क्या वह बहुत ही पजेसिव होती जा रही है ? अल्बर्टो ने सही कहा है
,
वे इस रिश्ते को कोई
सुंदर नाम दे सकते हैं । यह सिर्फ एक फिल्म देखने की खुशी की तरह है ...... तो
क्यों उसे अपनी छाती में निर्वात महसूस हो रहा है ?
अल्बर्टो बाथरूम से बाहर आकर कहने लगा: "मैं तुम्हें कभी छोड़कर
नहीं जाऊँगा। जब तक तुम हमारा रिश्ता अक्षुण्ण रखना चाहोगी, तब तक मैं तुम्हारे साथ
रहूंगा।तुम इसे युधिष्ठिर के वचन मान सकती हो। युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलता है,हाना। "
"ओह, क्या तुम ये सारी बातें बंद करने का कष्ट करोगे,
एल्बी? जितनी अधिक इन चीजों पर बहस करेंगे, उतना ही अधिक हम दुखी होंगे। "
"हां, तुम सही कह रही हो, हाना, यदि भगवान की कृपा से हम दु: ख के बंधन से मुक्त हुए हैं, तो हम फिर से विषाद के चंगुल में क्यों फंसना चाहते हैं? ठीक है, हाना, मेरे पास दो
प्रस्ताव हैं, तुम किस पर सहमत हो? पहला
है रास्ते पर टहलने का और दूसरा बैठकर प्रश्नोत्तरी खेल खेलना है। "
"मुझे बचाओ, अल्बी, मैं दोनों नहीं चाहती
हूं। मुझे नींद आ रही है।"
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