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“ कार्येषु दासी,कर्णेषु मंत्री
भोज्येषु माता, शयनेषु रंभा
क्षमाया धरित्री

डॉक्टर शुक्ल ने यह श्लोक उस दिन सुनाया था। उस समय उस आदमी की हालत गंभीर थी। लीवर सिरोसिस से पीड़ित था वह । वह आदमी लगभग लगातार उल्टी करने से निस्तेज होकर पड़ा हुआ था। शरीर का तापमान कम नहीं हुआ था। यद्यपि हर्षा शुरु से ही उस आदमी को पसंद नहीं करती थी, मगर वह संकट के समय  उसे नहीं छोड़ सकती थी। वह बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि वह ठीक हो जाएगा तो अपना दोगुना पौरुषत्व दिखाएगा।

ऐसा कहा जाता है कि इंसान का दिल इतना नरम होता है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक शैतान के साथ रहता है,तो भी दोनों माया के बंधन से बंध जायेंगे। बेशक, वह उस आदमी के साथ छह महीने रही। लेकिन पता नहीं क्यों उसके सीने में ममता का फूल नहीं खिला ?

मेरे पिताजी और चाचाजी शादी से पहले दामाद की स्थिति देखने गए थे। वह मेरे पिताजी के पुराने दोस्त के पुत्र थे, इसलिए आपत्ति होने का सवाल ही नहीं था। मगर औपचारिकतावश दोनों टाटानगर गए थे।वह अस्पताल में नहीं मिला।  चपरासी उन्हें  क्वार्टर में ले गए। घर अंदर से बंद था।पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने कल सुबह से डॉक्टर को घर से बाहर नहीं देखा था।अंदर सो गए लगते  है। दोपहर का समय था। मेरे पिताजी और चाचाजी दोनों दरवाजा खटखटाते-खटखटाते थक गए थे। भीतर कोई होता तो निश्चय बाहर आ जाता। पड़ोसी और क्या कहते? कहने लगे, अगर बाहर गए है तो उन्हें मालूम नहीं है। पिताजी  और चाचाजी ने  दरवाजे की फांक से अंदर झांकते हुए देखा कि वह आदमी फर्श पर सो रहा है। उसने अपनी पैंट में पेशाब किया था, जिसकी छाप फर्श पर दिखाई दे रही थी, जिसके चारों ओर चींटियां ही चींटियाँ। अगर उन्हें उसके  खर्राटों की आवाज नहीं सुनाई पड़ती, तो वे सोचते कि वह आदमी मर चुका था। मेरे पिताजी बहुत निराश हो गए थे। उन दिनों वे भयानक मानसिक द्वंद्व से गुजर रहे थे। मेरे चाचाजी ने बताया कि जिस अस्पताल में वह काम कर रहा है, वह बहुत बड़ा था। डॉक्टर के रूप में उसकी उच्च प्रतिष्ठा है। क्वार्टर भी बहुत बड़ा था। तुम्हें इतना चिंतित होने की जरूरत नहीं है, शादी के बाद वह निश्चित रूप से बदल जाएगा। सभी लोग चाचा की बातों से सहमत हुए थे। हर्षा से किसी ने राय नहीं पूछी। चाचाजी ने उत्साहित होकर कहा, हम जिस टैक्सी से स्टेशन से उसके घर गए थे, टैक्सी वाला कह रहा था कि डॉक्टर साहब का ऑपरेशन में हाथ बहुत साफ है। लेकिन ...”

'लेकिनशब्द ने मेरी माँ को चौंका दिया था। आखिर वह एक माँ थीउस आदमी के पीने की आदत की खबर पहले ही उसके कानों में पहुंच चुकी थीवह अपनी बेटी को उस आदमी के हाथ में देने से डर रही थी वह। "

"'यह एक आदत है, चाचाजी ने कहा, 'अकेला आदमी है इसलिए।सब-कुछ शादी के बाद ठीक हो जाएगा। ''

हांउस आदमी का अच्छा नाम थाशल्य चिकित्सा में सिद्ध-हस्त, मगर उसका हृदय यही कारण है कि उसने हर्षा के हृदय को छूने से पहले उसके शरीर को छुआ।

वह जैसे ऑपरेशन टेबल पर है
श्वेत-चादर से ढका उसका निर्जीव शरीर
हरे रंग के अप्रोन- मुखौटे के नीचे 
दो आँखें चमक रही थी
उसके एक हाथ में चाकू और दूसरे में फोरसेप
उसके दुःख-दर्द उसकी पहुंच से परे
हृदय से कविता की एकाध पंक्ति तक नहीं

जैसे वह केवल जानता हो
अलिंद,निलय,शिरा-प्रशिरा,
हृदय केवल एक मांसल यंत्र
नहीं, उसे मालूम नहीं, कहाँ छुपा है
कविता का ठिकाना

उसने हर्षा को निचोड़ा-दबाया
दर्द से बिलबिलाती
देह बनकर वह ऑपरेशन टेबल पर

उसकी यंत्रणा उस आदमी की पहुंच से परे।
 दस्ताने उसके दोनों हाथों में
उसके कोमल युग्म-फूलों पर
उसके हाथ
 सिहरनविहीन, कर्कश
जो स्पर्श उसे सिहरित करता
उससे वह आहत,जर्जरित
तभी क्रूर व्यक्ति का चाकू के साथ अंधेरी गली में प्रवेश
मानो अनेक युगों से भूखा एक
अपनी अभुक्त क्षुधा मिटाने हेतु
लग गया हो एक आसुरी खेल में निरंतर

डॉ शुक्ला, सी॰एम॰ओ॰ ने अपने कनिष्ठ डॉक्टर की स्थिति की जांच की। हर्षा एक कुर्सी में उसके पास बैठी हुई थी। ड्रिप बहुत धीमी गति से चल रही थीं। जैसे  बूंद-बूंद कर जीवन भीतर घुस रहा हो। हर्षा की इच्छा हो रही थी कि ड्रिप की गति तेज कर दें ?  उसे डिटोल और आयोडिन की तेज गंध वाले अस्पताल से मुक्ति मिल जाती। रिश्तेदार अभी तक उस जगह नहीं पहुंचे थे। डॉ॰ शुक्ला ने उसे अपने कक्ष में बुलाया। वे उसके पिताजी की उम्र के सज्जन व्यक्ति लग रहे थे।उन्होंने कहा, "बैठो बेटी ! तुम्हें कुछ कहना है। तुम मेरी बेटी की तरह हो।इसलिए मैं कह रहा हूँ। तुम नव-विवाहित हो। महापात्र क्यों नहीं संभालती  हो? उसकी हालत देख रही हो यदि तुम चाहोगी तो सब-कुछ ठीक कर सकती हो।"

हर्षा की आंखों में आँसू छलक पड़े।पता नहीं क्यों,डॉ॰ शुक्ला ने कहा, "मुझे पता हैतुम पर कितना अत्याचार हो रहा है। मैं तुम्हारे दुख कोसमझ सकता हूं। तुम्हारा तो जीवन अभी शुरू हुआ है ।अभी बहुत दूर तक जाना है।जो  भी वह करता है,तुम दोनों के लिए हानिकारक है। केवलमहिला ही उसे ऐसा करने से रोक सकती है। क्या वह तुम्हारी बात नहीं सुन रहा हैतुम्हें पता हैवह एक बहुत अच्छा डॉक्टर है। लेकिन इस आदत केकारण उसका केरियर कभी भी खराब हो सकता है। तुम तो देख रही कि हम सभी को उसे सामान्य स्थिति में वापस लाने के लिए कितना प्रयास कर रहेहैं। ठीक होने में थोड़ा देर हो सकती हैलेकिन वह अच्छे हो जाएंगे।  लेकिन दोबारा ऐसी अवस्था नहीं होनी चाहिए।  डॉक्टर कोई  भगवान नहीं हैजो किसी को जीवन-दान दे सकते हैं। "

हर्षा पत्थर की मूर्ति की तरह बैठ रही। कह नहीं पाईदक्षिण-दिशा की  खिड़की खोलकर सारी रात इंतजार करने वाली लड़की की कहानी। कह नहीं पाई कि वह केवल एक शरीर हैआत्मा नहीं।

डॉ शुक्ला ने कहा" मनु का एक श्लोक यादनहीं हैएक पत्नी को कितनी  अलग अलग भूमिकाएं निभानी पड़ती है?

कार्येषु दासी,कर्णेषु मंत्री
भोज्येषु माता, शयनेषु रंभा
क्षमाया धरित्री

हर्षा को  इस पुराने डॉक्टर पर बहुत गुस्सा  रहा था। वह उसे उपदेश क्यों दे रहा है हर्षा इस आदमी अलग-अलग भूमिका क्यों निभाएगी,चाहे वह उसे प्यार करता है या नहींयह भी अभी तक उसे मालूम नहीं है ? वह यह भी नहीं जानती कि यह आदमी रात भर कहाँ गया था। डॉ॰ शुक्ला ने उसे उपदेश देने के बजाय आदमी को क्यों निलंबित नहीं कियाक्या उसे मालूम है कि अगर हर्षा ने अपना मुंह खोलेगी  तो वह उसे बेरहमी से पीटेगा?

क्या सोचकर मनु ने नारी को टुकड़ों में  बाँट दियाऐसा क्यों नहीं सुझाया कि  आदमी को औरत का दिल कैसे जीतना चाहिएहर्षा समझ नहीं सकी कि क्या मनु का यह नियम नारी की रक्षा  के लिए थाया नारी की दुरावस्था इस नियम के कारण है।

समाचार मिलते ही उस आदमी के माता-पिता वहां पहुंच गए। कुछ दिनों तक  उन्होंने अपने बेटे को  विशृंखलित जीवन के लिए दोषी ठहराया, लेकिन धीरे-धीरे उनकी राय बदलती गई। उसकी सासूजी ने कहा: " उसके मन में बहुत दुख है। तुम्हारे पिता ने दो लाख रुपये दे दिए और फिर चुप बैठ गए। उनके स्टेटस के अनुसार दो लाख ठीक है? तुम्हारे पिताजी  मेरे पति के बचपन के दोस्त हैं, इसलिए हम चुप रहे। मगर बेटे का मन शांत नहीं हुआ है ? आजकल ऐसे लड़के पाना वास्तव में मुश्किल है। देखो, उन्हें डॉक्टर जैसा दामाद कैसे मुफ्त में मिल गया ? "

पैसों के साथ हृदय का क्या संबंध है ? अगर पिताजी ने ज्यादा दहेज दिया होता तो क्या आदमी बदल गया होता ? क्या वह पीने की पुरानी आदत छोड़ देता? क्या वह पूरी दुनिया हर्षा पर बलिदान कर देता ? क्या वह उस पर प्रेम-चांदनी न्यौछवार करता ? क्या वह उसे सुरीले गीतों से झूले में झूलाता ? अगर किसी नारी के लिए डॉक्टर या किसी अधिकारी का कोई मूल्य है, तो क्या वह अपने प्यार से  वंचित रहेगी ?

एक दिन उसकी ननद ने उसे एक प्रिय सहेली की तरह बताया कि किश्कू अपने भाई के पतन के लिए जिम्मेदार है।
"किश्कू? यह किश्कू कौन है? "

"मेरा भाई मरीयम किश्कू नामक एक आदिवासी महिला डॉक्टर से शादी करना चाहता था। ब्राह्मण होने के नाते, एक ईसाई के साथ शादी कैसे हो सकती थी? जानती हो, भाभी, किश्कू बहुत दारू  पीती थी । भाई के पीने की आदत वहीं पैदा हुई। "

किश्कू ने उसे पीना सिखाया था, उसने उसे प्रेम भी सिखाया होगा, हर्षा ने सोचा, लेकिन प्रेम कहाँ गायब हो गया? नहीं, ये सब झूठ हैं,। केवल सांत्वना,केवल बहानेबाजी है।

हर्षा ने फोन पर अपनी मां को बताया: "आपने मेरी इच्छा के विरुद्ध विवाह कर दिया। मेरा जीवन इस आदमी के साथ नरक बन गया है। आओ और देखो कि आपकी बेटी इस नर्क में कैसे जी रही है।"

"जब तक तुम्हारे बच्चे नहीं होते है, तब तक मैं तुम्हारे घर कैसे आ सकती हूं? जब तुम्हारे बच्चे हो जाएंगे, देखोगी, अपने आप  सब-कुछ ठीक हो जाएगा। उसका अपने परिवार और घर के प्रति मोह पैदा हो जाएगा। जो भी हो, बच्चे अपना खून होते हैं।"
कब से उसका शरीर सूखे खेत की तरह हो गया था। दरारें पड़ने लग गई थी मिट्टी में, वह आदमी व्यर्थ में बीज बोते जा रहा थाजब मिट्टी से कोई लगाव या स्नेह नहीं होगा, तो कभी फसल उग सकती है। 
 फसल? व्यर्थ।  हर्षा को कभी भी इस बात का खेद नहीं था। बल्कि वह खुश थी कि वह मुक्ति के मार्ग की कल्पना कर सकती थी।जब भी वह घर लौटगी, तो अपने पिताजी को बताएगी कि उन्होंने घाटे का सौदा किया है। "आप एक असफल व्यापारी हो, आपने जिसे दो लाख रुपए में खरीदा था, उसकी अच्छे ढंग से  पूछताछ  क्यों नहीं की। "
हर्षा आदमी से कुछ भी नहीं बोल पाती थी। एक बार उसने विरोध किया था, तो उस आदमी ने उसे धक्का दे दिया था। "तुम एक बित्ता की लड़की हो और मुंह लगती हो।"
टेबल के किनारे से टकराकर वह धराशायी हो गई थी। उसे चिढ़ाने के लिए उसने अपने लंबे पाँव टेबल पर रखकर बोतल पीने लगा। उसके बाद वह घर छोड़ कर चला गया और उस दिन नहीं लौटा।
पास-पड़ोस के लोग उसकी पीने की बुरी आदत के कारण उसके घर जाना पसंद नहीं करते थे। लेकिन जब वह  बीमार हुए तो वे लोग देखने अवश्य आए। एक बार शराब पीकर क्लब में अपनी पैंट खोल दी थी, इसलिए  कोई भी महिला सके घर आने की हिम्मत नहीं करती थी। लेकिन फिर भी कहते कि वह बहुत अच्छा डॉक्टर है। मरीजों को स्पर्श करते ही ठीक हो जाते थे। भगवान का यह कैसा प्रहसन है ? शैता के हाथ में जादू की छड़ी दे दी है ? छूते ही रोगी स्वस्थ हो जाते हैं? जबकि वह उसके नरम दिल को छूने में समर्थ नहीं है ? इसमें  हर्षा की गलती कहाँ है? वह किश्कू की जगह लेने यहां नहीं आई थी। इसके अलावा, के और किश्कू में बहुत अंतर है। अगर उसे प्रेम मिले, तो क्या वह उसे बदले में प्रेम नहीं देगी ?
नहीं, किश्कू कारण नहीं थी। हर्षा  को एहसास हुआ कि यदि किश्कु ने भी उस आदमी से विवाह किया होता, तो उसका भी भाग्य वैसा ही होता। सास ने कहा कि बचपन से ही इसको बहुत लाड़-प्यार मिला था; वह छह बेटियों के बाद इकलौता बेटा पैदा हुआ था, इसलिए उकी मांगों को तुरंत पूरा किया जाता था, नहीं तो फिर प्रलय हो जाता। एक बार जब वह चार साल का था, तो उसके पिताजी उसे पेशाब कराने के लिए बाहर ले जा रहे थे। लेकिन वह इतना क्रोधित हुआ था कि उसने पिता के ऊपर पेशाब कर दियामगर पढ़ाई में  वह बहुत तेज और बुद्धिमान था।

हर्षा आश्चर्यचकित थी अपने पिताजी पर उसके पेशाब करने की कहानी को  उनकी सास दिग्विजय के रूप में सुना रही थी
उसके दादाजी की मृत्यु हो गई। हर्षा पुरी आई। वह अपने पति के घर और नहीं लौटेगी, इस जिद्द पर अडिग थी। "जिनके लिए आपने मेरी शादी करवाई थी, वे तो अब दुनिया में नहीं है, अब आपको किसी भी तरह की सफाई नहीं देनी पड़ेगी, आप मुझे यहाँ रहने दे, मैं वहां नहीं जाऊंगी। सच कहती हूँ, मैं किसी पर बोझ नहीं बनूँगी। मुझे जाने के लिए और मत पूछना।"
 घर में तूफान पैदा हो गया था।
पिताजी ने कहा, "मैं अपना चेहरा कैसे दिखाऊंगा? किसे क्या जवाब दूंगा ? लोग क्या कहेंगे मुझे ? तुम छोटी हो ये सारी बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएगी। "
" अगर मैं छोटी बच्ची हूँ तो आपने मेरी शादी क्यों करवाई ? मेरी सहेलियाँ स्नातकोत्तर कर रही हैं, मैं भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकती थी। "
वह आदमी भी उसे छोटी लड़की कहता था।  लेकिन इतनी छोटी लड़की देखकर चेहरा क्यों बिगाडता था! हर्षा  नाखुश थीउसकी उम्र थी चौतीस साल, उससे चौदह वर्ष बड़ा।  लगातार पीने से मोटापा बढ़ गया था। हर्षा ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा आदमी उसके जीवन में आएगा। काश! वह नहीं पीता होता और नहीं वह पीकर अपने होश खोता। पता नहीं,  शराब का नशा उतर जाने के बाद उसके शरीर में दर्द नहीं होता। शायद  सब कुछ भूलकर उसने अपनी भावनाओं के साथ समझौता कर लिया था। अधिक नहीं तो, एडजस्टमेंट करने से जीवन कट जाता।मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, वह आदमी कभी भी उसका दोस्त नहीं बन सका।
हर्षा अपनी मां को सब-कुछ नहीं बता पाई।वह आदमी शराब के बोतल की तरह उसके  शरीर से प्यार करता थावह आदमी उसके  शरीर से प्यार करता था क्योंकि उसे शराब से प्यार था। शराब की बोतल के प्रति उसकी ममता थी,लेकिन उसके प्रति कोई लगाव नहीं था। माँ ने कभी ध्यान नहीं दिया कि शरीर के अंदर एक सूक्ष्म मन भी है। "मेरी बातों को बच्चों की बातें समझकर नजरंदाज मत  करो, इस शरीर और मन को दुख पहुंचता है।"
माँ ने हर्षा की करीबी सहेली सरिता को बुला दिया, हर्षा के मन की वेदना को जानने के लिए। सरिता हर्षा की बातें सुनकर हंसने लगी: "क्या तुम पागल हो? यह नहीं मिलने से लड़कियां पागल हो जाती हैं और तुम कहती हो कि यह तुम्हारे दुख का कारण है, तुम्हारी वेदना का कारण है
वह सरिता को समझा नहीं सकी अथवा सरिता उसे समझ नहीं पाई ? सरिता समझने लगी कि हर्षा नखरे कर रही है। सभी की यह ही राय थी। दया करने के बजाय उन्हें क्रोध आने लगा।
हर्षा किसी को भी अपना दुःख या पीड़ा नहीं समझा सकी। वह अपनी सबसे बड़ी बुआ के पास गई और कहने लगी, "महिलाओं को इतना दुख क्यों मिलता है?"
बुआ ने हँसते हुए कहा: "सभी कान्हा की लीला है। तुम किस दुख के बारे में बात कर रही हो? मुझे क्या पता,  ससुराल या पति का प्यार क्या होता है? कान्हा का ध्यान करो और सब-कुछ ठीक हो जाएगा। "

धत्! उसे बुआ से सुझाव नहीं लेना चाहिए था, जिसने सुहाग-रात तक नहीं देखी हो? हर चीज उसकी कल्पना है  जैसे कि उसका कान्हा।
छोटी बुआ भी हर्षा  को समझाने आई। "यह बात तुम्हारे ससुराल तक न चली जाए, इसलिए तुम बात को मत बढ़ाओ,बेटीपुरी से तुम्हारा ससुराल है कितनी दूर! अगर ये बातें उनकी कानों तक पहुंच गई तो वे तुम्हारे  चरित्र पर संदेह करेंगे। छोटी बुआ ने शादी के समय आई॰ए॰ पूरा किया था, उसके बाद वह फूफाजी के प्रयास से वह बी॰ए॰, बी॰एड॰कर प्रशिक्षित स्नातक बन गई। अब वह एक शिक्षिका थीफूफाजी साई कॉलेज में व्याख्याता थे। बुआ ने फूफाजी को हर्षा की समस्या के बारे में अवश्य बताया होगा। घर में सभी को मालूम है यह बात। पहली बार उसे संकोच महसूस हो रहा था। अपने माता-पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था
छोटी बुआ ने उसे सांत्वना दी: "तुम्हारी बातें सुनकर लोग हंसते हैं? मुझे सच बताओ, क्या वह आदमी तुम्हारे साथ अप्राकृतिक संबंध रखता है? "
"'अप्राकृतिक'  का मतलब क्या है?
सरिता के समान उसकी भी यह ही राय थी: "यदि संबंध अप्राकृतिक नहीं है, तो समस्या क्या है?"
" मेरे अंतरात्मा में भयानक दर्द है। मुझे लगता है कि आदमी मेरे और वेश्या के बीच कोई अंतर नहीं समझ  रहा है। नशे में उसे बर्दाश्त किया जा सकता है। हां, नशे की हालत में उस आदमी पर दया आती है।लेकिन अगर वह नशे में नहीं है, तो मुझे ज्यादा अपमान लगता है। जानती हो, सरिता, हर बार इस शरीर के रथ पर चढ़ने समय वह मुझे कुछ-न-कुछ उपहार देता है।कभी झुमके की जोड़ी, कभी साड़ी।कभी मेरी गोद में बहुत सारे  सिक्के डाल देता है। क्या मुझे इन सभी की आवश्यकता है? यदि वह आदमी घर सजाने में मेरी मदद करता, खाना बनाने में मेरी मदद करता और झुमके के बजाए मेरे लिए कुछ 'जलेबी' खरीदकर लाता, तो मुझे बहुत अधिक खुशी होतीवह आदमी मेरे शरीर का मालिक बनता है तो कम से कम एक बार ही सही वह इस शरीर की प्रशंसा तो कर सकता था मुझे पता है, आप लोगों को मेरी पीड़ा कभी महसूस नहीं होगी। "
सरिता ने पूछा: "यदि तुम्हें कोई और दुःख है, तो बताएं; हम कुछ रास्ता खोज लेंगे। "
हर्षा ने उत्तर दिया: "आप लोग क्या उपाय करेंगे? क्या आप जानते हैं, वह आदमी निर्लज्ज है।  यहां तक ​​कि घर में सभी की उपस्थिति में भी वह मुझे अंदर ले जाता है और अंदर से दरवाजा बंद कर देता है। उस पल मैं अपने शरीर को धिक्कारने लगती हूँ।"
सरिता कुछ समय के लिए चुप बैठी रही। जैसे वह उत्तर की तलाश कर रही होकेवल इतना कहने लगी:"मुझे देखो? मेरे माता-पिता मेरे लिए वर खोजते-खोजते परेशान हो गए हैं, लेकिन सब व्यर्थ। इस संदर्भ में तुम  कितनी भाग्यशाली हो! जिसका ससुर डीएसपी हो, पति डॉक्टर हो, ऐसे कितने भाग्यशाली हैं? "
"भाग्य?" हर्षा  उदास हंसी हंसने लगी "मैंने कितनी रातें दक्षिण-खिड़की के पास बिताई हैं इंतजार करते हुए,  गेट के चरमराने, कालिंग बेल की आवाज या दरवाजे के कड़ों की खनखनाहट सुनते हुए, सिल्हूट दूरी से जूतों के आवाज की कल्पना करते हुएसरिता, क्या तुमने कभी कल्पना की उस आदमी की ,जो नशे के घोड़े पर सवार होकर आधी रात या सुबह-सुबह घर लौटता हो? "
सरिता ने पूछा: "क्या तुम सच कह रही हो या बढ़ा-चढ़ाकर ? कभी-कभी मुझे विश्वास नहीं होता तुम्हारी बातों पर।बीच-बीच में डाक्टरों को आपातकालीन ड्यूटी करनी पड़ती है। कभी-कभी उन्हें आधी रात को बुलाया जाता है। कभी-कभी उन्हें बाहर बहुत समय बिताना पड़ता हैं।वे रोगी को मौत के मुंह में छोड़कर नहीं सकते है। "
हर्षा उस आदमी के प्रति सरिता की सहानुभूति देखकर आश्चर्यचकित थी। क्या वह उसकी सहेली है या मेरी ? उसने केवल इतना ही कहा: "मैं इतनी छोटी नहीं हूं कि मुझे ये सब बातें समझ में नहीं आएगी। ठीक है, तुम  मेरी सहेली नहीं हो, अगर होती तो मेरी  मानसिक यातना को समझ पाती।"
सरिता सेका विश्वास उठ गया था। लंबे समय से जीवन के प्रति भी उसका विश्वास खत्म हो गया था। इस बीच एक-दो महीने बीत गए, लेकिन वह वापस नहीं लौटना चाहती थीधीरे-धीरे वह पूरे घर पर एक बोझ बन गई। जितना वह नहीं रोई , उससे ज्यादा उसकी मां रोई। बेटी ससुराल जाना नहीं चाहती थी। पिताजी पूरी तरह से परेशान हो गए थे। कैलिफोर्निया से भाई ने उसे मनाने की पूरी कोशिश की। अंत में, केवल उसने ही उसका दर्द समझा। वह आदमी जरूर टार्चर करता है,अन्यथा  हर्षा क्या पागल है जो अपने ससुराल नहीं जाना चाहती है ?
जैसे ही हर्षा ने अपनी आँखें बंद की तो उसे अपने सामने भयंकर अंधेरा नजर आने लगा, मानो उसके सपने टुकड़े-टुकड़े हो गए हो,  उसके जीवन का अंत हो गया हो और आगे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। आँखें खोलते ही चारों ओर शून्य ही शून्य। उसे किसी से भी बातें करना अच्छा नहीं लग रहा था। मां रोते-रोते छत पर चली गईक्या मां यह चाहती है कि वह फिर से यातना के कुएं में डुबकी लगा दें ?
उसने स्वयं को सभी से पृथक कर लिया था। घर में बैठकर किताबें पढ़ने लगी। शेक्सपियर से लेकर दादाजी  की पुरानी पुस्तक-पत्र सभी। वेदों और उपनिषदों को पढ़कर उसने अनेक चीजों की जिनकी उसे जानकारी नहीं थी, पढ़ने लगी। वह इन बौद्धिक गतिविधियों में अपने सारे दुःखों को भूल गई थी।
उसके ससुराल वाले पुरी आए। कितने बहाने कर हर्षा की वापसी को घर वाले रोक सकते थे ? सास ने पूछा, " और कितने महीनों तक अपनी बेटी को रखोंगे?"
 "बेटे को वहाँ दिक्कत हो रही है।"
हर्षा ने जिद्द पकड़ ली कि वह और नहीं जाएंगी। अंदर से दरवाजा बंद कर बैठी रही। उसके पिता, मां और अन्य सभी ने दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसने कुछ जवाब नहीं दिया। मँझली बहन भोपाल से आई थी
 " तुम यहाँ क्या नाटक कर रही हो? रिश्तेदार तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, "माँ ने कहा "दरवाज़ा खोलो, हर्षा, अन्यथा मैं ज़हर खा लूंगी,सच कह रही हूँ।"
घर में शोरगुल, दरवाजे पर खटखटाहट,रोना-धोना उसके ससुराल वालों के कान में कैसे नहीं पहुंचता ?
सास ने पूछा: "क्या आपकी बेटी पहले किसी और से प्यार करती थी? पुलिस अधिकारी की पत्नी होने के कारण  पूछताछ कैसे  नहीं करती ? "
"हे भगवान, मैं पहले यह जानती तो उसे बहू के रूप में बिलकुल स्वीकार नहीं करती।"
माँ ने दहलीज पर अपना सिर पीटना शुरू किया। हर्षा अपने को और संभाल नहीं पाई , इसलिए उसने दरवाजा खोल दिया। नहीं, वह अपने बारे में और नहीं सोचेंगी। भले ही, वह उस आदमी द्वारा बार-बार बलात्कार का शिकार हो जाएगी,मगर वह अपने माता-पिता को कभी दुखी नहीं करेगी
उसने अपनी मँझली बहिन की सहायता से सूटकेस सजाया। अपनी साड़ी बदली। माँ उसे अपने ही हाथों से पखाल (चावल) खिलाना चाहती थीं, लेकिन हर्षा खा नहीं सकी, उसे बार-बार उल्टी करने का मन हो रहा था
सास ने उससे कहा, जितनी जल्दी हो सके तैयार हो जाओ, क्योंकि उन्हें गांव के रास्ते से जाना है और देर होने  से अंधेरा हो जाएगा।
हर्षा का चेहरा लाल, नथुने लाल और आँखें  लाल हो गई , फिर उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे। वह गाड़ी में बैठ गई। पिताजी ने कहा: " पहुंचने के बाद फोन करना,बेटी"। हर्षा ने उनकी आँखों में आँसू की छुपी हुई बूंदें देखी। अभी तक पिताजी चिंताग्रस्त थे, कभी उनकी आँखों में आँसू नहीं आए थे, उसके ससुराल पहली बार जाते समय भी, लेकिन इस बार उकी आँखों में आंसू आ गए थे। आखिर, वह कर भी क्या सकते थे?
“देट इज द डेस्टिनी ऑफ ए वुमेन।"
वे लोग पुरी से बाहर आए। उसका सिर घूमने लगा। रास्ता-घाट धुंधले दिखाई देने लगे। अंधेरा छाने लगा था। उसके पेट में दर्द होने लगा। उसे उल्टी जैसा लगने लगा। चारों ओर धुंधला अंधेराउसकी इच्छा हो रही थी, किसी को कहने की। अंधेरे में वह बिन्दु होती जा रही थी।
सास को लगा,शायद कुछ खा लिया है: "देखो, उसके साथ क्या हुआ है? क्या हुआ? क्या? उसके अंग सुन्न और बेजान होते जा रहे हैं, क्या कुछ लिया है? सच बताओ, तुमने क्या खाया है? देखो,उसने क्या किया है?"
गाड़ी बंद कर ससुर पीछे की सीट पर पहुंचे।
 "गाड़ी चालू कर, चलें, चलो, आस-पास कहीं अस्पताल ।"
"सच बता, तुमने क्या खाया है?" सास बार-बार पूछ रही थी। हर्षा कोई शब्द नहीं बोल पाई। दाँत भींच रहे थे ।  वह अंधेरे में एक बिन्दु बनकर रह गई थी। सास मुंह लटकाकर उस पर पड़ी हुई थी। उसकी आँखें बंद होती जा रही थीं। वह इसे रोक नहीं पा रही थी। सास चिल्लाने लगी:"तुमने क्या खाया है,चांडाली? मैंने तुम्हें क्यों लाया?"  कहीं पर गाड़ी रुकी। कोई उसे उठाकर ले जा रहा था,  वह अभी भी तंद्रावस्था में थी। किसी ने उसे टेबल पर सुला दिया। "हमें बताओ कि तुमने क्या खाया है?"
वह तकलीफ से जीभ उठाने का प्रयास कर रही थी, बहुत कष्ट से होंठ हिलाने की चेष्टा कर रही थी।बहुत ज़ोर लगाकर कुछ कहने की कोशिश कर रही थी। 
 उसके चेहरे पर झुककर किसी ने पूछा, "क्या तुमने ज़हर लिया है?"
"नहीं, आल आऊट , आ...ऊ....ट .....आऊट।"



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