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पता नहीं,रात के कितने बजे होंगे, कांपते कोमल पत्ते की तरह पहली वर्षा की बूंदों से देह में उठती सिहरन की तरह, सुनसान रात में झरने की कल-कल की तरह कंपन करते हुए नीरव हो गया उसका मोबाइल फोन। हर्षा को नींद नहीं आ रही थी। सुख-दुःख के सारे अनुभव टुकड़े-टुकड़े होकर भावनाओं के कोलाज बन गए। बिस्तर पर पड़े-पड़े बार-बार वह करवट बदल रही थी, शायद तभी एक मैसेज उसके मोबाइल पर आया। लेकिन इतनी रात को ? इस समय किसने एसएमएस भेजा होगा ? उसने तकिया के नीचे से मोबाइल बाहर निकाला।
पिताजी ने उसे दिन में फोन किया था, जब वह अल्बर्टो के पास थी। भाई उसे कभी भी एसएमएस नहीं भेजता था। तब और कौन हो सकता है ? भैरवी या नवीना?
" माय स्वीट हार्ट, हाना, माय लव। सॉरी फॉर माय बिहेवियर व्हिच माइट हर्ट यू। माय डार्लिंग,आई एम सेंडिंग दिस टू टेल यू, हाऊ मच आई नीड़ यू एंड वांट यू। ए बिग किस, अल्बर्टों। "
हर्षा का शरीर पसीने से भीग गया था। उसने कमरे में लाइट लगाई। फिर से वह अल्बर्टो का मैसेज पढ़ने लगी। इतने दिनों के दौरान अल्बर्टो से पहला एसएमएस उसे मिला था। संभवत: वह एसएमएस से कुछ कहना चाहता था, जिसे वह मुंह से नहीं बोल पा रहा हो। क्या अल्बर्टो इतनी रात तक सोया नहीं ? वह बैठे-बैठे क्या कर रहा होगा? वह खुद पुस्तकों के ढेर में छिपा होगा या वह उसकी तरह सो नहीं पा रहा हो ? मानसिक द्वंद्व के कारण वह बिस्तर पर करवट बदल रहा होगा।
उस दोपहर में ऐसा क्या हुआ, जिसने उसका जीवन बदल दिया ? क्या उसने कभी सोचा था कि जिंदगी उसे ऐसे मुकाम पर लाएगी ? जैसे कोई उसके शरीर के चारों ओर एक सरीसृप की तरह, एक लता की तरह लिपट गया हो । कोई शायद नरम हथेलियों से उसके दोनों कोमल फूलों को स्पर्श कर रहा हो । कोई उसके कान में फुसफुसा रहा हो, समय बहुत कम है, बहुत कम; देखो, चंद्रमा आकाश में सिर के ऊपर है। किसी ने उसके होंठ छुए? कोई उसके शरीर को भेद रहा हो ? क्या इस शरीर में इतना सुख है जो शरीर भेदकर आत्मा को स्पर्श कर रहा हो? वह यह जानने में सक्षम नहीं है कि इस महेंद्र वेला में किसने दिया या किसने लिया?
हर्षा दोपहर के अनुभव से सिहर उठी। अल्बर्टो के बिस्तर पर उसने संतुष्ट किया था अपना रतिक्लांत शरीर। उसे नहीं पता था कि यह सब कैसे घटित हुआ। अपने दुःखों का पिटारा खोलकर बैठी वह, जिसे उसने कभी किसी से पहले नहीं कहा था। इतने दिनों के बाद निबुज कोठरी के सारे दुख बाहर निकल गए थे। क्या कुछ आँसू दुःखों के साथ लुढ़क गए थे? तब अल्बर्टो ने उसे अपनी छाती तक क्यों उठाया? उनके शरीर की दीर्घ जड़ता अचानक टूट गई और दोनों अनजाने में एक-दूसरे में विलय हो गए।
अल्बर्टो के स्पर्श से उसकी आँख लग गई । पता नहीं, कब वह पिघलना शुरू हुई।
“ उसने अपने आपको चारे की तरह फैला दिया था
झुक गए ईश्वर उस पर क्षुधार्त भंगी से
उसकी सारी नसों में दौड़ रही थी, एक प्रचंड क्षुधा
बुझाने के लिए ईश्वर की आशा
उसी ने 'विश्वरूप' सृष्टि का रहस्य दिखाया
ऊर्जा का मूल स्रोत, विज्ञान के सभी संसारिक तत्व
झुक गए ईश्वर उस पर प्रणाम भंगी से
लता गुल्म बिखरकर देखा ईडन का सेव-उद्यान
वासुकी की जीभ से चखी पहली कोमलता
होंठ से चाँटी अमृत-पात्र की आखिरी बूंद
शैतान भी बदल गया था उस पल
जिसे पाप समझ रही थी
अब पुण्य लगने लगा था।”
पूर्णगर्भा नदी की तरह हर्षा परम तृप्ति से सो रही थी। अल्बर्टो बिस्तर पर मुंह मोड़कर सो गया था। वह उसके मन के भाव समझ नहीं पा रही थी। मानो वह सब-कुछ दान देकर निर्धन हो गया हो। हर्षा को उसे छूने से डर लग रहा था। दोनों निरुत्तर थे। जैसे बात करने के लिए कुछ भी नहीं था, न ही सुख और न ही दुख की बात।
जैसे पहली बार हर्षा अनुभव कर रही हो। अपने शरीर में बहते हुए झरने को। जैसे उसका जीवन पहले बार पूर्णता से भर गया हो। जबकि अल्बर्टो पास में लाश की तरह पड़ा हुआ था। धीरे-धीरे पैर संभालकर हर्षा बिस्तर से उठी। मगर अल्बर्टो वैसे ही मुंह मोड़कर पड़ा रहा। बहुत मन हो रहा था अल्बर्टो को सहलाने का । वह उसकी भावनाओं को जानना चाहती थी। यह दुर्बल आदमी उसे सबसे सुंदर दिखाई देने लगा। उसने कहा: "अल्बर्टो।"
अल्बर्टो बिस्तर से उठकर बैठ गया। उसकी दृष्टि में थी एक अद्भूत शून्यता। जैसे वह भीतर ही भीतर टूट रहा हो। जैसे वह भीतर से शून्य हो गया हो। कोई व्यथा उसकी आँखों से झलक रही थी। कुछ भी कहने से हर्षा को डर लग रहा था। अल्बर्टों हंसने लगा। वह हंसी उसके उदास मुंह पर अच्छी नहीं लग रही थी।
"तुम ठीक हो, अल्बर्टो? तुम दुखी नहीं हो तो? " वह इस तरह के बहुत सारे प्रश्न करना चाहती थी, मगर उसे डर लग रहा था। ऐसी घटना से किसी भी नारी का परेशान होना स्वाभाविक है। अपराध-बोध होना स्वाभाविक है।उसका अस्तित्व टूटकर टुकड़े-टुकड़े होना स्वाभाविक है। सब-कुछ हर्षा ने खोया था, मगर हो रहा था विपरीत। अल्बर्टो क्या अपने संयम खोने से दुखी था ? क्या यह बौद्ध अपने मन और आत्मा से अपने पाप-आचरण के लिए टूट गया है ? निवृत्ति मार्ग का अनुसरण करने वाला क्या यह आदमी प्रवृत्ति मार्ग की ओर कदम बढ़ाने के लिए दुखी है ? नहीं, ऐसे प्रश्न उठाने का यह समय नहीं है । उसे अकेले छोड़ देना ही बेहतर है:
"मैं जा रही हूँ , अल्बर्टो", हर्षा ने कहा।
नींद से उठते हुए अल्बर्टो कहने लगा: "बाय"
वह उसे छोडने के लिए बाहर तक भी नहीं आया। छाती में अतृप्त भावना के साथ वह बाहर निकली।
हर्षा को लगा कि जैसे कोई संन्यासी पथ-भ्रष्ट होकर दुःख में टूट गया हो,ऐसी स्थिति में वह उसे छोडकर आ गई।जो कुछ भी हुआ था, वह बिल्कुल पूर्व निर्धारित नहीं था, बल्कि केवल एक आकस्मिकता थी। मानो एक सुप्त कामना बहुत दिनों से इस मौके का इंतजार कर रही हो। एक पल के लिए इंद्रजाल के भूलभुलैया की तरह एक मायावी दुनिया में दोनों हाथ पकड़कर प्रवेश कर रहे हो। अल्बर्टो 'निर्वाण' की बात भूल गया था। हर्षा भी अपनी हिम-जड़ता को भूल गई। भूल गई अपनी पीड़ा।
फिर भी, वह नहीं जानती थी, क्यों वह अपराध-भावना से कुंठित हो गई है। और उस भयावह पल में उसे वह आदमी याद आने लगा। यद्यपि उसके और अल्बर्टो के बीच में स्वर्ग-पाताल का अंतर था। कभी भी उस आदमी ने उसे प्यार से अपने सीने से नहीं लगाया था; कभी सहलाते हुए दिलासा नहीं दिया था: "मैं हूँ, मैं तुम्हारे साथ हूं।" उसने उसके होंठों की कोमल पंखुड़ियों को छुआ तक नहीं। अल्बर्टो से उसे, जो कुछ भी क्षणिक सुख प्राप्त हुआ,वह उसे सारे जीवन कभी नहीं मिलेगा।अब कोई बात नहीं, अगर वह अहिल्या की तरह पत्थर भी हो जाए।
अल्बर्टो का पीला उदास चेहरा, उसकी सार-शून्य आंखें हर्षा का पीछा नहीं छोड़ रही थी। इससे तो प्राच्य-पाश्चात्य दर्शन के बारे में उनके तर्क, उनका प्रश्नोत्तरी खेल, दो गोलार्धों में सांस्कृतिक विभेद को लेकर उनके मतभेद की लड़ाई ज्यादा बेहतर थी।आखिरकार उसे लंबे समय के बाद दोस्त मिल गया था।
वह अपने कमरे में लौट आई । मगर अल्बर्टो का कोई फोन नहीं आया। उसे उम्मीद थी कि वह उसे शाम को फोन करेगा। मगर नहीं। क्या कहीं वह अपने अंतरंग दोस्त को खो तो नहीं देगी ? उसे डर लगने लगा। अगली बार जब वह अल्बर्टो से मिलेगी तो वह उसे बता देगी: "चलो भूल जाओ, जो कुछ हुआ। मैं तुम्हारा दुख समझ सकती हूँ,अल्बर्टो, पाप क्या शरीर में होता है? क्या यह शरीर की प्रवृति है? शरीर तो केवल एक नौकर है। मन उसे हमेशा चलाता है। और मन क्या है? मुझे बताएं कि मन से ज्यादा और कौन लंपट है ? मन ही लंपट मुनि है। "
कई बार अल्बर्टो को फोन करने की उसकी इच्छा हो रही थी। वह कहना चाहती थी कि बेहतर होगा कि जीवन को दर्शन के ढांचे में ढालने की तुलना में जीवन से दर्शन का आवरण हटाकर सामान्य तरीके से आगे बढ़ने दिया जाए।
"हे अल्बर्टो! ब्रह्मांड में मूल-शक्ति काम-शक्ति को मानने वाला व्यक्ति क्या शरीर से नफरत करेगा ? एक बार तुम्हीं ने प्रश्नोत्तरी के खेल में उत्तर दिया था कि ब्रह्मांड का मूल-उत्स यौन ऊर्जा है, फिर आज की इस घटना से आप दुखी क्यों हैं? क्यों तुम्हारी आँखों में कंगाल होने जैसी शून्यता दिखाई दे रही है?
अल्बर्टो! क्या तुम्हें लगता है कि ये सारी चीजें तुम्हारे 'साधना के रास्ते की बाधा हैं? क्या तुम नहीं जानते कि ज्ञान की संपूर्णता, केवल 'विद्या' या केवल 'अविद्या' से संभव नहीं है।सत्य दोनों 'विद्या' और 'अविद्या' के सामंजस्य से प्राप्त होता है। याद रखें, तुम्हें प्रवृति से दूर नहीं रहना है, बल्कि प्रवृति से होते हुए निवृत्ति मार्ग की ओर चलना हैं। शरीर और मन के सारे दरवाजे और खिड़कियां खुली रहनी चाहिए। प्रचुर आलोक,उत्ताप और जल से भर जाने दो तुम्हारा शरीर और मन। देखोगे उसके बाद तुम्हें कोई झिझक नहीं होगी; कोई भूख नहीं, कोई उम्मीद नहीं होगी और न ही कोई लालसा। मेरी छोटी बात मन पर मत लगाना। "
हर्षा को अचानक कहानी याद आ गई, पता नहीं कहाँ से, जिसे उसने अपने बचपन में सुना था। वह यह कहानी अल्बर्टो को सुनाकर उसकी प्रतिक्रिया देखना चाह रही थी ।
एक बार एक गुरु और उसका शिष्य लंबा रास्ता तय कर गांव पहुंचे। वहाँ पहुँचते-पहुँचते थक गए थे। उन दोनों को बहुत भूख लग रही थी,मगर देर से पहुंचने के कारण उन्हें खाने के लिए कुछ नहीं मिला। आखिरकार एक गृहस्थ ने उनसे कहा कि अगर मांस खाने में आपको कोई आपत्ति नहीं है, तो आपका स्वागत है, क्योंकि मेरे घर में मांस के सिवाय कुछ नहीं है। गुरु ने निमंत्रण स्वीकार करते हुए मांस खाया,मगर शिष्य ने बीमारी का बहाना किया और बिना भोजन रह गया। अगले दिन वे एक और जगह के लिए रवाना हुए। उस घटना के बाद शिष्य की मानसिक शांति खत्म हो गई ।वह अचानक इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उसके गुरु बाहर से जैसे दिखाई देते हैं, वास्तव में वैसे नहीं हैं। गुरु के प्रति उसकी भक्ति कम होने लगी। धीरे-धीरे उसके मन में गुरु के प्रति घृणा पैदा हो गई और वह उनके साथ रहना पसंद नहीं करता था।एक दिन उसने गुरु के सामने अपनी इच्छा व्यक्त की। गुरु ने इसका कारण पूछा कि उसने उस दिन का घटना-प्रसंग सुना दिया कि किस प्रकार उसका मोहभंग हुआ था। उसे सुनने के बाद गुरु हँसे और कहने लगे, "मैं उसी दिन पूरी तरह से भूल गया था, जिस दिन मैंने मांस खाया था, मगर तुम इसे अभी तक नहीं भूले हो, भले ही,तुमने उसे स्पर्श नहीं किया। बताओ, फिर तुम अपने मन को 'साधना' तक कैसे साध सकते हो?
हो सकता है अल्बर्टो ने ऐसा विचार नहीं किया होगा, हर्षा ने अनुमान लगाया।शायद वह अपनी खूबसूरत पत्नी क्रिस्टिना के साथ किए गए विश्वासघात से परेशान हो गया हो। मगर एक दिन प्रश्नोत्तरी खेल के दौरान हर्षा विवाहेतर संबंधों पर उसकी राय जानना चाहती थी; अल्बर्टो ने कहा था कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है, अगर किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है तो।
पता नहीं क्यों, शुरू में हर्षा अल्बर्टो के इस व्यवहार पर अपमानित अनुभव करने लगी थी।ऐसा होगा, यह उसकी कल्पना से परे था।जो कुछ घटा उसे सहज स्वाभाविक मानकर स्वीकार किया जा सकता था। क्या जरूरत थी यह नाटक करने की ? उस आदमी ने कई बार उसे अपमानित किया था, अल्बर्टो ने भी उसके प्रति अपनी मनोभावनाओं से घृणा व्यक्त की थी।
अल्बर्टो उसे क्या समझ रहा है, जानने की उत्सुकता उसके मन को दुखी कर रही थी, उसी वक्त उसका एसएमएस आया: " माय स्वीट हार्ट, हाना, माय लव। सॉरी फॉर माय बिहेवियर व्हिच माइट हर्ट यू। माय डार्लिंग,आई एम सेंडिंग दिस टू टेल यू, हाऊ मच आई नीड़ यू एंड वांट यू।"
हर्षा ने उस एसएमएस का जवाब नहीं दिया। हालांकि वह जानती थी कि अल्बर्टो भयानक मानसिक दबाव से गुजर रहा है। फिर से मोबाइल बजने लगा और उस तरफ से अल्बर्टो पूछने लगा: "तुमने मेरे एसएमएस का उत्तर क्यों नहीं दिया? क्या तुम सो गई थी? "
“मगर बदले में वह क्या जवाब देती? नहीं, मैं तुम्हारे व्यवहार से दुखी नहीं हूं ? या तुम्हारे व्यवहार पर मैं आश्चर्यचकित हूं? क्या इस तरह के जवाब का कुछ अर्थ हैं? मगर इस तरह की घटनाओं से आप जितना दूर रहेंगे, उतना ही बेहतर है। कुछ घंटों पहले अल्बर्टो वासना के दलदल में कूद पड़ा था। वही वासना अल्बर्टो के शून्य दृष्टि से उड़ गई थी बहुत समय से। भूल से वह चला गया था अंधेरे, घने जंगल के रास्ते में, मगर फिर से उसे अपने परिचित रास्ते पर लौटना पड़ेगा। हर्षा नहीं समझ पाई यह पहेली। आखिर, उसकी हर्षा से क्या उम्मीद थी? क्या उसे सचमुच पश्चाताप हो रहा है अपने किए पर या वह उसे खोने के डर से परेशान है? हर्षा ने मैसेज भेजा: "देट ओके। डेफ़िनेटली आई विल नॉट।" उसने मैसेज भेजने के बाद मोबाइल बंद कर दिया। नहीं तो सारी रात सवाल पूछकर वह परेशान करेगा।
वह देर रात तक नहीं सो पाई । इसलिए अगली सुबह उठने में उसे देर हुई। अगर कोई दरवाजे पर नहीं खटखटाता तो वह दोपहर तक सोती रहती। पड़ोसी घर की छोटी बेटी 'नवमी पूजा' की 'प्रसाद' लेकर बाहर खड़ी थी। पूड़ी, हलवा, मिठाई, नमकीन और तरकारी हर्षा को पसंद नहीं थी। पास घर की राजस्थानी महिला ने उसे नवमी के दिन कन्या-पूजा के बारे में बताया था। एक दिन पहले उसने आस-पड़ोस की छोटी लड़कियों को खाने पर बुलाया था, और हर्षा को उसकी सहायता करने के लिए कहा था। मगर हर्षा पूरी तरह से भूल गई और दिन में दस बजे तक सोती रही। वह स्त्री क्या सोच रही होगी उसके बारे में ? हर्षा जानबूझकर उसकी मदद करने नहीं आई? पड़ोसी फ्लैटों के छोटे बच्चों का कोलाहल होने लगा, शायद वे पूजा में भाग लेकर अपने घर वापस लौट रहे होंगे। हर्षा ने उस लड़की से पूछा: "क्या पूजा खत्म हो गई है?" उस लड़की ने अपना सिर हिलाकर हामी भरी और दौड़कर वहाँ से चली गई।
वह अभी तक नहाई नहीं थी। वह उसके घर कैसे चेहरा दिखा सकती थी ? उसे फिर से अपनी मां की याद आ गई और वह उदास हो गई।यदि वास्तव में माँ का हाथ जल गया होगा तो उसे कितना दुख हो रहा होगा। क्या उसे अपनी मां की देखभाल नहीं करनी चाहिए थी ? कल की घटना से वह इतनी परेशान थीं कि वह अपनी मां को फोन करना भूल गई। माँ के साथ एक बार बात करना ठीक रहेगा, सोचकर उसने मोबाइल स्विच ऑन किया। जब वह ब्रश, पेस्ट और कपड़े लेकर बाथरूम में जाने वाली थी, तो एक मैसेज आया:"मैं आ रहा हूं। अल्बर्टो।"
हर्षा चिंतित हो गई, आज ही सब-कुछ उलट-पुलट होना था। वह 'नवमी' के दिन दस बजे उठ रही है। वह एक छोटी जिम्मेदारी भी नहीं ले सकी , पड़ौसन क्या सोचती होगी ? फिर अल्बर्टो को आज ही आना था ? वह पहले कभी नहीं आया था। उसकी सहेलियाँ नवीना और भैरवी यहाँ नहीं है, तभी शायद वह यहाँ आना चाह रहा है ।
अल्बर्टो ने कहा था, "हम यूरोपीयन किसी भी व्यक्ति के भीतर नहीं झाँकते हैं। हर किसी को अपनी गोपनीयता की रक्षा करने का अधिकार है। मगर तुम्हारे देश के लोग बेकार ही दूसरों के मामलों में टांग अड़ाते हैं। मेरी बात को अन्यथा नहीं लें, मगर क्या यह सच नहीं है? "
वही अल्बर्टो बिना किसी आमंत्रण के उसके घर आ रहा है।?
जल्दी से हर्षा ने अपने बिस्तर व्यवस्थित कर दिए। नवीना और भैरवी के कागज-पत्र,कपड़े भी। नहीं, वह अल्बर्टो को मना नहीं कर पाएगी। कल उसने पूरा दिन उसके घर में बिताया था। किस मुंह से वह उसे अपने घर आने से इंकार कर सकती है ? घर सजाकर वह बाथरूम में जल्दी से घुस गई। कम से कम अल्बर्टों के पहुँचने से पहले उसे नहाने-धोने के काम पूरे कर देने चाहिए।
जब हर्षा स्नान कर रही थी , तो मोबाइल फिर से बज उठा। फिर किसने उसे फोन किया ? मोबाइल में रिंग होती रही और फिर बंद हो गया ; उसने फोन नहीं उठाया। बाथरूम से निकालकर जब वह अपने बाल सुखाने लगी, तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। अल्बर्टो आ गया है? सिर पर तौलिया लपेटकर उसने दरवाजा खोला।
"हे, तुम सुबह-सुबह यहाँ ?सब-कुछ ठीक है? भीतर आओ।" उसने उसे घर में आमंत्रित किया, "बैठो, मैंने अभी स्नान किया है। मुझे बहुत देर हो गई, आज उठते-उठते। "
अल्बर्टो ने चौकी खींच ली और उस पर बैठ गया। हर्षा ने कहा: "हमारा घर बहुत छोटा है।"
"नहीं, नहीं, यह ठीक है," अल्बर्टो ने जवाब दिया।
अपने सिर से तौलिया खोलकर हर्षा ने बालकनी में सूखा दिया। अपने गीले बालों में कंघी घुमाते हुए वह पूछने लगी:"क्या तुम्हारे पास आज पूछने के लिए बहुत सारे सवाल हैं?"
"क्या तुम्हें लगता है कि मैं केवल सवाल पूछने के लिए तुम्हारे पास आऊँगा, अन्यथा नहीं? तुमने कल संक्षिप्त मैसेज भेजकर अपना मोबाइल बंद कर दिया था,इसलिए मैं चिंतित था। क्या तुम मुझसे नाराज हो, अब भी? "
"मैं तुमसे क्यों नाराज होऊंगी? लेकिन सही कह रही हूँ, मैं तुम्हारी मानसिकता नहीं समझ पाई । "
अल्बर्टो उसकी सारी बातें सुनने के बाद चुप रहा। हर्षा बालकनी के पास खड़ी होकर अपने बाल संवार रही थी। दोनों के भीतर चुप्पी प्रबल थी। पीठ के पीछे बाल लहराती हुई वह बाथरूम में अपने हाथ धोने चली गई। अलमारी खोलकर उसने देवताओं की तस्वीरों के सामने धूप जलाया।वह अल्बर्टो की उपस्थिति के कारण थोड़ा अजीब महसूस कर रही थी। अगर किसी ने इस घर में इस गोरे आदमी को आते देख लिया तो ? नहीं, दिल्ली इतनी बड़ी जगह थी कि किसी के पास किसी के संबंध में हस्तक्षेप करने का कोई समय नहीं है। चिंता का एकमात्र विषय है, उसकी गोरी चमड़ी, जो आँखों को आकर्षित करती है।पड़ोसन की उत्सुकता बढ़ सकती है।
धूपदानी में अगरबत्ती लगाने के बाद, जब वह भैरवी की चौकी पर बैठी तो अल्बर्टो ने कहा: "वाह! इतनी प्यारी सुगंध। क्या तुम्हारी पूजा खत्म हो गई है?"
हर्षा ने सिर हिलाया।
"क्या मैं तुम्हारे भगवान को देख सकता हूँ?"
"भगवान केवल मेरे ही नहीं हैं, वे सभी के हैं। "
हर्षा ने हँसते हुए अलमारी खोली और कहा, “आओ, अल्बर्टो, देखो।”
अलमारी के सामने खड़ा होकर पूछने लगा, "क्या तुम सभी की पूजा करती हो ?"
"हां, हमें सभी की पूजा करनी होती है।"
"क्या तुम मुझे अपने देवताओं का परिचय नहीं कराओगी ?"
वह अल्बर्टों की बात सुनकर हँसने लगी। "क्या ये इंसान हैं कि मैं उन्हें तुमसे मिलवाऊंगी? ठीक है, मैं बताती हूँ। ये जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा हैं; यह काली है, उसके पास में दुर्गा हैं, उसके बाद सरस्वती, उसके पास गणेश है। यहां शिव और पार्वती हैं। "
"क्या तुम एक ही समय में उनकी पूजा करती हो?"
"हां, तुमने इसे अभी देखा नहीं? हम तीन सहेलियाँ यहाँ रह रही हैं। हमने स्वयं अपनी आस्था के अनुसार अलमारियों में देवी-देवताओं की तस्वीरें रखी है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि वह केवल अपने देवताओं की पूजा करेगी, दूसरों की नहीं। हम सभी जानते हैं कि भगवान एक है, मगर हमने उन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। "
"और, वह शिव होने चाहिए," अल्बर्टो ने अपनी उंगली से इशारा करते हुए कहा।
"मैंने तुम्हें शिव के बारे में एक अच्छी कहानी सुनाई थी, क्या याद है?"
हर्षा मुस्कुराई: "तो क्या तुम्हें याद है? ठीक है, मुझे बताओ कि मैं तुम्हारे लिए कौनसा नाश्ता तैयार करूंगी? सुबह जल्दी ही तुम बाहर निकल गए हो, कुछ भी नहीं खाया होगा ? "
" किसने कहा? मैंने सुबह चॉकलेट केक खाया है । "
"सुबह-सुबह चॉकलेट केक? इसलिए तुम्हारे दांतों की यह स्थिति है ? "
अपने पड़ोसी द्वारा दी गई प्रसाद की पूरी थाली को उसके सामने हर्षा ने रख दिया।
"अल्बर्टो, चलो इसे मिलकर खा लेते हैं। ऐसे भी मैं इतना नहीं खा पाऊँगी।" उसने प्रसाद को दो अलग-अलग प्लेटों में बाँट दिया।
अल्बर्टो ने पूछा: "क्या यह ‘अर्ध-नारीश्वर’ की मूर्ति है?"
"तुम इस शब्द के बारे में कैसे जानते हो ?"
"मुझे पता है कि तुम शैव हो और समुद्र-मंथन की कहानी सुनने के बाद मैंने उनके बारे में अध्ययन किया।"
हर्षा को अल्बर्टो का यह गुण बहुत अच्छा लगता है। सचमुच! इसी ज्ञान-भंडार के प्रेम में पड़कर वह धीरे-धीरे उसके नजदीक हो गई। हर्षा ने कहा: "तुम गलत कह रहे हो, अल्बर्टो यह मूर्ति 'अर्ध-नारीश्वर’ की नहीं है, मगर यह शिव-पार्वती की युगल मूर्ति है। क्या तुम जानते हो कि अर्ध-नारीश्वर’ क्या है? आधा पुरुष और आधी नारी के रूप का प्रतीक है। शिव है पुरूष का प्रतीक और पार्वती प्रकृति की। शिव और शक्ति के संयोग से इस ब्रह्मांड से कीट तक की सृष्टि हुई है। "
"फिर, क्या यह प्रकृति नारी है?" अल्बर्टो ने पूछा।
"हां, तुम सही अनुमान लगा रहे हो, प्रकृति नारी है।"
"इसका मतलब है, तुम द्वैतवाद के दर्शन में विश्वास करती हो? मगर शंकराचार्य अद्वैतवादी थे। मेरा मानना है कि वह सही थे, "अल्बर्टो ने बहस करना शुरू कर दिया।
"ये अलग-अलग मत हैं। भारत में वैदिक काल से विभिन्न मत प्रचलित हैं। किसी ने ईश्वर को एक माना तो किसी ने पुरुष और स्त्री दोनों के अस्तित्व की कल्पना की । कौनसा मत सही है,कौनसा मत गलत है, यह सोचना अर्थहीन है। उपनिषद में कहा गया है- "मायाम् तू प्रकृति विद्यात, मायिनम तू महेश्वरम्" - जिसका अर्थ है कि 'माया' कुछ भी नहीं है बल्कि 'प्रकृति' है और इस 'माया' का निर्माता है 'महेश्वर'। क्या यह एक ही अस्तित्व का मतलब नहीं है? सुनो, अल्बर्टो, इस बारे में एक सुंदर कहानी आती है। "
"मुझे वह कहानी सुनाओ, हाना?"
"निश्चित रूप से। सृष्टि के शुरुआत की कहानी। महाशक्ति योगमाया इधर-उधर अकेली घूम रही थी। बिना किसी साथी के । धीरे-धीरे उसकी निसंगता असहनीय हो गई थी। अपनी निसंगता दूर करने के लिए उसने अपने शरीर से 'आदिपुरुष' ब्रह्मा पैदा किया और उससे अनुरोध किया कि वह उसके अकेलेपन को दूर करे। मगर ब्रह्मा ने जन्मदात्री महिला से शादी कैसे की जा सकती है, का एक उचित प्रश्न उठाया। इससे असंतुष्ट होकर प्रकृति-स्वरूपिणी योगमाया ने उसे जलाकर राख कर दिया। इसके बाद उसने विष्णु को बनाया और विष्णु से वही अनुरोध दोहराया। जब उन्होंने मना कर दिया, तो उसे भी जला दिया। दिन-ब-दिन देवी का अकेलापन असहनीय होता जा रहा था। इस बार उसने बनाया अपने स्वयं के शरीर से महेश्वर को। महेश्वर के सामने अपनी इच्छा व्यक्त करने पर महान योगी महेश्वर उनकी मंशा समझ गए और न्याय-अन्याय के मानदंडों का उल्लंघन कर प्रकृति और पुरूष की सृष्टि-प्रक्रिया में आवश्यकता को प्राथमिकता देते हुए प्रकृति को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और वहां से सम्पूर्ण सृष्टि पैदा हुई । क्योंकि प्रकृति की दृष्टि में, काम सखा है,काम भ्राता है,काम देव महेश्वर है।
खाना खाते हुए अल्बर्टो ने पूछा: " यह क्या मिथक है?"
"हां, सभी कहानियां पौराणिक कथाओं में सुनाई जाती हैं मगर, अल्बर्टो, तुम इन मिथकों को कवि की कोरी कल्पना या अवैज्ञानिक कहकर टाल नहीं सकते। तुम तो बहुत अच्छी तरह जानते हो कि विश्व के सारे दर्शनों में भारतीय-दर्शन अपनी तार्किकता के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
अल्बर्टो हँसने लगा: "तुम बहुत भावुक हो रही हो, हाना।"
"ऐसा बात नहीं है, अल्बर्टो, तुम्हें उपनिषदों में निश्चित रूप से कपिल-मुनि के प्रकृति-पुरूष की कहानी मिलेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति निर्जीव है और पुरुष चेतन है और उनके मिलन से सारी सृष्टि संभव हो सकती है। इस दर्शन को 'सत्कार्यवाद' के नाम से जाना जाता है। अल्बर्टो, हम भौतिक विज्ञान से जानते हैं कि दो शक्तियां हैं: एक पॉज़िटिव और दूसरी नेगेटिव। नेगेटिव आवेश को भौतिक विज्ञान में हम इलेक्ट्रॉन कहते है, जो अस्थिर और क्रियाशील है।पॉज़िटिव आवेश को प्रोटॉन कहा जाता है, जो स्थिर है। उनके संयोजन से एक परमाणु बनता है, जिससे जगत की सृष्टि होती है। इस जगत की प्रत्येक वस्तु में,प्राणी में,जंगम में हमें एक ही थ्योरी मिलेगी। चाहे पूरी ग्रह प्रणाली की बात हो या संपूर्ण जीवित विश्व। "
"ओह, यू आर वंडरफूल माय गर्ल, देट व्हाय आई एडोर यू।"
उसकी बात को अनसुनी करते हुए हर्षा ने पूछा: "क्या चाय पीओगे ?” दोनों हाथों में जूठी प्लेटें लेकर वह रसोईघर में चली गई थी। अल्बर्टो ने उसका पीछा किया: "मुझे लगता है कि तुम अभी भी मुझसे नाराज हो।"
"नहीं, मैं क्यों नाराज होउंगी ?"
"प्लीज फोरगिव मी, माय स्वीट हार्ट !" अल्बर्टो ने अपना सिर थोड़ा नीचे झुकाया।
"ऐसा मत कहो, अल्बर्टो। मुझे बुरा लगेगा। मैं तुमसे प्यार करती हूं और तुम्हारा सम्मान करती हूं। यदि तुम एक अपराधी की तरह मेरे सामने सिर झुकाकर खडे रहोगे तो मुझे बुरा लगेगा। मैंने तुम्हें पहले ही बता दिया है कि मैं तुम्हारी आँखों को नहीं पढ़ सकी, अन्यथा इसमें नाराज़ होने की क्या बात है।
"मैं तुम को सब-कुछ बताऊंगा, निश्चित रूप से मैं तुम को बताऊंगा, "अल्बर्टो ने अपनी असहायता व्यक्त की।
हर्षो ने दोहराया: "तुमने मुझे बताया नहीं कि चाय पीओगे या नहीं?"
"नहीं, मैं नहीं पीऊँगा ।"
हर्षा एक कप चाय जल्दी तैयार कर खाट पर बैठ गई। "सुनो, अल्बर्टों, सृष्टि-तत्व पर वेद में एक और कहानी है। कामदेव नामक ऋषि ने इसे मिथुन तत्व के रूप में प्रतिपादित किया है। सृष्टि-देवता ने पहले एक गाय बनाई और उसके साथ संभोग किया, फिर मवेशी वर्ग पैदा हो गया था। पितामह के उत्पीड़न से मुक्त होने के लिए गाय अलग-अलग रूप धारण करने लगी। जिससे कई चीजें बनी। गाय को प्रकृति की और आदिकर्ता को पुरूष की परिभाषा दी गई।
"चीन में युन्गिविन की ऐसी ही अवधारणा है। तब तुम मेरी प्रकृति हो और मैं तुम्हारा पुरूष हूं? "अल्बर्टों ने मुस्कुराते हुए पूछा।
वास्तव में, अल्बर्टो नहीं समझ पाया। वह उसके साथ शास्त्रों पर आलोचना करेगी। कान में प्रेम के मंत्रों को पढ़ने के साथ-साथ जब वह शरीर के प्राकृतिक आवेगों की संतुष्टि करने वाले ऋषि की तरह पूरी तरह से नाराज हो जाएगा, जिसका ध्यान-भंग हो गया हो। यह क्या था ? प्यार की अभिव्यक्ति निश्चित रूप से शरीर में उत्पन्न होती है तो क्या शरीर के बिना प्रेम का कोई अर्थ है? भले ही, उस आदमी के साथ उसके शारीरिक संबंध थे, मगर प्यार नहीं। फिर भी देखो कैसे निरर्थक था।
अल्बर्टो ने कहा: "मुझे पता है कि कल की घटना के बाद तुम थोडी परेशान हो। नहीं, मैं वास्तव में सेक्स को पाप नहीं मानता हूं। ऐसा नहीं है कि मैंने सेक्स नहीं किया है। यदि मैं ऐसा कहता हूं तो गलत कहता हूँ। मैं नैष्ठिक पवित्र नहीं हूँ। यदि तुम मुझे ऐसा ऋषि मुनि समझती हो तो मुझे दुख लगेगा। मगर मैं सेक्स के प्रति थोड़ा उदासीन हूँ। बल्कि तुम कृपण कह सकती हो।”
आश्चर्य से हर्षा ने उसकी तरफ देखा। अल्बर्टो के कहने का क्या मतलब था? उसने कहा: "आई लव वुमेन। आई एम नॉट एन इम्पोटेंट, बट आई मेक लव विद पार्सीमनी। "
हर्षा की चुप्पी देखकर उसने कहा, " मैं तुम्हें और खोलकर कह देता हूँ। मुझे नहीं लगता कि एक पुरुष और एक महिला का मिलन पाप है, और न ही मुझे लगता है कि नारी नरक का द्वार है। यदि किसी को हानि नहीं पहुँचती है, तो विवाहेतर संबंध गलत नहीं है।शायद मैं भगवान बुद्ध के निवृत्ति तत्व के कारण सेक्स के प्रति थोड़ा उदासीन हूँ। "
मगर जब उसने अल्बर्टो की तरफ देखा तो उसे लगा कि कुछ अनकहा उसकी छाती में रह गया था। हर्षा ने कहा: "छोड़ो, अब आलोचना यहाँ बंद करो। जीवन में कई आकस्मिकताएँ घटती हैं, कल की घटना ऐसा ही मान लो।"
"नहीं, हाना, मैं सचमुच में तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। नहीं, मैं बिल्कुल दुखी नहीं हूँ और न ही विचलित हूं,हमारे शारीरिक संबंध स्थापित होने के कारण। अगर कल नहीं, तो निश्चित रूप से किसी दूसरे दिन ऐसा होता। प्यार में सम्पूर्ण समर्पण की भावना होती है। नाखून बढ्ने की तरह,मेरे मन में तुम्हारे प्रति कामना पैदा हो रही है।इच्छा हो रही है तुम्हारे बहुत करीब जाने की, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। मगर मेरी समस्या कहीं और है। समस्या उस क्षण की नहीं है, मगर बाद वाले समय की है।मैं शक्तिहीन हो जाता हूँ, मुझे भयंकर हैंगओवर हो जाता है,पता नहीं क्यों ?"
"यह स्वाभाविक है, मगर अल्बर्टो, उस दिन मैंने तुम्हारी आँखों में थकावट की जगह शून्यता और कंगालपन देखा था।"
दोनों ही चुपचाप कुछ समय के लिए बैठे हुए थे। उस समय उन्हें सड़क पर गाड़ियों की आवाज, छोटे-छोटे बच्चों की हंसने-रोने की आवाज, दीवारों पर कील ठोकने की आवाज और प्रेशर कुकर की सीटी-कुछ भी सुनाई नहीं दे रही थी, जबकि ये आवाजें पहले से ही आ रही थी। दोनों ही इस शब्द-ब्रह्मांड में दो कठपुतलियों की तरह बैठे हुए थे। अल्बर्टो ने कुछ समय बाद चुप्पी तोड़ी।
"जब मैं छोटा बच्चा था। चार-पांच साल का था। मेरे साथ एक भयानक हादसा हुआ। हमारे घर के पास एक आधा पागल आदमी रहा करता था, जिसे तुम क्रेज़ी कह सकते हो। उसने मुझे रास्ते से अपहरण कर अपने घर में बंद कर दिया। उसने अपने बंद घर में कई दिनों तक मेरा यौन शोषण किया। एक दिन मौका देखकर मैं उसके घर से भाग गया, सीधे अपने घर की तरफ। मैं उसकी यातना से गंभीर रूप से घायल हो गया था। घाव सूखने में कई दिन लगे। बेशक, मैंने उस व्यक्ति को अपने अपराध के लिए क्षमा कर दिया। मगर मैं आसानी से किसी पर भरोसा नहीं कर पाता। उस घटना के बाद मैं हमेशा संदेह की दृष्टि से हर किसी की तरफ देखता हूँ। मुझे लगता है, बचपन का यह डर अभी भी मुझमें समाया हुआ है और मुझे समय-असमय डराता है। "
ऐसा लग रहा था जैसे घनघोर बादल बरसने लगे हो और बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही हो।
"क्या मैं तुम्हें एक बात पूछूँ, हाना? मुझे आशा है कि तुम उसे बुरा नहीं मानोगी। "
"ठीक है, हमारे बीच क्या छुपा हुआ है, जिसके लिए तुम्हें मेरी अनुमति की आवश्यकता हो ?"
अल्बर्टो ने अचानक अद्भुत प्रश्न उठाया। तुम्हारा वैवाहिक जीवन तो बिल्कुल सुखी नहीं था। जितने दिन तुम उस आदमी के साथ रही, उसने तुम्हारा यौन-उत्पीड़न किया था। क्या तुम उस दर्दनाक अतीत को भूलकर जीवन की सुखद अनुभूति प्राप्त कर सकती हो? शायद मैं इस प्रश्न को ठीक से नहीं रख पा रहा हूं, मगर मुझे लगता है कि तुम पहले की तरह दुखी नहीं हो।
वह अल्बर्टो को यह कैसे समझा सकती है? क्या सब-कुछ तर्क द्वारा समझाया जा सकता है?
शोवेल लेकर कोई लगातार वार करता जा रहा था।
चट्टान के नीचे पानी की खोज में
पसीने से तर-बतर आदमी का कांपता शरीर
फिर भी जल-स्रोत का कोई ठिकाना नहीं
पत्थर निर्विकार
वार पर वार ।
प्रत्येक वार पर फूलती सांसें
मजबूत मांसपेशियों वाला
काकुस्थ पुरुष
पानी की खोज में
बार-बार व्यर्थ होता उसका मनोरथ
इतने दिनों के निर्विकार पत्थर
शोवेल के आघात से घायल, जर्जरित
दाँत भींचते करते सहन प्रत्येक आघात ,
मगर इस बार शोवेल के आघात से
सिहरित हो उठा पत्थर
कांपा शरीर धन्वाकार ,
बारिश की पहली बूंद
समुद्र का पहला दर्शन
किशोर गाल का चुंबन
या आसन्न मृत्यु की कल्पना
शरीर पर स्तंभित रोमकूप
एक अदृश्य स्पर्श से।
उस सिहरन में
प्रबल आकांक्षाएं
किसी भी पल गिरता जल-प्रपात
यहां देखो, यहां देखो
पत्थर फुसफुसा रहा था:
माटी के बंधन से मुझे मुक्त कर दो
देखते-देखते पानी खोदने वाला शोवेल
खुद पानी बन गया
चट्टान की सतह पर गिर गया
चारों ओर कल-कल,छल-छल शब्द
'पूर्णमिदम' मंत्रोच्चारण के साथ
देखते-देखते डूब गया
पानी के भीतर,
इतने दिनों का निर्विकार पत्थर
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