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अल्बर्टो ने हर्षा को उसे लेडी ऑफ फातिमा की कहानी सुनाने के लिए बुलाया।तेरह  अक्टूबर, रविवार का दिन था। नवीना पारेख नवरात्रि-उत्सव के लिए अहमदाबाद चली गई थी।भैरवी चक्रवर्ती  'षष्ठी' पर अपना सूटकेस लेकर कलकत्ता चली गई। घर पर हर्षा को बोर लग रहा था। अल्बर्टो का फोन आया, ' क्या कर रही हो, हाना? मैं तुम्हारे लिए एक अच्छी फिल्म लाया हूँ।  क्या तुम आ सकती हो? हम एक साथ फिल्म देखेंगे। रविवार अच्छे ढंग से कट जाएगा।इसके अलावा, आज मेरे लिए एक स्पेशियल दिन है। यह मेरे देश के लिए विशेष दिन है। आज का दिन निश्चित रूप से मेरे  देश में मनाया जाता है। "
 "स्पेशियल दिन किस खुशी में है, अल्बर्टो? क्या तुम्हारा कोई त्योहार है?”
आज फातिमा-दिवस है। लेकिन तुम क्या फोन पर सब-कुछ जानना चाहती हो? तुम आओ, मैं तुम्हें उसकी कहानी सुनाऊँगा।"
 हर्ष का मानना ​​था कि इन विदेशियों के आम तौर पर अधिक त्योहार नहीं है, इसलिए वे फादर डे,मदर डे, वेलेंटाइन डे आदि जैसे दिनों के नाम से त्योहार मनाते है।  फातिमा कौन है? जिसके नाम पर डे मनाया जाता है?
इस बार वह दुर्गा पूजा पर घर नहीं गई। उसकी माँ बार-बार फोन पर उससे पूछ रही थी: "कुनी, तुम नहीं आओगी तो मैं अकेले पूजा देखने कैसे जाऊँगी? क्या तुम मेरी  गठिया की बीमारी के बारे में नहीं जानती हो? मैं न तो बैठ सकती हूं और न ही झुक सकती हूं,। तुम्हारे पिता नौ दिनों  तक निष्ठा से पूजा करते हैं। तुम्हारी बुआ को आँखों से दिखता नहीं है।"
हर्षा के सामने मां ने जितना संभव था, उतनी अपनी असहायता को प्रकट किया
हर्षा को बहुत अच्छी तरह से पता है कि मां आजकल जोड़ों के दर्द के कारण उठ-बैठ नहीं पा रही है।वह जानती है कि उसका भाई विदेश में है। वह कैलिफ़ोर्निया से तुरंत यहाँ उड़ कर नहीं आ सकता।उसकी बुआ भी काम की नहीं रही; मगर हर्षा चाहती तो आसानी से अपनी मां की सहायता कर सकती थी। वह वास्तव में अपनी मां, पिता, अपने आप पर और भगवान पर रुष्ट थी। वह केवल गुस्से के कारण जगन्नाथ मंदिर  में भी नहीं जाती थी। आजकल उसने उपवास-व्रत करना छोड़ दिया है। सभी से उसका विश्वास उठ गया है।उसे अपने लोग भी अजनबी लगने लगे हैं। उसे अपने माता-पिता पर भी भरोसा नहीं रहा। पता नहीं क्यों,उसे ऐसा लग रहा है  कि उसके खिलाफ कोई साजिश चल रही है। उसे संदेह हो रहा है कि उसकी मां के फोन के पीछे भी कुछ गुप्त मकसद हो सकता है।उसके मन में हर मनुष्य के प्रति  अविश्वास पैदा हो गया है,फिर भी पता नहीं किस फांक से अल्बर्टो उसके जीवन में घुस गया था।
छोटे बच्चे के रोने पर लॉलीपॉप खिलाने की तरह पिता ने शायद उसे दिल्ली भेज दिया था। वे सोच रहे थे कि जब वह दो साल में अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी, तब तक उसका मन बदल जाएगा। कोई भी उसकी पीड़ा नहीं समझ पा रहा था? यही कारण है कि हर्षा नाराज होकर खुद उन लोगों से दूर चली गई। इस दौरान  माँ ने चार- पांच बार फोन किया था।हर्षा कभी पढ़ाई का बहाना कर, कभी चुप रहकर और कभी विरोधकर उनसे दूरी बनाए रखती थी। वह मुक्ति चाहती थी, दर्द से मुक्ति।उसने हर एक को मनाने के लिए अपनी पूरी कोशिश की थी, लेकिन कोई उसे समझ नहीं पाया। किसी के पास उसकी आर्तनाद नहीं पहुंची।

अल्बर्टो ने सब-कुछ भूला दिया था उसे। कम से कम बुरे सपने की तरह पुराने दिन उसके अस्तित्व को मिटाने  के लिए उद्यत नहीं होते थे।जीवन उस पर और अधिक बोझ नहीं डाल रहा था।पता नहीं क्यों, उस समय उसे  अल्बर्टो बहुत करीब और अंतरंग लग रहा था। अल्बर्टो का विचारशील चेहरा और मुस्कुराहट क्लोज-अप बनकर उसकी आंखों के सामने तैरने लगा। उनका पसंदीदा रंग नीला था। हर्षा ने एक नीले रंग की राजस्थानी कढ़ाई वाली पोशाक पहन ली थी। लंबे समय से उसने चेहरे पर पाउडर नहीं लगाया था, अब उसने लगाना चालू किया था। उसने कभी लिपस्टिक का इस्तेमाल नहीं किया था, वीना के अलमारी से निकालकर इसे भी लगा दिया हल्का-हल्काउसका यह रूप देखकर सकी दोनों सहेलियाँ पता नहीं क्या टिप्पणी करती? चिढ़ाने लगती ? तुम इतनी सज-धज किसके लिए रही हो ? कहीं तुम उस गोरे के प्यार के चक्कर में तो नहीं पड़ गई हो ? वास्तव में इसलिए तुम इस बार घर नहीं गई ? "
हर्षा उन्हें कैसे समझाती? पुरी नहीं जाने के क्या कारण हो सकते है? अचानक वह उदास हो गई। दर्पण में उसका चेहरा ऐसा दिख रहा था मानो किसी कब्र पर फूलों का गुलदस्ता रखा हो।
अल्बर्टो उसकी प्रतीक्षा में होगा।उसे जाना चाहिएलेकिन इस पोशाक में? वह क्या सोचेंगा?  कहीं यह  नहीं सोचेगा  कि खास तैयारी के साथ वह क्यों आई है? नहीं, वह उसके सामने अपनी दुर्बलता का पर्दाफाश नहीं करेगी। बाथरूम में जाकर हर्षा ने अपने चेहरे को साफ धोया। उसके बाद पता नहीं क्यों उसे सहज लगने लगा
 
पड़ोसी घर की छोटी लड़की उसे अपने घर में पूजा के लिए आमंत्रित करने आई थीं। इसलिए हर्षा कमरे में ताला लगाकर बाहर आ गई। उसे याद आने लगा कि इन दिनों उसके घर में कितने उत्सव मनाए जाते थे। दो चाचा घर आते थे। दादाजी  नौ दिन उपवास करते थे। भले ही वे वैष्णव थे, मगर शक्ति  की पूजा उनके घर में लंबे समय से चलती आ रही थी। फालाहर और दूध को छोड़कर  उसके दादाजी इन नौ दिनों में कुछ भी नहीं छूते थे। मगर उनके घर में खिचड़ी और पीठा बनते थे। दादाजी कहते थे,जगतधात्री माँ परम वैष्णवी हैकन्या-रूप में उसकी पूजा की जानी चाहिए
 
यही कारण है कि शायद मेरी सबसे बड़ी बुआ की पूरी जिंदगी कन्या-रूप में बीत गई। कन्या नहीं है, तो और क्या है? आठ साल की उम्र में उनका बाल-विवाह हुआ था। जब वह रजस्वला हुई तो उसके ससुराल वाले उसे एक नई दुल्हन के रूप में पारंपरिक उपहारों के साथ ससुराल ले जाने की जिद्द करने लगे। दादाजी जिस बैलगाड़ी में वीर पुरुषोत्तमपुर गए थे, उसी शाम उसी गाड़ी में बुआ को ले आए थे। नहीं, बुआ की सुहाग रात भी नहीं हुई थी। दादाजी ने कहा कि उकी सबसे बड़ी बुआ एक परम वैष्णवी हैकोई भी पुरुष उसे स्पर्श नहीं करेगा। कन्यादान नहीं करने के पाप से बचने के लिए उसकी कहीं शादी करा दी गई थी
 
दादाजी को तर्क में हराने वाले उस समय बहुत कम लोग थे। वे ग्रंथों और पुराणों से उदाहरणों का हवाला देते हुए सभी को परास्त कर देते थे
 
उसी दादाजी की इच्छा के कारण उसका जीवन बदल गया था। उस समय वह लगभग बीस या उससे थोड़ी अधिक होगी, उसके विवाह का निर्णय लिया गया था। जब कोई बुआ की पीड़ा को नहीं समझ पाया तो  उसकी पीड़ा समझने के लिए किसी से क्या उम्मीद की जा सकती थी ? हर्ष ने याद आ गया- दक्षिण दिशा में खुली खिड़की, वह खिड़की जो कभी बंद नहीं हुई थी। वह खिड़की फोटो-फ्रेम की तरह उसका क्लोज-अप बांधकर रखती थी। कभी-कभी प्रतीक्षा करते-करते सुबह की ठंडी हवा में उसकी आँख मूँद जाती थी और उस झरोखे के पास अनिद्रा से उठकर उसने कई रातें गुजारी थीं। वह मिट्टी के गीले लोथड़े की तरह खिड़की के रेलिंग के पास ढुलक जाती थी।  
कभी वह आदमी सुबह-सुबह लौट आता था,कभी आधी रात को। कभी वह पूरी रात पैर पसारे फाटक के पास पड़ा रहता था,जबकि दक्षिण दिशा की खिड़की के पास प्रतीक्षारत हर्षा कुछ भी समझ नहीं पाती थी।
जब हर्षा अल्बर्टो के घर पहुंची तो वह अपने लैपटॉप पर टाइपिंग कर रहा था।हर्षा को देखकर कहने लगा,"तुमने बहुत देर कर दी,हाना।आज मैंने तुम्हारे लिए विशेष भोजन बनाकर रखा है। "
"इसका मतलब आज अच्छा खाना मिलेगा।"
लैपटॉप से अपना चेहरा ऊपर ​​उठाकर उसने कहा, "वाह, वाह, यू आर लुकिंग ब्युटीफूल।" हर्षा चौंक गई थी। क्या उसके होंठों पर लिपस्टिक अभी भी लगा हुआ है ? पता नहीं क्यों उसने इसका उपयोग किया,वह थोड़ी शर्मा गई। अल्बर्टो ने उसे बताया कि नीला उसका पसंदीदा रंग है।वह कहने लगा, "तुम इस नीले रंग की पोशाक में बहुत आकर्षक दिख रही हो, लेकिन मुझे लग रहा है कि तुम मानसिक रूप से परेशान हो। क्या कोई दिक्कत है? "
"नहीं" हर्षा ने जवाब दिया।
"लेकिन ऐसा लग रहा है मानो बादलों की ओट में चाँद छुप गया हो।"
" तुम साहित्यकार कब से बन गए हो?" कहकर हर्षा हंसने लगी,"अच्छा, तुमने मुझे फातिमा-दिवस पर आधारित कहानी सुनाने के लिए कहा था।"
"हां, निश्चित रूप से।"  लैपटॉप बंद करते हुए उसने टेबल पर रख दिया। वह कहने लगा, "फातिमा के नाम पर पुर्तगाल में एक जगह है। यह 1917 के मई महीने की बात होगी। हां, वह 13 तारीख थी। लुसिया सैंट्रोस, फ्रांसिस्को मार्टो और जसिंतिया नामक तीन औरतें  अपनी-अपनी भेड़-बकरियों का चराते समय ध्यान रखती थी। मदर मेरी फातिमा के पास उन्हें दिखाई दी। बाद में उन्होंने प्रसार किया कि उन्होंने मदर मैरी को देखा और उन्हें तीन गुप्त चीजें पता चल गई हैं। तत्कालीन शासक ने उन्हें 13 अगस्त को राजनीति प्रेरित दावे के कारण गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन 13 अक्टूबर, 1917 को जनता की मांग पर उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।मगर एक शर्त पर कि पोप  उनके मुकदमे पर विचार करेगा। पोप ने उनकी सारी बातें सुनी और अंत में  उन्हें तीन सत्य में से दो सत्यों को लोगों के बीच प्रचार करने की इजाजत दी।  वे दोनों सत्य साबित हुई: पहला, उन्होंने समुद्र में से आग के फुव्वारों को आसमान की ओर छूटते हुए देखा और उसी अग्नि-वर्षा के भीतर वीभत्स दिखाई दे रहे पशु तुल्य भयानक राक्षसों को बाहर निकलकर पृथ्वी की तरफ भागते देखा। दूसरा सत्य था मदर मेरी ने निर्देश दिए थे कि वे रूस के साथ युद्ध न करें, वरन शांति का प्रस्ताव रखें। यह मानव जाति के लिए अच्छा होगा और तीसरे सत्य को पोप ने खुद उन्हें सन 2000 के ईस्टर तक गुप्त रखने का निर्देश दिया। सत्य यह था कि पोप की हत्या की जाएगी।”
"क्या तुम जानती हो, हाना, “लेडी ऑफ फातिमा” के नाम से प्रसिद्ध लूसिया कौन थी? वह मेरी दादी थी। जिनका पिछले साल 97 साल की उम्र में देहांत हो गया।"
हर्षा ने पूछा, " इसका मतलब तुम एक ऐसे परिवार से संबंध रखते हो,जिसे मदर मैरी का आशीर्वाद प्राप्त है?"
अल्बर्टो ने मुस्कराते हुए कहा: "कभी-कभी अविश्वसनीय घटना भी घटित हो जाती है, है ना? अब मुझे बताओ कि क्या तुम पहले खाना खाओगी या फिल्म देखना पसंद करोगी? "
"क्या तुमने मुझे फिल्म दिखाने की सौगंध खाई हैं?"
"यदि तुम चाहो तो, प्रश्नोत्तरी-खेल भी खेल सकती हो।"
"नहीं, अल्बर्टो, आज नहीं।फिल्म देखकर खाना खाएँगेदो काम एक समय में क्या नहीं कर सकते हैं? ठीक है, चलो पहले फिल्म देखते हैं।" अल्बर्टो ने डीवीडी चालू किया। रूसी सिनेमा, द मिरर शुरू हुई।
"देखो, तुम इस फिल्म को कितनी बार देखोगे ? जहां तक मुझे याद है, तुमने पहले भी मुझे  इस फिल्म के बारे में बताया था।"
 "सच में ? मैं भूल गया। वैसे भी, तुम्हारे साथ एक बार और इस फिल्म को देख लूँगा तो  क्या नुकसान हो जाएगा ? "
हर्षा अल्बर्टो के अकेलेपन का अहसास कर सकती थी। फिल्म देखना केवल बहाना था, केवल एक साथ बैठकर समय व्यतीत करने का।वह फिल्म देखने में मशगूल हो गया था। वह उसके  चेहरे पर कभी प्रसन्नता, कभी गंभीरता,कभी हँसी देख सकती थी। लेकिन हर्षा को सिनेमा में मजा नहीं आयासोचने लगी, इसमें ऐसा क्या खास है कि अल्बर्टो इसे बार-बार देखना पसंद करता है?  हर्षा मोबाइल को कान पर लगाकर बाहर आ रही थी, तो अल्बर्टो ने सिनेमा की आवाज कम कर दी और कहने लगा कि यहीं बात कर लो
उसके पिता का फोन थाशुरु में हर्षा को थोड़ा असहज महसूस हुआ। पुरी का नंबर देखकर उसने पहले सोचा कि यह उसकी माँ का फोन होगा, अपने दुखों को बताने के लिएमगर दूसरी तरफ उसके पिताजी थे।
 
" कुनी तुम्हारी तबीयत कैसी हैं?"
 
"मै ठीक हूँ।" हर्षा ने कहा। बहुत दिनों से उसने पिताजी से बात नहीं की थीकेवल नाराजगी के कारण। स्कूल में पढ़ते समय उके पिता नीलकंठ दास की तरह बहुत ही मुखर  और व्यवहार-कुशल थे। वे सभी सामाजिक नियमों और प्रथाओं को तोड़कर प्रगति के रास्ते खोलना चाहते थे। हेडमास्टर के रूप में उन्होंने स्कूल के लिए नए नियम तैयार किए थे, लेकिन घर में दादाजी के खिलाफ कभी नहीं गए हर्षा जानती थी कि वे दोनों अलग-अलग खंभे हैं, फिर भी पिताजी ने दादाजी के नीति-नियमों का कभी विरोध नहीं किया था। पर क्यों? बुआ ही क्यों, हर्षा ही क्यों,  सभी दादाजी की इच्छानुसार चलेंगे? उसके पिता कम से कम एक बार तो विरोध कर सकते थे? हर्षा की अपने पिता के खिलाफ कई शिकायतें थीं। उसे पता नहीं क्यों लग रहा था, मनुष्य के आदर्श एक तरफ और मनुष्यता दूसरी तरफजिनमें उनके मामूली स्वार्थ, उद्देश्य, सपने और आकांक्षाएं शामिल थीं।
 
पिताजी ने कहा: "तुम्हारी माँ के हाथ जल गए हैं।"
 
"जल गए! यह कैसे हुआ?" हर्षा बहुत परेशान हो गई थी
 
"पानी की हांडी उठाते समय गर्म पानी उसके हाथों पर गिर गया।"
 
"अब कैसी है,माँ ?" हर्षा के स्वर में व्यग्रता झलक रही थी। 
 
"डॉक्टर ने घाव पर मलहम लगाने के लिए दिया है। पूजा समाप्त होने में केवल एक दिन बाकी था, पता नहीं क्यों, यह विध्न पड़ा। माँ की चिंता से तुम परेशान हो जाओगी, इसलिए मैंने तुम्हें फोन किया।
"पूजा जैसे चल रही है,चलने दे, इसके बारे में ज्यादा चिंता न करें। मगर माँ पर अनावश्यक दबाव न डाले। उसे आराम करने के लिए कहे।" पता नहीं क्यों, हर्षा को अविश्वास हो रहा था। क्या कोई इस बात के लिए इतना बड़ा झूठ बोल सकता है?
पिता ने फोन रख दिया था। हर्षा माँ की बुरी खबरो से उदास हो गई थी। माँ उसे बार-बार पुरी आने के लिए कह रही थी; अगर वह चली जाती तो शायद यह घटना नहीं घटती। पूरे घर में मां ही उसकी बात को थोड़ा-बहुत  समझती थी।  उसकी मानसिक वेदना समझकर अकेले में रोती थी। माँ ने पिताजी से जिद्द कर उसे टाटा से  वापस लाया थाअवश्य, वह कुछ दिनों के भीतर यह समझ गई थी कि शादीशुदा बेटी को हमेशा अपने पति से अलग घर में रखना संभव नहीं है। माँ उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रही थी: "अपनी बुआ को देखो, उसे किस तरह की खुशी मिली? उसका जीवन उसके लिए बोझ बन गया था। अगर वह मर जाती तो शायद दुनिया से तर जाती। तुम क्या जानती हो कि मन कितने जुनून और इच्छाओं का भंडार है? मैंने देखा है तुम्हारी बुआ को पंद्रह साल तक कष्ट भोगते हुए। वह पागल हो गई थी, इसलिए उसे चैन से बांधकर रखा जाता थाकिसी भी आदमी को देखकर वह उसे पकड़ने के लिए दौड़ती थी, इस वजह से कोई भी पड़ोसी हमारे घर में कदम रखने की हिम्मत नहीं करता। तुम्हारा भाई था बहुत ही जवान, उसके गाल पर इतनी निर्दयता से चिंकुटी काटी  कि वह घंटों भर रोता रहा।दो दिन तक उसे बुखार रहागुस्से से तुम्हारे  दादा ने एक कमरे के कोने में एक चैन से बांधना शुरू किया।तुम छोटी बच्ची थी, तुम नहीं समझ पाओगी कि इस शरीर में कितनी आग होती है?
“आग? माँ किस आग की बात कर रही थी?  वह सोचने लगी
अब हर्षा बहुत अच्छी तरह समझ सकती थी कि उसके मां के कहने का मतलब। राख के नीचे छुपे अंगार की तरह उस सुप्त कामना का अर्थ। जिसकी वजह से उसकी बुआ एक दिन पागल हो गई। अब बुआ अपने पिछले जन्मों के पापों को 'हविश' (पूरे दिन में एक बार खाना) कर मिटाना चाहती थी?जबकि ऐसा कोई पाप बुआ ने किया था ?
अल्बर्टो ज़ोर से हंसने लगा।
"तुम इतने जोर से क्यों हंस रहे हो?"
अपनी हंसी को बहुत मुश्किल से रोकते हुए वह कहने लगा: "हे भगवान, क्या तुम  अन्यमनस्क थी? क्या तुमने   फिल्म नहीं देखी ? "
हर्षा ने कहा, "नहीं,"
"अरे! क्या हुआ ? तुम ठीक हो? फोन कहां से आया था? क्या कोई बुरी खबर थी? "अल्बर्टो ने एक बार में बहुत सारे सवाल किए। फिल्म को आधे में बंद करते हुए वह कहने लगा: "मुझे गलत मत समझो, मैंने तुम्हारी तरफ  ध्यान नहीं दिया;  यह स्वार्थपरता नहीं तो और क्या है? मुझे बताओ, बिना झिझक के बताओ, हाना, मैं तुम्हारी मदद कैसे कर सकता हूँ ? "
हर्षा  ने कहा, "पिताजी की फोन आया थागरम पानी से मेरी मां का हाथ जल गया है। "
"ओह! बड़े दुख की बात है! चिंता मत करो, सब-कुछ ठीक हो जाएगा। क्या किसी डॉक्टर को दिखाया है ? तुम ऐसी मानसिक स्थिति में फिल्म देख पाओगी ? चलो, फिल्म देखना बंद करते हैं। बेहतर है, खाना खा लेते हैं। "
हर्षा सोच रही थी, अगर वह आदमी कभी अल्बर्टो की तरह बात करता तो आज उसका जीवन अलग होता।  भीतर जाकर अल्बर्टो ने प्लेट पर कुछ खाना लाया।  हर्षा ने कहा: "अल्बर्टो, कृपया बैठो, मुझे बताओ कि क्या करना है, मैं कर दूँगी।"
"'अतिथि देवो भव:' - अतिथि देवता-तुल्य होते हैं-आपके यहाँ कहा जाता है। इसलिए तुम चुपचाप बैठ जाओ। ऐसे भी  तुम परेशान हो। "
रसोई-घर से दो गिलास जूस लाकर अल्बर्टो कहने लगा: "मैंने फातिमा-दिवस मनाने के लिए तुम्हारे लिए  खास भोजन की व्यवस्था की है।"
उसने छैना की दो प्लेटें लाई।
" यह छैना तुम्हारा विशेष भोजन है?"
" गलत हैं, यह चीज़ छैना नहीं है, यह सेटन है।"
"उस सेटन क्या है?"
"ओह, तुमने सेटन को पहले नहीं चखा ? यह तुम्हारा एशियाई भोजन है। यह पहले बौद्ध भिक्षुओं के लिए चीन में तैयार किया जाता था। यह एक प्रकार के आटे से बनाया गया है। वास्तव में, आटे से माँड़ निकालकर  प्रोटीन बचा कर रखा जाता है। बौद्ध भिक्षु मांसाहार नहीं लेते थे, उन्हें यह सेटन दिया जाता था।यह सेटन मेरा पसंदीदा भोजन है। "

हर्षा इस बौद्ध को कर्म, मन और प्राण में देख रही थी। बौद्ध भिक्षुओं को सेटन खिलाया जाता था, इसलिए वह भी सेटन खाता है
हर्षा ने कहा, "क्या हमारे भोजन-पेय का हमारे धार्मिक विश्वासों, पूजा-पाठ,अनुष्ठानों या 'साधना' में कोई संबंध  हैं, जैसा तुम  कह रहे हो? स्कूल में हमारे पाठ्यक्रम में गौतम बुद्ध के बारे में एक कहानी थी।उन्होंने कठोर तपस्या के लिए उरुवेला शहर में एक सुंदर जगह का चयन किया था। उन्होंने छह वर्षों तक वहाँ पर कठोर तपस्या की थी। तपस्या  की इस अवधि के दौरान उन्होंने अपनी सभी सामान्य आदतों को छोड़ दिया।भोजन, पेय और नींद से वंचित रहने और निरंतर तपस्या के कारण वह बहुत कमजोर हो गए। उनकी कठोर तपस्या  की जानकारी मिलने के बाद कुछ शिष्य उनके आस-पास इकट्ठा हो गएवे आपस में फुसफुसाने लगे कि उन्हें  बहुत ही जल्दी 'सिद्धी' प्राप्त होगी। एक दिन गौतम अत्यधिक कमजोरी के कारण बेहोश हो ग। जो शिष्य उनके आस-पास इकट्ठे हुए थे,वे कहने लगे कि गौतम की तपस्या करते-करते मृत्यु हो गईहम व्यर्थ में उनके पास रहे, इस श्रमण ने कोई ज्ञान प्राप्त नहीं किया था। जब गौतम की चेतना लौटी तो उन्हें लगा कि वह मौत की दहलीज से लौटे है। इस तरह भोजन-पेय लिए बिना शरीर को यातना देकर ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है; वरन मृत्यु अनिवार्य है। इसलिए उन्होंने भिक्षा माँगना शुरू किया। इस बार वे संन्यासी कहने लगे कि गौतम बुद्ध छह साल की कठोर तपस्या के बावजूद ज्ञान प्राप्त करने में नाकाम रहे, क्या अब वह भोजन-पेय लेते हुए बिना तपस्या के बुद्धत्व प्राप्त कर सकेंगे ?  इस आदमी के पीछे चलने का कोई फायदा नहीं है। वे लोग गौतम को छोड़कर चले गए। मगर गौतम ने महसूस किया कि कृच्छ साधना से शरीर को कष्ट देने की तुलना में सामान्य जीवन जीते हुए सत्य का अनुसंधान करना बेहतर है। "
हर्षा की कहानी खत्म होने के बाद खुशी से अभिभूत अल्बर्टो कहने लगा, "यही कारण है कि मैं तुम को इतना प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। यू आर वंडरफूल माय गर्ल। तुम मुझसे वादा करो, हाना, जब तक मैं तुम्हारे देश में हूं, तब तक तुम मुझे छोड़कर नहीं जाओगी। तुम्हारे देश में ही क्यों, मैं तुम्हें सारे जीवन के लिए चाहता हूँ,हाना। ओह, माय स्वीट बेब! "
हर्षा ने अल्बर्टो की भावनाओं पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। केवल कुछ महीनों से वे एक-दूसरे को जानते थे।आज वह यहाँ है, कल वह कहाँ रहेगा,क्या पता।दोनों ने अपनी प्लेटें सिंक में डालने के लिए उठाईं। हर्षा ने टैप के नीचे प्लेटों को साफ किया और अल्बर्टो ने गमछे से उन्हें पोंछकर शेल्फ में रख दिया
अल्बर्टो ने पूछा: "क्या तुम फोन आने के बाद थोड़ा निराश हो गई थी?"
"हाँ,यह सच है।मगर एक और बात है, मुझे नहीं पता कि कैसे कहूँ। "
"चिंता करने की कोई बात नहीं है।यदि तुम सहज महसूस करती हो तो कह सकती हो, नहीं तो बाद में बता सकती हो। अच्छा,  'रोमांस', के बारे में तुम्हारी क्या धारणा है ? "
“रोमांस?" अल्बर्टो क्या जानना चाहता है ? अचानक ऐसा सवाल क्यों? हर्षा ने होठ भींचते हुए कहा, जब मैं पहली बार कॉलेज गई थी तो हमारे अंग्रेजी अध्यापक ने छात्रों को एक कविता समझाने से पहले यह सवाल पूछा थाहमें यह प्रश्न समझ में आ गया था और उसका इसका जवाब भी। लेकिन हम अनुभव कर सकते थे,पता नहीं, सही उत्तर क्या होगा। एक सौ अट्ठाईस छात्रों में से केवल एक ने अपना हाथ ऊपर उठाया। उसका जवाब था  'सम अनयुजूयल फीलिंग्स'मुझे नहीं पता कि वह सही उत्तर था या गलत। आज भी मुझे रोमांस का अर्थ नहीं मालूम है।"
हर्षा ने आँखें मूंदकर महसूस किया:
साफ-सुथरा छोटा घर
गोबर लिपा आँगन-द्वार
छप्पर पर लौकी पत्ते व पंख ,
घर के अंदर से गुंजित होता शंख ;
घर से सटा हुआ एक छोटा तालाब
तालाब में मछली ,पेड़ों पर पक्षियों की रब
तालाब को घेरे छोटा बगीचा
बगीचे में हरी घास का गलीचा
रात में  चमकता चाँद 
चाँद का सिर्फ प्रेम मन

" रोमांस कहने से सिर्फ इतना ही कि आँखें बंद करो तो उभर आता है एक चित्र  किशोरावस्था का। मन में और ज्यादा कुछ नहीं आता है।घर के लोगों के बारे में नहीं सोचा जा सकता हैसोचा  नहीं सकता  उनके नाक,नक्शा या चरित्र के बारे में कुछ भी । जब तक आँखें बंद रहती हैं तब तक चांदनी में स्नान करती है घर की छत । जब खुल जाती हैतो कुछ भी नहीं नजर आता है। रोमांसरोमांसरोमांस, 'रोमांस कुछ है भी क्या, अल्बर्टो?

"कैंडल लाइट डिनर, जाज, बोटींगये क्या हैं,हाना ?"

"क्या यह दार्शनिक अल्बर्टो का उत्तर है?"
"हां, तुमने सही कहा" अल्बर्टो ने कहा, "रोमांस कोहरे की तरह है, एक ऑप्टिकल भ्रम है, यहाँ है, यहाँ नहीं। जो  है, वह नहीं है। जो नहीं है, वह है। बंद आँखों के तले हम जीवन का आधा हिस्सा जीते है, और आधा खुली आँखों से। जब तक बंद आँखों के तले कुछ भी दिखाई नहीं देता है कि जीवन जीना एक आदत बन जाता है। "
“हां, जीवन अभ्यस्त हो जाता है।” तकिये को गोद में लेते हुए हर्षा ने अपनी आँखें बंद कर दीं। उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। कोई घर नहीं, कोई बाग नहीं, कोई मछली नहीं और न ही लौकी की लता, यहां तक ​​कि चाँद भी नहीं। केवल एक चीज उसकी आंखों के सामने दिखाई देने लगी, वह थी दक्षिण दिशा की खिड़की। ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई उसे आधी रात को नाम लेकर बुला रहा होकोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा होबार-बार कॉलिंग-बेल की घंटी बज रही थी, एक छोटे बच्चे द्वारा गुणन तालिका के रटने की तरह। फिर भी हर्षा उठकर  दक्षिण दिशा की खिड़की की ओर नहीं गई।हर्षा मानो निबुज कोठारी में बदल गई हो,उसके पास कोई आवाज नहीं पहुंच रही हो। नहीं, वह दरवाजा नहीं खोलेंगी।उस आदमी को बाहर रहने दो। उसके दाँत भींच रहे थे। दरवाजे पर कोई बार-बार किक मार रहा था। सुनते हुए भी अनसुना करते हुए बैठी हुई थी वह। धीरे-धीरे सब-कुछ शांत हो गया। आह! आदमी सर्दी की इतनी ठंडी रात में बाहर ठिठुर जाएगा। झरोखे के पास से उठकर वह धीरे-धीरे दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी।आदमी अभी तक जमीन पर लुढ़का नहीं था।
 "तुम इतनी देर क्या कर रहे थे, पियक्कड़?"
 उस शराबी ने हर्षा को धक्का दिया और खुद वहीं जमीन पर ढेर हो गया। उसके बाद सब-कुछ शांत, नीरव और स्थिर। हर्षा आदमी को उठाकर बिस्तर पर ले गई। वह रात में बिस्तर पर मृत मछलियों की तरह दिख रहा था, लेकिन सुबह उसने हर्षा को अपने प्रचंड पौरुष और पूंजीभूत आक्रोश से छिन्न-भिन्न कर दिया था।  उसने विरोध किया, " अभय, आई एम इन पेन। मेरे पेट में भयानक दर्द है।देखो, आज मेरे लिए यह संभव नहीं है।तुम तो एक डॉक्टर हो, तुम मेरी स्थिति को अच्छी तरह से समझ सकते हैं मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ? क्या तुम कुछ दिनों के लिए संयम धारण नहीं कर सकते हो ? "
"कैसा अंधविश्वास है? सब फालतू बात है।" वह आदमी परेशान होकर ब्याज समेत सब वसूल करना चाहता था,  जैसे कि वह रात का गुस्सा नहीं भूल पाया हो। हर्षा विकल होकर पूछने लगी,"मेरे दर्द का क्या? मेरी पीड़ा कुछ नहीं ? क्या यह कुसंस्कार हैं, क्या यह फालतू है?" हर्षा की आँखों के दोनों किनारों से आँसू गिरने लगे। दांत भींचकर सूखी मिट्टी की तरह पड़ी रही।
"क्या हुआ, हाना? तुम रो क्यों रही हो? क्या हुआ, मुझे बताओ।” अल्बर्टो उसके पास आकर बैठ गया। "याद रखो, हाना, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, सुसमय-दु:समय में भी। हे हाना, माय स्वीट, मेरी प्रियतमा, जब तुम यहां आई थी, तब से मैं समझ गया था। तुम्हारे सीने में दुख के काले बादल भरे हुए हैं, जानता हूँ तुम किस कारण से उदास हो। मैंने तुम्हें अपनी सीमित क्षमता के भीतर दु:ख की दुनिया से उबारने का बहुत प्रयास किया।मैंने तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट लाने की कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्य से मैं विफल हुआ। "
अल्बर्टो की उंगलियां हर्षा के बालों को सहला रही थी। जैसेकि वह उसके सारे दुखों को पोंछना  चाहता होमानो हर्षा के आँसूओं से धीरज का तटबंध टूट गया हो
"हम यूरोपीय कभी किसी के निजी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। मुझे नहीं मालूम कि तुम्हारा दर्द क्या है, लेकिन मैं तुम्हारा दोस्त हूं, मैं तुम्हारा साउलमेट हूं, तुम्हारा आत्मीय हूँ।" कहते-कहते वह उसे अपनी छाती के नजदीक ले आयामानो नदी लंबे समय से सूख गई थी और उसके किनारे सूखी रेत पर अल्बर्टो और हर्षा दोनों वहां खड़े हुए थे। चारों ओर तेज धूप। क्षितिज में दूर-दूर तक एक भी पक्षी दिखाई नहीं दे रहा था। अचानक अल्बर्टो के स्पर्श से नदी छलक उठी, बांध तोड़कर लहरें रुक नहीं पाई।
उसने अल्बर्टो के होठों को स्पर्श किया: "तुम मेरी केवल सहेली नहीं हो, हाना, उससे अधिक हो  जानती हो न, हम दोनों एक ही हैं? हम दोनों निर्जन सपने देखने वाले हैं।देखो,हमें भाग्य ने कैसे जोड़ा? "
अल्बर्टो की छाती शरण-स्थली हो। दोनों सुरक्षा के वलय में थे। "माय हनी,माय गर्ल, प्लीज डोंट क्राय , तुम फोन से बहुत परेशान लग रही हो,  कोई बुरी खबर है? "
कई दिनों से हर्षा को झिझक हो रही थीपता नहीं,कैसे एक झटके में बाहर निकल आई हो: "मैंने तुम्हें एक बात नहीं बताई, अल्बर्टो लेकिन आज मैं इसे बोलना चाहती हूं। मैं स्वतंत्र नहीं हूँ, मेरा जीवन अभी भी किसी के साथ बंधा हुआ है। मुझे आज़ाद होना चाहती हूँ।मुझे नहीं मालूम कि मुझे आजादी मिलेगी या नहीं। लेकिन मुझे आजाद होना है। वरना मेरा जीवन व्यर्थ हो जाएगा। इंसान के रूप में पैदा होने की कोई सार्थकता नहीं रहेगीतुम जानते हो, अल्बर्टो, उसने मुझे फिर से फोन किया था।"
" किसने फोन किया था ? पिताजी ने ? "
"पिता ने मुझे अभी फोन किया है, लेकिन उसने मुझे दो दिन पहले फोन किया था। "

" कौन है? किसकी बात कर रही हो? "
मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरा विवाह कर दिया गया था। मेरे दादा बहुत बूढ़े हो गए थे। प्राय: वह बीमार रहते थे। जिद्द कर रहे थे कि मरने से पहले अपनी नातिनी की शादी देखेंगे। "
"गजब ! तुम्हारे जीवन का निर्णय दूसरा क्यों लेगा ? "अल्बर्टो ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, "हमारे देश में हम इस संबंध में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। वास्तव में तुम्हारे साथ बहुत अन्याय हुआ है। "
" घर में दादाजी की चलती थी। मेरे पिता में भी उका विरोध करने की हिम्मत नहीं थी। वास्तव में, वह मेरे दादाजी को दुखी करना नहीं चाहते थे। उस समय मेरी उम्र बीस वर्ष थी। "
"ओह, इट इज होरीबल। यह होना उचित नहीं है। मैंने सुना है कि तुम्हारे यहाँ शादी से पहले जाति और जन्मकुंडली का भी मिलान किया जाता हैं। कुल अजनबी के साथ किसी की मानसिकता कैसे मिल सकती है? यह पूर्व और पश्चिम के बीच अंतर है। "
पता नहीं दूसरा समय होता तो हर्षा  इस मुद्दे पर अल्बर्टो से झगड़ा करती, लेकिन अभी वह एक स्रोत में बहती जा रही थी । वह इतनी तेजी से बहती जा रही थी कि उसमें खुद को रोकने की क्षमता नहीं थी। वह कहने लगी, "शादी के लिए उम्मीदवारों की खोज चल रही थी। मेरे पिता एक हेडमास्टर थे,  तब भी वह प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना नहीं कर सकते थे, उस समय उन्हें मेरी इच्छा-अनिच्छा का ध्यान नहीं आयामेरा रोना-धोना सब व्यर्थ गया। "
अल्बर्टो ने हर्षा को और निबिड भाव से कस लिया। जैसे कि वह यह कहना चाहता हो कि चिंता की कोई बात नहीं है, कोई नहीं होने पर भी वह उसके साथ है। "देखो, मैं देवदूत की तरह कैसे आया हूं। दुख होने के कारण क्या  हम जीना छोड़ देंगे? नहीं, यहीं संदेश देने के लिए मैं पुर्तगाल से आया हूं।"
“जानते हो, मैं  बहुत अच्छी छात्रा थीमेरी प्रतियोगी परीक्षा पासकर आईएएस या अलाइड बनने की तीव्र इच्छा थी। मगर मेरे सपनों से किसी को कोई मतलब नहीं था। बारंबार मुझे दूल्हे के उम्मीदवारों के सामने नाश्ता  और चाय की ट्रे लेकर जाने के लिए कहा जाता था। बहुत बार मुझे उनके अप्रासंगिक प्रश्नों का जवाब देना पड़ता था। किसी ने मुझे गाना गाने के लिए कहा, मगर मुझे गाना नहीं आता था।
"लेकिन, यह सब क्यों ? तुम्हें ऐसा क्यों करना पड़ा ? "
"दिस इस द वे। इस तरह वे लड़की को अपने जीवन-साथी बनाने के लिए चुनते हैं। रूप और बुद्धिमता, चाल- चरित्र, स्वभाव और सामर्थ्य - इन सभी चीजों की परीक्षा होती है। घर से भागने की इच्छा हो रही थी, लेकिन सभी लड़कियां ऐसा नहीं कर सकतीं,अल्बर्टोंभी लड़कियां तो क्या अधिकांश लड़कियां घर छोडकर नहीं भाग पाती है। ज्यादातर लड़कियां अपने परिवार के फैसले को स्वीकार कर लेती हैं। वह आदमी टाटानगर में डॉक्टर था। उनके पिता डीएसपी थे, पश्चिमी ओडिशा के बरगढ़ में। वह मेरे पिता के बचपन के दोस्त थे, नौकरी के खातिर वहाँ रह रहे थे। फोटो देखकर उस आदमी ने मुझे पसंद कर लिया था। उसने मुझे शादी से पहले एक बार भी नहीं देखा था। मेरा ससुराल पुरी से कुछ किलोमीटर दूर था। पिताजी  और दादाजी के अनुसार वह कुलीन परिवार का लड़का था।"
शादी के बाद, आदमी ने दिल का दरवाजा पीटने की बजाय उसके शरीर का दरवाजा पीटने लगाहर्षा चुपचाप बैठी हुई थी।अल्बर्टो अपनी उंगलियों से उसके बाल सहला रहा था। अचानक उसने उसे कमर से पकड़कर बाहों  में लेते हुए उसके होठों पर अपने होठ सटा दिए, मानो वह उसके सारे दुःखों को पीना चाहता हो। लंबे समय से जैसे सूखी नदी अचानक उफान पर आ गई हो। जैसे अनियंत्रित बाढ़ की तरह चारो ओर पानी ही पानी होता है, वैसे ही उत्तेजना की बाढ़ हर्षा में उमड़ पड़ी थी। दोनों पक्षी बंधन तोड़कर आजाद हो गए। अल्बर्टो ने पूछा: "स चीज से ऐसी क्या नाराज़गी?"
"ओ, अल्बर्टो, देट न्यूड बॉडी, सो अगली,आई हेव नोट इमेजीन एवर। उस आदमी का चेहरा देखने से पहले मैंने उसका नग्न शरीर देखा था।"
"ओह, सो क्रेज़ी," अल्बर्टो ने कहा।
" उस आदमी की आवाज सुनने से पहले मैंने उसकी हुंकार सुनी थी। हे भगवान! देट इज द डेस्टिनी ऑफ ए वूमेन।  तुम विरोध नहीं कर सकती हो, क्योंकि ऐसा करने का उसे अधिकार नहीं दिया गया है। तुम्हें चीरा जाएगा, तुम्हारे टुकड़े किए जाएंगे, तुम्हें दबाया जाएगा, मारा जाएगा, निचोड़ा जाएगा, चूसा जाएगा, घुस जाएगा और अंत में उलटी में डुबोया  जाएगा। तुम कुछ नहीं कह सकती हो क्योंकि तुम्हारे ऊपर उसका कब्ज़ा हैं।  वह चावल की थाली में शराब डाल सकता है, तुम उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकती हो। "
 दक्षिण दिशा की ओर खिड़की खोलकर रात भर इंतजार कर रही उस लड़की के बारे में जरा सोचो। अल्बर्टों के दिमाग में क्या ख्याल आएगा, अगर उसने दरवाजा नहीं खोला ? उसके लिए उसे क्रूस पर चढ़ाया जाएगा। इससे बच नहीं सकते हैं।
"मेरे माथे पर निशान देख, टेबल के किनार से मुझे मारा गया। प्रतिरोध करने का यह नतीजा है। देख मेरी  दाहिनी हथेली पर छोटे-छोटे निशान, सिगरेट की तरह, देख सकते हो, अल्बर्टों ? "
लाल लोमश छाती एक गेहूंशरीर से भीग गई थी। "हाना, माय डार्लिंग, माय स्वीटेस्ट गर्ल ऑफ ईडन,डोंट क्रायफील मी,आई एम नोट देट मेन,माय हाना,माय प्रिंसेज। "
 "मैंने कई दिन खाना नहीं खाया। चारदीवारों के भीतर मेरा हृदय हाहाकार कर रहा था। अस्पताल का चपरासी घर के लिए मटन लाया। रोगियों ने बहुत सारे उपहार दिए थे। मगर घर में चावल नहीं, दाल नहीं, उस आदमी ने कभी मेरे दाल-रोटी के संसार के बारे में कोई जानकारी नहीं ली।
 
कई बार सुबह-सुबह उठने के बाद  मैंने देखा कि वह आदमी मेज पर सुबह सात बजे से शराब की बोतल लेकर बैठा हुआ है; तुम उसका विरोध नहीं कर सकती हो। यदि तुम ऐसा करती हो तो वह तुम्हारा अस्तित्व अपनी  लम्बी जीभ से चाट जाएंगातूफान से भी ज्यादा प्रचंड, हड्डियों को चूर-चूर करने वाला आक्रोश, अज्ञात शहर में खोए हुए रास्तों का अंधकार, वमन कराने जैसी कुत्सित गंध,  पूरे शरीर पर मानचित्र, सीने में आर्त, आँखों के कोने में आँसू  ऐसे दृश्य किसी भी समय घटित हो सकता है। घर एक निर्जन द्वीप की तरह दिखाई देने लगा।आँखें घुमाने पर ओडिशा काफी दूर नजर आने लगा।बार-बार आंखों के सामने नजर आने लगता था सागर किनारे वाला छोटा शहर पुरी। क्या यह सब मेरा प्रारब्ध है? या यह एक महिला का भाग्य है? "
थक गई थी हर्षा। पूरी तरह से क्लांत। अल्बर्टों के स्पर्श से उसकी आँखें मूँदने लगी थी। अल्बर्टों के सम्मान उसे ठंडी समुद्री हवा का अनुभव होने लगा। उसकी पलकें बंद होती जा रही थी। खोलना चाहने पर वह नहीं खोल पा रही थी।

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