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वह बहुत बेचैन महसूस कर रही थी। हर पल एक युग की तरह लग रहा था। अपनी उत्कंठा
को दबाने में असमर्थ होकर वह बार-बार बालकनी की ओर दौड़ रही थी। यद्यपि वह बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी दौड़ निरर्थक थी। सड़क के उस तरफ से और न ही इस तरफ से कोई रास्ता नहीं था। अल्बर्टो ने कई बार अपने यहाँ आने के लिए कहता था, मगर हर्षा इंकार कर देती थी। जबकि वह वहां पहुंच जाती थी,जहां अल्बर्टो उसे आने के लिए कहता था। अल्बर्टो उसके इस व्यवहार से आश्चर्यचकित था। उत्तर में हर्षा ने समझाया,"नहींअल्बर्टो, मैं नहीं चाहती कि कोई हमारे खिलाफ टिप्पणी करें।तुम जानते हो; मैं अकेले इस घर में नहीं रहती, मेरी सहेलियाँ मेरे साथ रहती हैं।मुझे बिलकुल अच्छा
नहीं लगता
है कि अगर कोई तुम्हारे विरुद्ध कुछ भी बुरा कहता है। "
अल्बर्टो ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था: "क्यों कोई हँसेगा? हर व्यक्ति को अपना जीवन जीने का अधिकार है, अपनी गोपनीयता की सुरक्षा का अधिकार है। क्यों दूसरे उनके
जीवन में झांक कर देखेंगे ? यूरोप में कोई भी किसी के निजी जीवन में सिर नहीं खपाता है। "
बार-बार मना करने वाली
हर्षा सोच रही
थी कि अगर
अल्बर्टो यहाँ
पहुंच जाता तो बहुत अच्छा होता। मगर अगले ही पल डर और संकोच उसे
जकड़ लेता था। अपराध-बोध कीभावना से खुद को मुक्त नहीं करा पाती थी। यह अपराध-बोध क्यों ? कभी-कभी वह दृढ़ हो जाती थी तो
कभी-कभी उसकी सारी दृढ़ता
चूर-चूर हो जाती थी।
पहले-पहल
ध्रुव-तारा की तरह अल्बर्टो उसके
लिए कौतूहल था; धीरे-धीरे वह आदत बन गया और अब नशे की
लत।हर दिन घंटे-दो घंटे बात नहीं करने पर उसे बेचैनी लगने लगती। मन के साथ पैर दौड़ना
चाहते थे। पहले उसके सवाल अप्रासंगिक लगते थे, फिर बहुत दार्शनिक या तर्कसंगत लगते थे, फिर उसका
संसर्ग अच्छा लगने लगा।
धूप
धीरे-धीरे नरम
होती जा रही थी, फिर भी मोबाइल
नीरव था जैसे कि वह गहरी नींद में सो गया हो। उसने सारे दिन अलग-अलग समय में अल्बर्टो के नंबर लगाने
का प्रयास किया था। कभी 'पहुँच से बाहर', कभी 'मोबाइल स्विच
ऑफ है' या कभी 'यह नंबर मौजूद नहीं है' की सुरीली ध्वनि
मोबाइल पर सुनाई देती थी।
हर्षा ने
उस दिन अल्बर्टो के लिए सात सवाल तैयार किए थे। एक बार वह जानना चाहती थी:
"तुम्हारे पुर्तगाल में प्रश्नोत्तरी का खेल क्यों खेला जाता है? क्या
व्यक्तियों से मिलकर उनके
गुणों या प्रकृति को नहीं जाना जा सकता है, उनके
विधिवत साक्षात्कार की आवश्यकता क्यों है? "
"क्या प्रश्नोत्तरी का खेल हमारे देश में ही प्रचलित है, क्या
तुम्हारे यहाँ नहीं है? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि यक्षराज ने ‘युधिष्ठिर-यक्षराज
संवाद’ में झील के किनारे युधिष्ठिर को बगुला बनकर सारे प्रश्न पूछे थे ?
"
पुरानी
कपड़ों के लुप्त होते रंग की तरह कई आख्यान-उपाख्यान हर्षा के मन से लगभग उतर चुके
थे।उसने जवाब दिया: "हां, मुझे कुछ-कुछ याद आ रहा
है।"
"महाभारत
में इतने सारे संवाद हैं: 'अष्टावक्र-वली संवाद', 'भीष्म-कर्ण संवाद', 'इंद्र-अंबरीश संवाद ' आदि।
क्या मैं सही कह रहा हूं न ?"
"उस
दिन हर्षा ने माना कि अल्बर्टों कोई छोटा खिलाड़ी नहीं था। अगर उसने महाभारत के सबसे अंदरूनी
प्रसंगों से कुछ पूछा तो
वह कहीं की नहीं रहेगी। मगर वह यह जानकर प्रसन्न थी कि उसे भारतीय संस्कृति के बारे में काफी जानकारी है और
उसे भारतीय संस्कृति से प्यार है। कितने विदेशी लोग होंगे, जो सही ढंग से भारत के बारे में जानकारी रखते
हैं! ऐसे विद्वान व्यक्ति के लिए प्रश्नावली तैयार
करना आसान नहीं था। उसने बहुत मेहनत कर सात सवाल तैयार किए थे
पहला प्रश्न: तुम्हारा सपना क्या है?
दूसरा प्रश्न: तुम्हारी
नजरों में एक महिला के लिए क्या गुण होने आवश्यक है?
तीसरा प्रश्न: प्यार के बारे में तुम्हारी क्या राय है?
चौथा प्रश्न: तुम किस काम के लिए खुद को
दोषी मानते हैं?
पांचवां प्रश्न: भीतर से तुम्हें
क्या सहज लगता है?
छठवां प्रश्न: तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी गलती क्या है?
सातवां प्रश्न: क्या भौतिकवादी दुनिया तुम्हें विचलित करती है?
हर्षा ने सभी सवालों को एक छोटे से कागज में लिख रखा था,मगर पूरे
दिन अल्बर्टो का कोई अता-पता नहीं था। यह अप्रत्याशित था।दिल्ली लौटकर आने के
बाद से वह उसके साथ नियमित
संपर्क में था।कभी अगर विभाग में काम होता या
उसे पुस्तकालय में जाना पड़ता, तो वह उसे फोन पर पहले से सूचित कर देता था।
शाम होने जा रही थी। न अल्बर्टो का फोन आया और न ही नवीना या भैरवी रूम में लौट आई।हर्षा को बहुत अकेलापन और बेचैनी लग रही
थी।हालांकि भैरवी या नवीना से उसकी बनती नहीं थी, मगर
उनकी अप्रासंगिक बातों
में समय गुजर जाता था। छात्रावास में सीटें नहीं मिलने
के कारण उन तीनों ने किराए पर एक मकान लिया था। कभी वे बारी-बारी से ख्नाना
बनाते थे तो कभी होटल से मंगा लेते थे। दोनों लड़कियां उससे दो-अढ़ाई साल छोटी थी। वे अपनी
वेश-भूषा और आचार-व्यवहार में काफी आधुनिक थीं। मगर हर्षा पुरी के रक्षणशील परिवार की लड़की थीं।
वह दस प्रेमियों के साथ
डेटिंग की कल्पना कभी नहीं
कर सकती थी। इसके अलावा, उसने जीवन की जिसकड़वाहट का सामना किया है, ऐसा कोई कर सकता है ?
हर्षा को कभी-कभी लगता था कि वह एक घने जंगल से घिरी हुई है। वह घने जंगल में अपना रास्ता खो चुकी है और चारों तरफ इधर-उधर
भटक रही है। समाप्त नहीं होने वाले इस जंगल में क्या कोई उसका हाथ पकड़कर उसे आश्वस्त करेगा,चल मैं तुझे
रास्ता दिखा देता हूँ। चल,समय
रहते-रहते इस घने जंगल से बाहर निकल चलते हैं। वह यह नहीं जानती कि अल्बर्टो एक
राजकुमार है या लकड़हारा, मगर
इस अनन्त जंगल में वह उसे मिला है। सुनहरे देवदूत की तरह वह उसके सामने हाजिर हुआ था उसकी आँखों से आँसू पोंछकर उसके होठों के
कोने में थोड़ी-सी मुस्कुराहट
पैदा करने के लिए। ऐसा
हो सकता है कि वह कल जंगल से कहीं गायब हो जाएं। हालांकि, वह अल्बर्टो
के संसर्ग में इस भयावह जंगल को भूल गई थी।
पागल
अल्बर्टो सब-कुछ जानने के
लिए उत्सुक था। कभी-कभी हर्षा उससे पूछती:"तो आज कौनसा चैनल लगेगा ?"
"क्या
मैं तुम्हें बोर कर रहा हूँ?" अल्बर्टो
ने शर्म से पूछा।
"बिल्कुल
नहीं, तुम्हारे साथ गप लगाने के लिए मैं पूरे दिन इंतजार करती रही। मगर क्या मैं तुम्हें हमेशा अपने देश के बारे में बताऊंगी, क्या
तुम मुझे अपने देश के बारे में
नहीं बताओगे?”
"क्यों नहीं बताऊंगा? तुमने कभी
मुझसे पूछा? हाना,मुझे नहीं
पता कि तुम्हारी वास्तव में इसमें रुचि हैं। क्या तुम मेरे देश को प्यार करती हो,जैसे मैं तुम्हारे देश को प्यार करता हूं?
"
"क्या
तुम वास्तव में मेरे देश से प्यार करते हो?" हर्षा
ने उलटा प्रश्न किया।
"हां, मैं
भारत को बहुत प्यार करता हूँ। क्या तुमने अभी तक नहीं देखा है? मैं
भारत को प्यार करता हूँ, और मैं तुम्हें भी। मैं सही
कह रहा हूँ, हाना,तुम
जानते हो कि युधिष्ठिर
कभी झूठ नहीं बोलता है। "
"मैं तुम्हें भी प्यार करता हूं।"अल्बर्टो ने इस तरह से कहा कि वह उसे प्यार करता है, क्योंकि वह भारत से प्यार
करता है।मगर यह समझ में नहीं आ रहा था कि उस प्यार में उसके लिए वास्तविक प्रेम है या नहीं। एक अन्य मौके पर अल्बर्टो ने उससे पूछा था:
"क्या तुम मुझे प्यार नहीं करती हो, हाना?"
"इस विदेशी पक्षी से ? आज
यह है, कल नहीं हो सकता है?" हँसते हुए उलटा प्रश्न किया हर्षा ने। उसने हास-परिहास के बीच संयमित भाव से एक सत्य को छुपा दिया।नहीं,वह
खुद को किसी भी परिस्थिति में नहीं खोलेगी। किसी भी हालत में यह गोपनीय रहेगा। क्या उसके मन में डर है? यदि उसे सच्चाई पता चल
गई , तो वह पास से दूर चला जायेगा? फिर उसे इस घने वन में अकेले चलना पड़ेगा?
"मगर
मैं भारत को प्यार करता हूं; हाना, मुझे उसके महान लोकतंत्र, अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता और व्यक्ति स्वातंत्र्य से
प्यार है। मुझे वेद-वेदांत अच्छे लगते हैं। मैं
शंकराचार्य के दर्शन 'ब्रह्म सत्य-जगत मिथ्या' से प्रभावित
हूँ। मुझे तुम्हारी परंपराओं से प्रेम है।”
धत्!
यह अल्बर्टो कितना अजीब है! उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना भी नहीं आता है। वह यह कह सकता है, मुझे घर से प्यार है, मुझे
इस मिट्टी से प्यार है, उसके
बगीचे से प्यार है, मगर
यह नहीं कह सकता है कि मुझे घर में रहने वाले मनुष्य की आंखों से प्यार है, उसके होंठ
और सरल हृदय से प्यार है। वह पूछ सकता था कि मैंने उसे एक
विदेशी पक्षी क्यों कहा? क्या
प्रवासी पक्षी हर साल
इस धरती पर नहीं आते है? हर्षा अनुभव करने लगी कि दोनों के भीतर हिलोरे ले रही छटपटाहट अभी भी संकोच की स्थिति को पार नहीं कर पा रही है।
वह
अल्बर्टो के फोन का इंतजार करते-करते थक गई थी।
उसने मन-ही-मन यह भी निर्णय
लिया कि ऐसी कल्पनाओं से अब वह दूर रहेगी। रविवार सोचकर
वह अल्बर्टो को लंच के लिए बाहर जाने का प्रस्ताव
देने वाली थी। वह भैरवी और नवीना की तरह डेटिंग पर नहीं जा सकती थी, मगर वह
अल्बर्टो के साथ कुछ घंटे बाहर बिताए तो क्या
नुकसान होगा? उसने कभी नहीं सोचा था कि रविवार पूरी तरह बर्बाद चला जाएगा।
वह
खुद अपने स्वयं के रूपान्तरण से आश्चर्यचकित थी। उसके माता-पिता ने कितने विश्वास के
साथ उसे दिल्ली भेजा था, क्या वह सही कर रही थी? बेशक, उन्होंने
उसे नहीं भेजा था, बल्कि वह अपनी जिद्द पर आई थी। पिताजी चाहते थे कि वह उनके साथ रहें और पीजीडीसीए जैसा कंप्यूटर का कोई कोर्स
पूरा करें। यदि नहीं तो वह विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएशन करें। मगर वह पुराने वातावरण से मुक्ति चाहती थी। वह अपनों से इतना दूर जाना चाहती थी कि उनकी छाया तक उस पर नहीं पड़ें।उसके इस विद्रोह के सामने किसी की नहीं चली। उन्होंने सोचा कि केवल कुछ ही दिनों की बात है, उसे जाने दो,समय आने पर अपने
आप ठीक हो जाएगी। क्या
दिल्ली उसे इस तरह की जिंदगी के लिए बुला रही थी?
अल्बर्टो के फोन करने का कोई निर्दिष्ट समय
नहीं था। वह समय-असमय फोन करके कहता था: "हाना, आई
नीड़ यू।"
"तुम ऐसा क्यों कहते हो, आई
नीड़ यू? हर्षा ने शिकायत की, “उसके दिल में कुछ अजीब-सा अनुभव होने लगता है। "
"क्या
अजीब-सा अनुभव होता है?" अल्बर्टो ने आश्चर्य से पूछा "मैंने तो ऐसे खराब शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।ओह, मुझे
खेद है कि मेरी अंग्रेजी इतनी अच्छी नहीं है।फिर ‘नीड़
यू ' शब्द का प्रयोग कहाँ किया जाता है, हाना? वास्तव
में, मैं तुमसे कुछ
पूछना चाहता था। तुम जानती हो,हाना, हमारे
देश के अधिकांश लोग
अंग्रेजी नहीं बोल सकते हैं। मैंने अपनी इच्छा से तीन साल तक अंग्रेजी का अध्ययन
किया था। हाना, मैं
बहुत अच्छी तरह फ्रेंच बोल सकता हूं, पढ़ सकता
हूं और लिख सकता हूं। मुझे स्पेनिश भी आती है। मैं जर्मन पढ़ सकता हूं। मगर मुझे उनकी बोलचाल की भाषा समझ में नहीं आती हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है
कि मेरी पत्नी भी जर्मन है।
"
"क्या
तुम ये सब बातें बता कर मुझे प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हो?"
“ प्रयास
करने में क्या बुराई है? मैं
तुमसे प्यार करता हूँ। तुम्हारे
सामने मुझे मेरी छवि तैयार करने की आवश्यकता नहीं है? क्या तुम जानती हो, हाना, तुम्हारी कौनसी चीजमुझे सबसे ज्यादा पसंद है?
"
"कौनसी चीज?" हर्षा जानने के लिए उत्सुक थी।उसने सोचा कि अल्बर्टो कहेगा, आकाश
से उतरते बादलों की तरह उसकी आंखें, उसकी खूबसूरत
नाक या कमर तक लटकते लंबे
बाल। मगर अल्बर्टो के जवाब ने उसे आश्चर्यचकित कर दिया: "मैं तुम्हारी बुद्धि से प्रेम करता हूं: मुझे तुम्हारा साफ हृदय
पसंद है।"
“तुम शरीर के भीतर खोपड़ी के किसी कोने में छिपी हुई बुद्धि
को समझ सकते हो; तुम छाती के
भीतर हृदय की
सफाई देख सकते हो, मगर मेरे पांच फीट चार इंच ऊंचे शरीर ने तुम्हारा ध्यान आकर्षित नहीं किया ?”
आँखों
से चश्मा उतारकर पोंछते हुए अल्बर्टो ने कहा: "मेरी आँखें दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है।
मैं साफ-सुथरा
चेहरा नहीं देख पाता हूँ। क्या किया
जा सकता है?”
हर्षा ने अल्बर्टो को पीटने के लिए अपना मनी पर्स उठाया।
“मुझे
लगता है कि तुम मजाक करना बहुत अच्छी तरह जानते हो।"
"सच बोल, हाना, मेरी आँखों में कुछ समस्या नहीं दिखाई दे रही है।"
हर्षा ने कोई
जवाब नहीं दिया।जैसे कि विषाद
उसके मन के नीचे गहराने लगा हो।अगर वह उसके चेहरे की तारीफ करती, तो
क्या वह झूठ बोलती? कौन
जानता है? उसने पहले से बहुत दर्द झेला है।कभी-कभी उसे
अपने शरीर से घृणा होती थी। शरीर में कहीं छलकते पानी पर नरम पंखुड़ियों पर बैठता है मन , मगर कुछ लोगों को यह नहीं पता चलता है। वह पहले इस विचार से भयानक पीड़ित
थी। अब वह दुखी इसलिए थी कि जो आदमी उसे प्यार करता
है,वह उसके
शरीर की तरफ एक
बार भी ध्यान नहीं देता है।
वह जानती थी कि यूरोपीय लोग सेक्स-टाबू से ग्रसित नहीं हैं। मगर जब वह अल्बर्टो का संयम देखती है तो उसे संदेह होने लगता है।अल्बर्टो के प्यार के बारे में भी संदेह होने लगता है।
किसी काम से तो अल्बर्टो कहीं बाहर नहीं चला गया? बाहर जाने से पहले वह कम से कम हर्षा को सूचित नहीं कर सकता था? हर्षा का प्रेम पर बहुत पहले से विश्वास उठ चुका था। उसकी धारणा बन गई थी कि अपनी भूख को मिटाने के लिए आदमी को महिला की जरूरत पड़ती है। यदि भूख नहीं होती तो पता नहीं, उसे नारी की आवश्यकता होती
भी या नहीं? अल्बर्टो से मिलने
के बाद उसके पहले वाले विचारों में बदलाव
आया था। यह कहना मुश्किल होगा कि क्या वास्तव बदलाव आया, मगर वहएक बिन्दु पर स्थिर हो गई थी, जहां से वह आगे नहीं सोच सकती थी। अल्बर्टो अक्सर कहता था: "हाना,मैं तुमसे प्यार करता हूँ।" मगर यह कहने के अलावा, वह कुछ और चाहता था, कहने में वह बहुत कंजूस था। क्या उसे एशियाई त्वचा के
प्रति घृणा है? या फिर वह मानसिक स्तर पर अधिक रक्षणशील है ?
मन-ही-मन हर्षा
सोचने लगी कि वह अल्बर्टो के बुलाने पर और नहीं जाएंगी। मगर वह उसका फोन आते ही खुद को रोक नहीं पाई।वे कुछ पार्क या रेस्तरां में
कुछ समय बिताते थे। यह जानकार भैरवी और नवीना मजाक में पूछने लगी : "तुम्हारे
शाकाहारी संबंध कहाँ तक पहुंचे?" उनके व्यंग्य से हर्षा अंदर से आहत हुई थी, मगर इस बात से आश्वस्त थी कि जो हुआ
ठीक हुआ क्योंकि उसे भविष्य में अल्बर्टो के साथ अपने रिश्ते की सफाई नहीं देनी
पड़ेगी।
जब हर्षा को यकीन हो गया था कि अल्बर्टो का और फोन नहीं आएगा, बस उसी समय उसका मोबाइल कंपन के साथ बज उठा था। दौड़कर बिस्तर से मोबाइल फोन उठाकरजैसे ही उसने ऑन
का स्विच दबाया, दूसरी तरफ से अल्बर्टो की आवाज सुनाई
पड़ी: "मैं बहुत बीमार हूं, हाना।आज हमारी मुलाक़ात नहीं हो सकती हैं। "
हर्षा चिंतित हो गई थी, "क्या हो गया अल्बर्टो को? तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? तुम अभी हो कहाँ पर ? मैं पूरे दिन तुमसे
संपर्क करने की कोशिश करती रही,मगर असफल रही। क्या तुम
मुझे अपना नहीं मानते हो? फिर तुमने मुझे अपनी
बीमारी के बारे में क्यों नहीं बताया? "
"तुम इतनी चिंतित क्यों हो? कुछ भी नहीं हुआ है; बदहजमी के कारण दस्त लग रहे थे।अब
मैं ठीक हूँ, मगर मुझे थोडी कमजोरी लग रही है।
"
"पागल , तुम मुझे पहले बता सकते थे ? मैं आ रही हूं, अल्बर्टो। "
"नहीं, मत आओ। मैं अब केवल सोना चाहता हूँ, हम कल मिलेंगे।"
यह कहकर उसने मोबाइल डिस्कनेक्ट कर दिया। हर्षा सोचने लगी कि अल्बर्टो उससे कुछ छिपा रहा है।वह
अभी तक ठीक नहीं हुआ है। वह विदेश में है, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बिना। साउथ ब्लॉक
में उसका अपार्टमेंट हर्षा के घर से ज्यादा दूर नहीं था।वह उससे मिलने के लिए हडबड़ाकर बाहर
निकली।
शाम का समय होने के कारण
यातायात जाम था,फिर भी वह आधे घंटे के अंदर उसके घर पहुंच गई। अल्बर्टो ने कहा, "तुम क्यों आई हो? मैं बिल्कुल ठीक हूं।"
"तुम चुपचाप बैठो। तुम्हें सफाई देने की आवश्यकता नहीं है। पहले बताओ कि तुम्हारी यह हालत कैसे हुई। "
"तुम्हारे देश के भोजन-पानी के कारण।" अल्बर्टो ने
मुस्कराते हुए कहा।
"तुम तो बहुत दिनों से मेरे देश के भोजन-पानी के आदी हो।मज़ाक मत
करो, सच बताओ। "
"प्रोफेसर नंदी के घर में कल डिनर था।सभी आइटम तैलीय और मसालेदार थे। तुम्हें पता है, मैं एक लैक्टोज शाकाहारी हूं, इसलिए जो भी कारण हो, पानी भी हो सकता है।
जो भी तुम कहो, दिल्ली में पानी की अवस्था बहुत हॉरीबल है। "
हर्षा ने कहा, “ हमारे यहाँ एक कहावत है: 'जब तुम रोम में हो, रोमन बनो।' तुम्हें इसे मानना पड़ेगा; जब हमारे लोग तुम्हारे देश जाते हैं, तो क्या वे तुम्हारे देश का खाना खाकर नहीं जीते हैं? इसके अलावा, आवश्यकता पड़ने पर मनुष्य को बांस
की जड़े खाकर भी जिंदा रहना पड़ता
है । इस बात से मुझे एक अच्छी कहानी
याद आ गई।
"सुनाओ", बहुत रुचि दिखाई
थी अल्बर्टों ने। उसके पास विभिन्न देशों के मिथकों की एक किताब थी। हर्षा ने देखा उसमें महाभारत की अनेक कहानियां
प्रकाशित हुई थी। इसलिए जब भी उसने हर्षा से कहानी सुनाने के लिए कहा, तो उसने कभी संकोच
नहीं किया।मगर उसके बीमारी की अवस्था में कहानी सुनाना उचित होगा?
"तुम बीमार हो," हर्षा ने कहा।
"ओह, हाना, मैं मर नहीं जाऊंगा। कृपया सुनाओ न।"
"तब सुनो। यह 'त्रेता' और 'द्वापर' युग के
संक्रमण-अवधि की कहानी है। कई सालों से
बारिश नहीं होने के कारण संसार विनाशकारी अकाल की चपेट में आ गया। किसी भी
आदर्श या आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए लोग भोजन की तलाश में विभिन्न देशों में
चले गए। मां अपने बेटे के लिए उद्दिष्ट खाना खाने में संकोच नहीं करती थी।लोग
खाद्य-अखाद्य पदार्थों के बीच भेद नहीं करते थे।तुम जानते हो, जब दुनिया में
जीवों की संख्या सीमा से अधिक बढ़ जाती है, प्राकृतिक विपदाएँ पैदा होती हैं। संसार आधे
प्राणियों के विनाश के बाद ही राहत की सांस लेता है। "
"ऐसी स्थिति में महर्षि विश्वामित्र
ने सपरिवार अपना निवास-स्थान छोड़कर भोजन की तलाश में विभिन्न गांवों में भटकने
लगे।जहां भी वे जाते थे,खाद्य तो दूर की बात मकई का एक दाना नसीब नहीं होता था। गृहस्थी के रूप में अपने परिवार के पोषण की ज़िम्मेदारी
उनकी थी। भोजन की तलाश में यहां-वहाँ भटकते हुए एक दिन उन्होंने शहर के किसी बाहरी इलाके
के एक विशेष स्थान के आस-पास बहुत सारे कौओं को उड़ते देखा। उन्हें उम्मीद बंधी कि
वहां कुछ खाना अवश्य मिलेगा। इस जगह की ओर आगे बढ़ने के लिए, अपने परिवार को
उन्होंने एक पेड़ के नीचे छोड़ दिया। शहर के बाहरी इलाके में चांडाल बस्ती थी।
नजदीक पहुँचने पर उन्होंने कुत्तों और
गधों को विचरण करते हुए देखा।उन्होंने अनुमान लगाया कि इस बस्ती में खाने का अभाव
नहीं होगा। सड़क पर चलते समय उन्होंने कई लोगों को मांस खाकर शराब पीने के बाद एक दूसरे को गाली-गलौच करते हुए देखा। वे
आश्चर्यचकित थे और यह सोचकर प्रसन्न भी थे कि यह बस्ती अकाल की चपेट से कैसे बच गई।जो हो, उन्होंने सोचा कि इस बस्ती से भिक्षा मांगकर खुद
और अपने परिवार को बचाया जा सकता है। वे दरवाजे से दरवाजे जाकर भिक्षा मांगने लगे,मगर किसी ने उनकी
प्रार्थना नहीं सुनी। बल्कि उपहास से लोग उन पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने लगे।
द्वार-द्वार भिक्षा मांगते-मांगते विश्वामित्र थक गए थे। वह और एक कदम नहीं चल
सकते थे। तभी उन्हें एक चांडाल के घर के दरवाजे की फांक से बीच में कुत्ते का मांस
पड़ा हुआ दिखाई दिया और वह आराम करने के बहाने वहाँ बरामदे में सो गए। अंदर में
चांडाल और उसके दोस्त लोग शराब पीकर कोलाहल करने लगे।धीरे-धीरे शाम हो गई। दोस्त
लोग चले गए । जब विश्वामित्र ने घर में शराब के नशे में चूर चांडाल को अकेले देखा
तो वह कुत्ते के मांस को लेने के लिए उसके
घर में प्रवेश किया। उसी क्षण हाथ में तेज चाकू लिए चांडाल गरजने लगा, मेरे घर में घुसकर
कौन मांस की चोरी कर रहा है? बहुत शर्मिंदा होकर विश्वामित्र ने अपना परिचय
दिया, यह सुनकर चांडाल
आश्चर्यचकित था। उसने माफ़ी मांगी, मैं आपको अंधेरे और नशे की वजह से पहचान नहीं सका, मुझे माफ कर दो।
मगर मेरे मन में एक प्रश्न आया है।क्या यह काम आपके जैसे महान व्यक्ति के लिए
अच्छा है? '
"तुम जानते हो कि विश्वामित्र ने
क्या जवाब दिया?
मैं अपने काम से शर्मिंदा हूँ।मेरे पास कोई रास्ता नहीं था I मेरे भूखे परिवार
के लिए भोजन ढूंढना ही मेरा एकमात्र कर्तव्य था। भिक्षा नहीं मिलने के कारण जब मैं
निराश हो गया, तभी मेरी नजर इस
कुत्ते के मांस पर गिरी, इसलिए मैं अपने परिवार की जान बचाने के लिए चोरी कर रहा था।
चांडाल ने फिर से कहा,“आप ब्राह्मण होकर भी एक चांडाल के जूठे भोजन को
लेने के लिए तैयार थे, क्या यह धर्म के अनुसार अभक्ष्य नहीं है? तुम
जानते हो अल्बर्टों, विश्वामित्र ने क्या जवाब दिया? उन्होंने कहा:
बुभुक्षित या मरने वाला व्यक्ति अपनी जान बचाने के लिए जो कार्य करता है, वह धर्म के अनुसार
है और सही कर्म है।" हर्षा ने कहानी
को समाप्त करते हुए कहा, "जब तक तुम मेरे देश में रहते हो, तब तक तुम्हें मेरे देश का भोजन-पेय लेना पड़ेगा।"
अल्बर्टो ने कहानी को सुनने के बाद हर्षा
से पूछा कि क्या चांडाल विश्वामित्र की बात सुनकर चुप रहा।
"नहीं, उनके बीच काफी तत्व-चर्चा और तर्क-वितर्क हुआ था, मगर मैं उन सभी बातों
को भूल गई हूं।"
अल्बर्टों ने कहा, "यू आर रियली
वंडरफूल लेडी। इसलिए जिस दिन तुमसे नहीं मिलता हूँ तो खाली-खाली लगाने लगता
है।"
एक दिन के भीतर उसका चेहरा सुखकर काला काठ
हो गया था। हर्षा बाहर चौकी पर बैठी हुई थी और घर में चारों तरफ किताबें-ही-किताबें नज़र आ रही थी।
टेबल पर किताबों के ढेर पड़े हुए थे। बिस्तर के पास प्लास्टिक की टोकरी में ओआरएस घोल के कवर पड़े
हुए थे। वह अल्बर्टो के फ्लैट में पहली बार आई थी।
"हाना, थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, मैं अभी आ रहा
हूं।" कहकर वार्डरोब से कपड़ों की एक जोड़ी लेकर बाहर चला गया अल्बर्टों और एक
नीली पैंट और आसमान-नीली शर्ट पहनकर जल्दी लौट आया।
"तुम सूटेड-बूटेड होकर कहाँ जा रहे हो? तुम बीमार हो! तुम कमजोर हो!"
" मुझे लगता है कि बाहर घूमकर आने से अच्छा
लगेगा। दिन भर घर में बैठे-बैठे बहुत खराब लग रहा है।"
" ठीक है चलो, मगर ज्यादा दूर
नहीं, तुम क्या कहते हो?"
थोड़ा चलने के बाद वे बच्चों के पार्क में
बैठ गए।
" कैसा लग रहा हैं, अल्बर्टो?"
“ आगे से अच्छा लग रहा है। बंद कमरे से
बाहर निकलने पर खुला-खुला लग रहा है।
आज सवाल पूछने की तुम्हारी बारी थी। हाना, क्या तुम्हें याद
हैं? "
"नहीं,आज नहीं।किसी और
दिन।आज मुझे देर हो रही है।मैं ज्यादा समय नहीं बैठ पाऊँगी।अगर मैं तुम्हारे पास
एक घंटे या उससे ज्यादा बैठती हूं तो लौटते-लौटते मुझे अंधेरा हो जाएगा। तुम तो
जानते हो, दिल्ली आजकल बिलकुल सुरक्षित नहीं है। मैंने तुम्हारे लिए सात सवाल तैयार करके रखे हैं।"
" वास्तव
में, फिर क्यों नहीं
पूछ रही हो ? पूरे दिन न तो पढ़ाई और न ही चर्चा होने
के कारण खराब हो गया। यहां तक कि मैं भी तुम्हारे साथ अच्छी तरह समय नहीं बिता
सका। यदि तुम मुझे प्रश्न पूछोगी तो अच्छा लगेगा।”
" नहीं, देर हो जाएगी, अल्बर्टो।"
" मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊँगा। मुझ पर
तुम्हें क्या इतना विश्वास नहीं है?”
“ भरोसा है तभी तो मैं बिना किसी झिझक
के तुम्हारे पास आई हूँ।” हर्षा ने कहा।
“ ठीक है, तुम्हारे लिए पहला
सवाल :
तुम्हारा सपना क्या है, अल्बर्टों? "
“सपना?” उसने अपने नीचे वाले होठ को ऊपर वाले होठ से दबाया; उसके माथे पर एक शिकन दिखाई दे रही थी। “ अकेलेपन से मुक्ति”
हर्षा अल्बर्टो के इस उत्तर पर
आश्चर्यचकित थी। क्या कोई इस तरह का जवाब देता है? अपने जीवन का सपना
अकेलेपन से मुक्ति है? वह इतना अकेला
क्यों है? उसके चारों ओर बहुत से लोग हैं, इतनी भीड़ हैं, फिर भी वह अकेला है?
"तुम्हें इतना अकेलापन क्यों लगता है, अल्बर्टो? क्या तुम साठवें
दशक के अस्तित्ववाद से प्रभावित तो नहीं हो?
"
“
नहीं,नहीं” अल्बर्टो ने कहा ।
“ किसी से प्रभावित होने से अकेलापन क्यों
महसूस होगा? अकेलापन फैशन नहीं है; न यह असंगत है। जो व्यक्ति किसी
लक्ष्य को पाने के लिए दौड़ता है, वह अकेला हो जाता
है। तुम गौतम बुद्ध या आइंस्टीन का उदाहरण
देखो, सभी किसी समय अकेलेपन का शिकार हुए थे। "
“ तब तुम तो महान संत हो ?” हर्षा ने पूछा।
" नहीं, हाना, मैं एक संत नहीं
हूँ। तुम्हारे महात्मा गांधी भी एक दिन अकेले थे। याद करो, जब अंग्रेज़ भारत छोड़कर जा रहे
थे, तो भारत का पहला प्रधानमंत्री कौन बनेगा, विषय पर विवाद चल रहा था? : जिन्ना या नेहरू? गांधी भूख हड़ताल पर बैठे थे, कोई भी उन्हें समझ नहीं सकता था। क्या कम बड़ा अकेलापन नहीं था!"
“ तुम्हारे पास अकेलेपन से मुक्त होने का कोई रास्ता तो होगा ?" हर्षा ने पूछा।
"मैं ईश्वर के साथ एक होना चाहता हूं। मुझे मोक्ष चाहिए। अब यह तुम्हारी बारी है, हाना, तुम मुझे बताओ, तुम्हारा सपना क्या है? "
"मुझे सपने देखने में बहुत डर लगता है।आंखें बंद होने पर मुझे अंधेरा नजर आता है। क्या मैं कभी सपने देख पाई हूँ? हमेशा ही बुरे सपने। बुरे सपनों से मुझे कोई राहत नहीं मिली। मैं अपने अतीत को भूलना चाहती हूं। तुम इसे मेरा सपना मान सकते हो।"
"तुम इतनी उदास
क्यों हो, हाना? इस दुनिया
में किसे कोई दुख नहीं
है? इसके बावजूद क्या जीवन किसी एक बिंदु पर रुक
जाता है? कभी-कभी
नकारात्मक दृष्टिकोण हानिकारक सिद्ध होता है, क्या तुम इसे नहीं जानती हो? तुम्हारा अतीत क्या है? "
"छोड़ो अभी,कभी दूसरे दिन बात करेंगे। अब मुझे बताओ, तुम्हारी
नजरों में एक महिला के आवश्यक गुण क्या है ?
"
"दूसरों को अच्छी तरह से समझने का गुण और प्यार देने में कंजूसी न करने का गुण।"
"अँग्रेजी में जिसे तुम ‘सेंस’ एंड ‘सेन्सुअलिटी’ कह सकते हैं।" अल्बर्टो के हाथ को दबाते हुए वह
हँसने लगी।
"एक असामान्य बयान! एक संन्यासी के मुंह से 'प्रेमालाप' शब्द ?
"आह, तुम्हें क्या लगता है कि महिला भोलीभाली होने से
ही मुझे पसंद आएगी ? क्या
यह सही नहीं है कि एक नारी में प्रेमिका का हृदय होना चाहिए? अब तुम्हारी बारी है, हाना, तुम बताओ, नारी
कैसी होनी चाहिए? "
"कभी-कभी मैं क्या सोचती
हूँ जानते हो, अल्बर्टों? मुझे लगता है
नारी जैसी भी हो, उसके होने या न होने, उसके
अच्छे गुण या बुरे गुण- ये सब अर्थहीन हैं। ज्यादातर लोगों के पास ये
सब देखने का समय नहीं है। वे इतना पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं कि वे उसे नरक का द्वार, ईर्ष्यालु
और बच्चा पैदा करने वाली मशीन मानते हैं। पुरुष भी ईर्ष्यालु हो सकता है? क्या वह पतन के रास्ते में नहीं जाता है ? क्या केवल नारी को प्यार देना
चाहिए, पुरुष को नहीं? छोड़ो, मैं ये सारी बातें तुम्हें क्यों कह रही हूं? नारी को हमेशा मृदुभाषी और दृढ़ होना चाहिए।मुझे बताओ, प्यार के बारे में तुम क्या
सोचते हो ? देखते है संन्यासी के लिए प्रेम का क्या अर्थ
है? "
" क्यों मुझे संन्यासी कह रही हो ? मैं संन्यासी नहीं हूं, हाना।
मैं क्रिस्टीना को बहुत प्यार करता हूँ। क्या तुम नहीं जानती हो कि तुम्हारे लिए भी मेरा प्यार असीम है? What is
though lovestwell remainsthe rest is trash.' 'कहकर चुपचाप हर्षा की ओर देखने लगा अल्बर्टों।
हर्षा ने सोचा कि इस आदमी को मेरे प्रेम-निवेदन की कला मालूम नहीं है, मगर वह हर्षा से बहुत प्यार करता है । तब फिर उसने यह नहीं कहा होता कि वह
क्रिस्टीना से बहुत प्यार करता है और तुमसे भी। उसने स्पष्टवादी अल्बर्टों की तरफ देखा; नहीं, वह
झूठ नहीं बोल रहा था। नहीं, वह
ढोंगी नहीं है। मन-ही-मन हर्षा उसे मूर्ख कह रही थी, वह इसे और अधिक अच्छे ढंग से नहीं
कहसकता था?
हर्षा ने कहा, "दुनिया में सबसे सुंदर चीज प्यार है। मुझे नहीं पता कि तुम्हारे जैसे दार्शनिक क्यों इसे माया कहते हैं? "
" तुम शंकराचार्य की बात कर रही हो ? नहीं, हर्षा, मेरा प्यार कोई माया नहीं है। तुम ऐसा क्यों सोचती हो?"
" मैं बहुत खुश हूँ कि तुम इस समय दार्शनिक की तरह बात नहीं कर रहे हो। वरना, मैं निराश हो जाती। "
हर्षा अपने चौथे प्रश्न को बदलना चाहती थी। उसका चौथा सवाल था, "तुम किस काम के लिए खुद को दोषी मानते हो?" वह इस प्रश्न को थोड़ी देर बाद पूछने का सोच रही थी। अल्बर्टो के मन की बात जानने के लिए वह उस पल ऐसा प्रश्न पूछना चाहती थी, जिससे उसके अंदर छिपी हुई भावना प्रकट हो।
“ परकीया प्रेम के बारे तुम्हारे क्या विचार है,अल्बर्टों ?"
“ अगर किसी को कोई क्षति नहीं होती है तो असुविधा क्या है ?”
इस बौद्ध की इस राय पर हर्षा को आश्चर्य हुआ। उसकी धारणा थी कि अल्बर्टो इसे अन्यायपूर्ण और पाप मानेगा। मगर अल्बर्टो के अंदर से कोई प्रेमी बोल रहा था।
"मैं
एक और सवाल पूछूंगी,जो थोड़ा व्यक्तिगत हो सकता है,मुझे डर
है कि कहीं तुम मुझे गलत न समझ लो।"
"हाना, तुम हमारे खेल के नियम भूल रही हो, पहले हम दोनों एक ही सवाल का जवाब देंगे, मगर तुमने पिछले प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। "
"हाँ, मैं भूल
गई थी। तुम तो जानते हो कि मैं
प्यार को कितना महत्त्व देती हूं, इसलिए समाजिक बाधा-बंधन
मेरे लिए अर्थहीन हैं।लेकिन अल्बर्टो, मुझमें सामाजिक आचार-संहिता का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं है। मैं रक्षणशील परिवार में पैदा हुई।मेरे पिता हाई स्कूल के हेडमास्टर थे, वह
थोड़ा उदारवादी थे। लेकिन
मेरे दादा पूरी तरह से अलग, कठोर और
रूढ़िवादी थे। वह पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मुक्तिमंडप के पंडित
थे। उन्होंने वेद-वेदांतों का काफी अध्ययन किया था; लेकिन उन्हें अपने एक कुलीन ब्राह्मण होने का कम गर्व नहीं था। मैंने उन्हें साष्टांग दंडवत तीर्थयात्रियों के सिर पर अपने पैरों से विष्णु-मुद्रा में आशीर्वाद देते हुए देखा हैं।पाप-पुण्य का हिसाब मानो उनकी
उंगलियों पर हो।जानते हो, मेरी बुआ की आठ साल
की उम्र में शादी हुई थी, पैतालीस वर्ष के पंडित के साथ। दुर्भाग्यवश, यौवन
प्राप्त करते-करते वह विधवा बन गई। सारे कठोर अनुष्ठानों,व्रत-उपवास का पालन करते हुए उन्हें वैधव्य-जीवन
बिताना पड़ा। जब मेरे सनातन मामा आते थे तो बुआ को अच्छा लगता था। जिस दिन वे चले जाते थे,मैं बुआ की आँखों में आँसू देखती थी। मैंने आज तक यह बात किसी से नहीं कही।चाहे आप स्पर्श करें या न करें, व्यक्त
करें या न करें, प्रेम वायवीय रूप से
जोड़ सकता है।मेरी बुआ की
तुलना में मैं अधिक स्वतंत्र हूँ , लेकिन हिम्मत ? "
"तुम तो एक निजी
सवाल पूछना चाहती थी,हाना, पूछो।"
"नहीं, रहने दो।," हर्षा ने कहा।
"मैं
तुम्हारे सारे सवालों का जवाब देने के लिए तैयार हूं, बिना किसी
झिझक के पूछ सकती हो।"
हर्षा पहले असमंजस में पड़ गई कि
कैसे प्रश्न पूछा जाए।
"मैंने
सुना है कि पश्चिमी देशों में तुम्हारे जीवन में कोई सेक्स-प्रतिबंध नहीं है, मतलब तुम लोग अपनी पत्नी के अतिरिक्त भी... । "
"हे, हाना, इतनी झिझक? तुम सीधे क्यों नहीं पूछती? मैंने शुरु से कह चुका हूँ, मैं अपने जीवन की सारी बातें
बताऊंगा,उसका कोई मतलब नहीं है। मगर मैं तुमसे कभी झूठ नहीं बोलूँगा। जब मैं कॉलेज में था, मेरा दो सहेलियों के साथ शारीरिक संबंध थे, लेकिन
मेरी शादी के बाद अब ऐसे कोई संबंध नहीं
है। मेरे लिए बिना प्यार के शारीरिक संबंध असंभव है। तुम्हें यह
जानकर हैरानी होगी कि मैं कभी वेश्यालय नहीं गया हूं। "
हर्षा
ने कहा, "तुम तो बहुत
अच्छी तरह से जानते हो कि मैं कैसे परिवार
से आई हूं।तुम मेरी
स्थिति की कल्पना कर सकते हो। मैं तुम्हारे प्रश्न
का उत्तर कैसे दे सकती हूं? आज यहां
तक ही, बाकी प्रश्न
और किसी दिन पूछूंगी। "
अल्बर्टो
उठ खड़ा हुआ। "जब मैं बारह साल का था, तब स्कूल
में यौन-शिक्षा दी जाती थी। इस तरह की शिक्षा भारत में भी दी जानी
चाहिए। "
हर्ष
हँसने लगी।
"क्या तुम पागल हो गए हो? तुम्हारे वहाँ यौन-शिक्षा दिया जाने से क्या अच्छा हुआ है? अभी भी समलैंगिकता, समलैंगिक-विवाह
तुम्हारे देशों में अधिक है। खैर छोड़ो,
यूरोपीयन लोगों की और बात नहीं करूंगी। "
" देन व्हाट्स द रोंग? मुझे
समलैंगिकता में कुछ खराबी नहीं लगती।
"
"प्लीज बंद
करो। आज और नहीं। और कभी इस विषय पर चर्चा
करेंगे " अल्बर्टो ने अचरज से उसे देखा। फिर वह कहने लगा, "चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता
हूँ।"
"मैं
चली जाउंगी। ज्यादा देर
नहीं हुई है। तुम चिंता मत करो। मैं जा रही हूँ। "
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