2


2.

क्या तुमने पीटरब्रुक का नाम सुना है, हाना?"

"कौन है य?"

"पीटरब्रुक का महाभारत पश्चिमी देशों में बहुत प्रसिद्ध है।"

" सही?  क्या उन्होंने महाभारत को अंग्रेजी में लिखा है? "

"ओह, नहीं, नहीं, उन्होंने महाभारत पर एक फिल्म बनाई है।"

"मैंने बी॰आर॰चोपड़ा का महाभारत टी॰वी॰ पर देखा है।  । "

"क्या तुम उस बी॰आर॰ के सोप ओपेरा की बात कर रही हो, जिसमें समय का पहिया घूमता है?"

"ठीक वही है, तो तुमने भी बी॰आर॰ का महाभारत देखा है, अल्बर्टो।"

"हाँ, मैंने देखाफिर भी मुझे पीटरब्रुक के महाभारत की गुणवत्ता बेहतर लगती है। "

हर्षा ने आश्चर्य से कहा, " क्या मतलब ?" "क्या तुम्हें पता हैं कि बी॰आर॰का महाभारत हर रविवार को एक घंटे के लिए पूरे भारत के हृदय की धड़कन को रोक देता था? लोग अपने सारे काम-धाम छोड़कर टीवी के सामने बैठ जाते थे। "

" हो सकता है। लेकिन यह कोई तर्क नहीं है।जब तक तुम पीटरब्रुक की महाभारत नहीं देख लेती हो तब तक तुम इसे नहीं समझ पाओगी।

हर्षा को अल्बर्टो पर बहुत गुस्सा आ रहा था। देखो, इस आदमी का साहस देखो।उसका रुचिबोध? यह कैसे संभव है? एक विदेशी व्यक्ति भारतीय नाड़ी को पकड़ सकता है, जबकि वह भारतीय नहीं है। भारत में बच्चे-बच्चे को रामायण और महाभारत की कहानियों का पता है; एक अनपढ़ औरत भी एक घंटे या उससे ज्यादा समय तक  महाभारत की बता सकती है। लेकिन अल्बर्टो उसे कह रहा है कि पीटरब्रुक का महाभारत बेहतर है?

 नहीं, वह दो कारणों से अल्बर्टो के साथ बहस नहीं कर सकती। पहला कारण,उसने पीटरब्रुक का महाभारत नहीं देखी है और दूसरा कारण, महाभारत अल्बर्टो की कमजोरी है। वह महाभारत से बहुत प्रभावित था। जैसे एक बार उसने पूछा: " दुर्योधन की माता गांधारी, कृष्ण को ईमानदार और सत्यवादी नहीं मानती थी न ? गांधारी को कभी-कभी कृष्ण की भूमिका पर संदेह होता था। मैं ठीक कह रहा हूं,हाना ?  और वह कभी कहता:  कुंती और सूर्य के पुत्र कर्ण को अर्जुन का प्रतिद्वंद्वि क्यों  बनाया?  कृष्ण की सहायता और सलाह के कारण उसकी दुखद  मौत हुई? उसका पूरा जीवन कटुता और आत्म-घृणा में क्यों बीता ? वह तो अपने जन्म के लिए ज़िम्मेदार नहीं था। क्या तुम्हें पता हैं, फ्रायड ने अपने अध्याय 'मूसा और एकेश्वरवाद' में कर्ण का उदाहरण दिया है?

हर्षा अल्बर्टो के ऐसे सभी सवालों का कैसे उत्तर दे पाती ? ये सवाल तो बचपन से उके दिमाग में घूम रहे हैं।  जीवन सभी दर्शन,पूर्वजन्म,परजन्म और कर्मफल के सिद्धांत इत्यादि को ध्यान में रखने पर भी उसे एक निर्धारित नियम नहीं मिला। आज तक कर्ण के लिए उसके मन में उनकी थोड़ी सहानुभूति है।

हर्षा ने कहा: "मैंने कहीं गांधारी के बारे में पढ़ा था। एक बार उसने कृष्ण से पूछा, 'हे अंतर्यामी!,हे परमपुरुष! क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मेरे कौनसे पापों के कारण मैंने अपने सौ-पुत्रों को खो दिया हैं? क्या तुम जानते हो अल्बर्टो, कृष्ण ने क्या उत्तर दिया था? कृष्ण ने न्याय, परजन्म और कर्मफल की बात कही थी। उन्होंने कहा था, 'ऐसा नहीं है कि हम सदैव इस जन्म के कर्मफल भोगते हैं। हमारी आत्मा जन्म-जन्मों के पाप-पुण्य ढोती जाती है। माँ, आप अपने पूर्व जन्म के कर्मों के फल भोग रही हैं। उन्होंने गांधारी को अपनी आँखें बंद कर अपने पूर्व जन्मों के बारे में जानने की सलाह दी। गांधारी को अपनी आँखें बंद करते ही अपने पूर्वजन्म दिखने लगे। लेकिन उसे यह महसूस नहीं हुआ कि उसने कहीं कुछ पाप किया है।जब उसने कृष्ण को यह बताया, तो कृष्ण ने फिर से एक बार आँखें बंद कर अपने पूर्व जन्म का अनुधान करने के लिए कहा। उसने देखा कि अपने पिछले छह जन्मों में उसने कोई पाप नहीं किया है।अंत में, वह अपने पिछले सातवें जन्म के दृश्य देखने लगी। उसने देखा कि वह चंचल लड़की बालिका के रूप में एक बार वह समुद्र तट पर भ्रमण कर रही थी तो वहाँ कछुए के अंडे देखकर उसकी उत्सुकता जागृत हो गई। उसने एक के बाद एक करते हुए सौ अंडे तोड़ दिनिरीह कछुए के सौ अंडों को तोड़ने के खातिर उसे अपने सात जन्मों के बाद इस जन्म में बिना किसी पाप के सौ बेटों को  खोना पड़ा। "

अल्बर्टो कहानी सुनकर कुछ समय के लिए चुप रहा। फिर उसने कहा:
 
"क्या यह विश्वसनीय है? सात जन्मों तक... ? "
 
 अल्बर्टो, मुझे कुछ भी नहीं पता। मुझे तो यह भी पता नहीं कि मौत के बाद जीवन है या नहीं, यह भी पता नहीं कि क्या पाप-पुण्य वास्तव में मनुष्यों का पीछा करते हैं या नहीं? मैं ऐसे जटिल योग-वियोग के बारे में नहीं जानती। मुझे नहीं मालूम कि किसी विश्व नियंता ने अपने आश्रितों के लिए ये नियम बनाए है या सब-कुछ बिना किसी कार्य-कारण के घटित होता है? लेकिन मुझे लगता है कि मनुष्य को बिना अपनी गलती के अनेक आकस्मिकताओं का सामना करना पड़ता है। "
 
अल्बर्टो ने सिर हिलाकर कहा: " सही है।"
 
"क्या सही है ?"
 
"ओह, कुछ भी नहीं, मैं इन अनसुलझे प्रश्नों के बारे में सोच रहा था।"
 
उससे परिचित होने के कुछ ही दिनों के भीतर  हर्षा को पता चला था कि अल्बर्टो का एक छद्म नाम है और उसने उस छद्म नाम से कुछ निबंध लिखे थे।वह विदेशी नाम नहीं था, वह नाम था  युधिष्ठिर।
 
अल्बर्टो ने कहा: "युधिष्ठिर ने कभी भी झूठ नहीं बोला,हाना, मैं भी कभी तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा।वे धर्म-पुत्र, धर्म-रक्षक थे; हालांकि मैं धर्म-पुत्र नहीं हूँ, मगर धर्म-रक्षक होने में कोई समस्या नहीं है। नहीं,नहीं,मैं कट्टरपंथी नहीं हूं।धर्म-रक्षक का गलत अर्थ मत लगाना। मैं सत्य-धर्म की बात करूंगा।"
 
हर्षा इस पागल युधिष्ठिर के मुंह की देखने लगी। क्या इस आदमी का कभी पूर्व जन्म भारत में हुआ था? अल्बर्टो ने उसे महाभारत के  अध्याय 'स्वर्गारोहण' की कुछ घटनाओं को याद करने के लिए कहा। "सभी स्वर्ग  पहुँचने से पहले एक के बाद एक गिर गए। मगर अकेले युधिष्ठिर अविचलित भाव से चल रहे थे। आखिर तक केवल एक कुत्ता उनके साथ था। युधिष्ठिर मायामुक्त थे। मोक्ष पाने व्यक्ति ही ऐसा हो सकता है। फिर वह अकेला यात्री थे। वह अपने आप के नहीं थे। सभी की उपस्थिति के बावजूद भी वह अकेले थे।यह एक अद्भुत उत्थान है। हिमालय केवल एक प्रतीक है। शिखर तक पहुंचने का मतलब है मोक्ष। मैं उस मुक्ति की तलाश में  हूं, हाना,मैं मुक्ति चाहता हूं। "
 
उसकी दिन-प्रतिदिन ये बातें सुनते-सुनते हर्षा उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी। महाभारत की कहानियां और उपाख्यान उसे कंठस्थ थीं। महाभारत का यह चरित्र प्राय इस महाकाव्य के दायरे में विचरण करता था
 
 पिछले तीन-चार महीनों से वे एक दूसरे से परिचित हुए थे। उनकी पहला परिचय नाटकीय तरीके से हुआ था।  पुरी की निवासी होने के कारण हर्षा ने अपने बचपन से कई विदेशियों को देखा था। इसलिए वह विदेशियों के नाम और पते से बहुत परिचित थी।अल्बर्टो की व्यक्तिगत तौर पर मिलने से पहले उसने उसे लेंस में देखा था।  पुरी के रथयात्रा पर अपना प्रोजेक्ट पेपर तैयार करने के लिए उसने कुछ तस्वीरें खींची थी। उस समय अल्बर्टो उसे अपने कैमरे के लेंस में दिखाई दिया था। उसने अनगिनत मनुष्यों की भीड़ के भगदड़ में से अल्बर्टो को बाहर लाकर खुले स्थान पर खड़ा किया था
 
"अरे, क्या तुम्हें अपने जीवन की परवाह नहीं है? तुम वहाँ क्या कर रहे थे ? भीड़ का इतना बड़ा समुद्र तुम्हारी तरफ आ रहा था, तुम्हें पता नहीं चला ? "
 
जैसेकि कोई ध्यान की अवस्था में से अपनी प्रकृत अवस्था में लौट आता है, वैसे ही वह चौंककर कहने लगा : "धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद आपको। मुझे खेद है कि मेरी वजह से तुम्हें कष्ट उठाना पड़ा। "
 
"ठीक,ठीक है, क्या तुमने भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर लिए?  तब तक वे एक सुरक्षित स्थान पर गए 
 
 थे।
 
"नहीं, मैंने उसे स्पष्ट रूप से दर्शन नहीं किए है,मगर मैं निश्चित रूप से दर्शन करना चाहता हूं।"
 
उस दिन बहुत मुश्किल से हर्षा ने बड़दांड के किनारे अपने सहेली के घर की छत पर जगह का इंतजाम किया था। 

अगर हर्षा नहीं होती तो पता नहीं कितने डालर खर्च करने पड जाते अल्बर्टो को, फिर उसे भगवान जगन्नाथ के 'दर्शन  हो पाते,इसमें संदेह थारथ खींचते-खींचते अंधेरा हो गया था।  तीर्थयात्रियों के समूह छत से नीचे उतर रहे थे। 
 
सरिता हर्षा के कान के पास अपना मुंह लाकर फुसफुसा, "यह गोरा कौन है? क्या दिल्ली से तुम्हारा परिचय हैं? "
 
"आह, तुम्हारा मतलब क्या है? इस आदमी को कुछ मिनट पहले तक जानती नहीं थी। जब मैं अपने प्रोजेक्ट पेपर की तैयारी के लिए कुछ तस्वीरें खींच रही थी, तो यह मूर्ख खचाखच भीड़  में चलते हुए रथों को देख रहा था।इतनी भीड़ में वह कुचल गया होता, अगर मैं उसे बाहर नहीं खींचती तो कल के समाचार पत्र में इसकी मृत्यु की खबर छपती सच कह रही हूँ, मैं सका नाम तक नहीं जानतीतुम्हारा घर छोड़ने के बाद हम अपने-अपने रास्ते चले जाएंगे। "
 
हर्षा ने उस दिन सरिता से कहा था कि हम अपने-अपने रास्ते चले जाएंगे, लेकिन क्या वह खुद अपने रास्ते जा पाई? उसके लिए अल्बर्टो की उपस्थिति अचानक और अप्रत्याशित थी जैसे कि किसी के जीवन में आकस्मिकताएँ और दुर्घटनाएं होती हैं
 
"क्या आप ब्रिटेन के वासिन्दा हैं?" सरिता के घर से बाहर निकलते समय हर्षा ने पूछा
 
"नहीं, नहीं," अल्बर्ट ने अपना सिर हिलाया। 
"तो क्या आप ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका से हैं?"
 
"मैं पुर्तगाल से हूं, मेरा नाम अल्बर्टो पासो है। कभी मेरे माता-पिता गोवा में रहते थे। लेकिन मैं लिस्बोआ के नजदीक एक छोटे से गांव कॉकसीस में रहता हूं। "
 
"यह लिस्बोआ कहां है?"
 
"लिस्बोआ, पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन ही है। क्या तुम पुरी की रहने वाली हो ? क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकता हूँ ?"
"हां, हम पुरी में रहते हैं और मेरा नाम हर्षा है।"
अल्बर्टो ने कहा, "बहुत अच्छा हुआ कि हमारी मुलाक़ात हो गई।"
 
"इसमें क्या अच्छा है?"
 
"मैं तुमसे पुरी और जगन्नाथ के बारे में बहुत कुछ जान सकता हूं। बेशक, मुझे पुरी के बारे में ईस्कॉन की पुस्तकों से कुछ जानकारी है। लेकिन तुमसे और ज्यादा जान सकूँगा। तुम्हें पता है, समुद्र तट पर एक फोटोग्राफर मेरे पीछे पड़ गया था? मुझे पता है कि मुझे इन  लोगों से सही जानकारी नहीं मिल सकती है।किसी तरह मैं उसके चंगुल से बचकर आया हूं।"
 
"सच में ?" हर्ष जोर से हँस पड़ी
 
"हर्स, क्या तुम मुझे बता सकती हों कि जगन्नाथ का कलेवर इतना अमूर्त क्यों है?"
 
 "ओह, आप गलत बोल रहे हैं, मेरा नाम हर्षा है, हर्स नहीं है।"
 
"मुझे बहुत खेद है कि मैं तुम्हारा नाम सही ढंग से नहीं कह पा रहा हूं। मगर मुझे तुम्हारे  नाम का अर्थ पता है। "
 
"क्या ?" हर्षा ने आश्चर्य से पूछा
 
तुम्हारे नाम का मतलब है आनंद, सुख,हैप्पीनेस,प्लीजिंग,ब्लिसफुल।क्या मैं ठीक कह रहा हूँ ?
 
उस दिन वह सचमुच चकित हों गई थी कि एक विदेशी आदमी उसके नाम का अर्थ कैसे बता सकता है। 
"वास्तव में, अल्बर्टो तुमने मुझे बहुत आश्चर्यचकित किया है।"
 
"मैं थोड़ा-थोड़ा संस्कृत जानता हूं।मुझे संस्कृत पसंद है।मैं देवनागरी स्क्रिप्ट पढ़ सकता हूं, मगर ज्यादा तेजी से नहीं। तुम्हारी भाषा संस्कृत से अलग है? मेरा मानना है कि तुम्हारी भाषा संस्कृत जैसी है। अन्यथा, तुम्हारा नाम हर्षा कैसे हो सकता है? "

"अरे, अल्बर्टो, आप जो चाहें कर सकते हैं, लेकिन मेरा नाम विकृत मत करो।"
अल्बर्टो हर्षा के असंतोष दुखी होने के बजाए हँस-हँसकर लोट-पोट हों गया। शायद इसी दौरान वह हर्षा के साथ थोड़ा सहज हो गया था।
" बचपन से ही भारत मेरी कमजोरी रहा है। भारत आने की बड़ी इच्छा थी। मुझे आशा थी कि निश्चित रूप से एक दिन वह इच्छा पूरी होगी । अब  मैं दिल्ली में एक अतिथि प्रोफेसर के रूप में आया हूं। "
"क्या तुम दिल्ली में रहते हों ? मैं भी दिल्ली में पढ़ रही हूं। मैं दक्षिण दिल्ली में रहती हूं, फिर तो वहाँ कभी हमारी मुलाक़ात हों सकती हैं। "
"मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझूँगा। क्योंकि तुमने मेरे प्राण बचाए हैं। "
"सब कालिया की इच्छा है, किसी का जीवन बचाने वाली मैं कौन हूँ? "
"यह 'कालिया कौन है?  'कालिया ' का मतलब क्या है?
"कालिया भगवान जगन्नाथ है। क्या तुमने देखा नहीं कि उसका चेहरा काला मुगुनी पत्थर की तरह है? "
" क्या ? मैंने ध्यान नहीं दिया। मगर तुमने यह नहीं बताया कि जगन्नाथ की अमूर्त कल्पना क्यों की गई है? "
“ क्या भगवान का कोई रूप या आकार है? क्योंकि हम मनुष्य हैं, इसलिए हमने उन्हें मानवीय आकार दिया हैं। यदि पौधे, मवेशियों या पक्षियों में से कोई भी प्राणी अधिक बुद्धिमान और विवेकशील होता, तो वे भगवान को अपना रूप देते, है ना?
 "हां, तुम सही कह रही हों" अल्बर्टो ने कहा," फिर भगवान का रूप क्या हो सकता है? "
उस दिन उसने राजा इंद्रद्युम्न और रानी गुंडीचा की कहानी सुनाई और साथ ही, जगन्नाथ के आधे गढ़ने की कहानी भी सुनाई।
हर्षा के घर के नजदीक आकर उसने कहा, “मैं जा रहा हूँ।”
"हम कल मिलेंगे?"
"मैं नहीं कह सकती।"

"फिर दिल्ली में?"
"कैसे कह सकती हूं, अल्बर्टो? यह दुनिया इतनी बड़ी है, हम कहीं-न-कहीं एक-दूसरे से मिल सकते हैं,मगर सवाल यह है कि हम उस समय एक दूसरे को पहचानने की स्थिति में होंगे या नहीं? "
अल्बर्टो का चेहरा एक पल के लिए उदास हो गया। अगले ही पल उसने मुस्कुराहते हुए कहा: " मुझे लगता है कि तुम बड़ी निराशावादी हों। क्या मेरा अनुमान सही है? लेकिन इतनी कम उम्र में जीवन के प्रति इतनी  उदासीन क्यों हो ? "
"हे, तुम बहुत गंभीर हो गए हो, अल्बर्टो! बचपन के दिनों से हम समुद्र तट और बड़दांड पर विदेशियों को देख रहे हैं। सभी एक जैसे दिखते हैं। हमें पता नहीं चलता है कि कौन पुरी में पहली बार आया या दूसरी बार ? फिर कौन इतनी दूर बारबार आएगा और क्यों ? मैंने तुम्हें उन विदेशियों में से एक समझकर यह बयान दिया है। मगर मुझे लग रहा है कि तुम दूसरों से अलग हों। "
एक-दूसरे से विदा लेते समय अल्बर्टो ने हर्षा के मोबाइल नंबर लेते हुए कहा: "युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलता है, तुम देखोगी, मैं तुम्हें एक दिन दिल्ली में खोज लूँगा।"
घर पहुंचने के बाद हर्षा ने अपनी मां को अल्बर्टो के बारे में बताया। मां अल्बर्टो का नाम 'युधिष्ठिर' सुनकर बहुत हंसी। बहुत दिनों के बाद हर्षा के होंठों पर मुस्कुराहट देखकर पिता को राहत मिली। पिताजी कहने लगे कि जब वह स्कूल में पढ़ रहे थे तो उन्होंने 'वा कुसुम संकासम' का जप करते हुए सूर्य भगवान को अर्ध्य देते हुए एक विदेशी को देखा था। लोग उसे 'गोरा पंडित' कहते थे। कुछ लोग उसे 'लंदन पंडा' कहते थे। उस दिन हर्षा पिताजी से लंदन पंडा की बात सुनकर खूब जोर से हंसी थी
 ओडिशा में रहने के बाद हर्षा दिल्ली लौट गई। वह ये सारी बातें भूल गई थी,पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण। अचानक एक दिन अल्बर्टो का फोन आया उसके पास।
 “ ह्रासा, मुझे पहचान रही हो? मैं अल्बर्टो, युधिष्ठिर। क्या तुम्हें याद है, हम पुरी में मिले थे? "
 "हां, अल्बर्टो, क्या तुम दिल्ली लौट आए हो? वापस कब आये ? यह वाकई बहुत बड़ी बात है कि तुमने मुझे याद रखा!”
“मैं कैसे भूल सकता हूँ ? तुम मेरी प्राण रक्षक हो"
"नहीं, मैं नहीं, भगवान ने तुम्हें बचा लिया।"
 "तुम्हारा भगवान में अगाध विश्वास है।"
"क्या तुम्हारा नहीं है ?"
"हां, मेरा विश्वास है, ह्रासा। मैं तुम्हें मिलना चाहता हूँ,बताओ,हम कहां मिल सकते हैं? "
"क्या कुछ काम है?"
"तुम्हें पूछने के लिए बहुत सारे सवाल हैं मेरे पास, फोन से पूछना संभव नहीं है,ह्रासा। मुझे बताओ, कौनसी जगह तुम्हारे लिए सुविधाजनक होगी। क्या मैं तुम्हारे घर  आ सकता हूं? "
"नहीं, घर पर संभव नहीं है। इस घर में हम तीन सहेलियाँ एक साथ रहती हैं। मेरी सहेलियों को अच्छा नहीं लगेगा। ठीक है, क्या तुम ग्रीन पार्क आ सकते हो? मैं गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी"
हर्षा ने कभी नहीं सोचा था कि अल्बर्टो दिल्ली लौटने के बाद उसकी खोज-खबर लेगाउसके मन में उत्सुकता पैदा हो गई कि अल्बर्टो का क्या काम हो सकता है? किस तरह के प्रश्न पूछना चाहता है वह ? इस बीच वह उसका चेहरा तक भूल गई है, क्या वह उसे पहचान पाएगी? भगवान ने उसे बचा लिया, वह एक यूरोपीयसे मिलने जा रही है,  भारतीय से नहीं।
 हर्षा विभाग से सीधे ग्रीन पार्क में गईवह आदमी क्या सवाल पूछेगा, इस  बारे में कोई संकेत भी नहीं दिया था, इसलिए एक भयानक चिंता उसके मन में हो रही  थी। ऐसे क्या सवाल है जिसके उत्तर केवल हर्षा ही दे सकती हैं? खैर छोड़, इस बारे में चिंता करने का कोई फायदा नहीं है,मिलने पर अपने आप पता चल जाएगा। हो सकता हैं, वह आदमी झूठे सवालों के बहाने मुझसे दोस्ती करना चाहता हो।
दिल्ली में उका कोई प्रेमी नहीं था। अंगुल से आए विष्णु महापात्र ने करीब आने के लिए बहुत रुचि दिखाई, तो वह सतर्क हो गई थी।इसी वजह से भैरवी और नवीना उस पर खूब हंसी थी।उन्होंने उसे छेड़ा भी, मगर वह यह कभी नहीं कह पाई कि उसे इस पुरुष- दुनिया से बहुत डर लगता है।वह विष्णु महापात्रा से डर गई थी, मगर कि वह अल्बर्टो के फोन पर कैसे बाहर आ गई? क्या भैरवी और नवीना कभी इस बात पर विश्वास कर पाएँगी? वे कहेंगी: "तुम्हारे जैसी रूढ़िवादी लड़की सीधे विदेशी दोस्त से मिलती है, बढ़िया! मान गए तुम्हें।विष्णु मूर्ख था,जो लाइन मार रहा था। "
क्या वह गलती कर रही थी?  पता नहीं क्यों,वह डरी हुई थी। वह रिक्शा बदलकर घर लौट जाना चाहती थी।दिल्ली पुरी शहर की तरह नहीं है, वह एक अजनबी को मिलने के लिए दिल्ली जैसी अनजान जगह में बाहर आ गईं? लेकिन वह रिक्शे से नीचे नहीं उतर पाई और आखिरकार रिक्शा-चालक ने उसे गेट पर छोड़ दिया।
बहुत दिनों के बाद वह अपने खोल से बाहर आकर मानो बदलती दुनिया देख रही हो; कांपते-कांपते उसने गेट के भीतर प्रवेश किया। उसने एक दो कदम बढ़ाए नहीं होंगे कि उसकी नजर अल्बर्टो पर पड़ी
"हाई, ह्रासा!" उसने हाथ हिलाकर उसे इशारा किया।
आदमी उसे देखते ही पहचान गया? हर्षा ने भी अपना हाथ लहराया। अल्बर्टो उसे देखकर बहुत खुश हुआ और कहा 'नमस्ते'
 हर्षा हंसने लगी।यह आदमी भारतीय तौर-तरीके अच्छी तरह से जानता है। दोनों  एक बेंच पर बैठ गए।
अल्बर्टो ने पूछा, " कैसी हो?"
"हां, मैं ठीक हूं। तुम कुछ पूछना चाहते थे? "
अल्बर्टो ने कहा, "हां, पहले आराम से बैठ तो जाओ।"
डर और चिंता की लकीरें उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी? क्या वह अल्बर्टो के पास सहज नहीं थी? उसे यहाँ कौन पहचानता है ? फिर इतना संकोच क्यों है ? दोनों चुपचाप बैठे रहे। शाम हो रही थी,कुछ बुजुर्ग लोग वहाँ से गुजर रहे थे। कुछ दूरी पर कुछ लोग अपने हाथ ऊपर उठाकर ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे। शायद वे आर्ट ऑफ लिविंग का अभ्यास कर रहे थे। अल्बर्टो ने पूछा, "वे लोग इतनी जोर से क्यों हंस रहे हैं,ह्रासा ?"
"वे इस तरह अपने दुख, अवसाद, थकान और निराशा को दूर कर रहे हैं।"
"इस मेकेनिकल हंसी से ?"
"जीवन धीरे-धीरे इतना मेकेनिकल होता जा रहा है कि हम हंसना भूल जा रहे  हैं।"
"क्या यह एक्सरसाइज़  है?" अल्बर्टो ने पूछा।
"नहीं, अल्बर्टो, नहीं ... वे जीवन जीने की कला सीख रहे हैं। ठीक है, मुझे बताओ, तुम क्या पूछना चाह रहे थे? "
"मैंने आज एक वेबसाइट में पढ़ा है कि गौतम बुद्ध ओडिशा में पैदा हुए थे, क्या यह सच है?"
"मुझे नहीं लगता कि यह सच है," हर्षा ने कहा। "हां, यहां कुछ बौद्ध विहार हैं, प्रसिद्ध कलिंग युद्ध यहां लड़ा गया था, जिसके बाद अशोक 'चंडाशोक' से 'धर्माशोक' में बदल गए थे। लेकिन बुद्ध का जन्म यहां हुआ था? हां, कुछ लोग मानते हैं कि  भगवान जगन्नाथ के 'नवकलेवर' के समय  बुद्ध का एक दांत 'नाभि-ब्रह्म' में रखा जाता है। मगर मैं बुद्ध की जन्म-स्थली ओडिशा को मानने के लिए तैयार नहीं हूं।"
उस दिन उसने भगवान जगन्नाथ के 'नव-कलेवर' की कहानी अल्बर्टो को विस्तार से सुनाई थी। उसके बाद उसने कहा,"ह्रासा, यू आर वंडरफूल।"
"तुम मेरा नाम सही ढंग से उच्चारण करना कब सीखोगे ? हर्षा ने  मुस्कराते हुए पूछा।

"हे! मैं बहुत शर्मिंदा हूं!पता नहीं क्यों, मैं तुम्हारा नाम का ठीक ढंग से उच्चारण नहीं कह पा रहा हूं।"
"ठीक है, ठीक है। नाम केवल नाम है, इसमें क्या रखा है? तुम्हें जो पसंद है,उस नाम से  मुझे बुलाओ। "
"सही है। मगर मैं दोषी महसूस करता हूं क्योंकि  जब मैं तुम्हारा नाम सही ढंग से बोलने  में असमर्थ हूं, तो मैं तुम्हारी संस्कृति कैसे जान सकता हूं? "
"अल्बर्टो नाम के संबंध में एक अच्छी कहानी है! सुनना चाहेंगे? "
"हां, निश्चित रूप से," छोटे बच्चे की तरह उसकी दिलचस्पी बढ़ गई।
"मदालसा नामक एक महान महिला थी। बचपन से ही शास्त्रों का गहन अध्ययन कर उसने  पांडित्य हासिल कर लिया थाउसका राजा शत्रुजीत के बेटे ऋतुध्वज से शादी हो गई। समय पर उसका एक बेटा हुआ।राजा अपने भावी वंशधर को देखकर बहुत खुश था।वीरता क्षत्रियों का  सबसे बड़ी गुण होता है, इसलिए उसने अपने बेटे का नाम रखा विक्रांत।बेटा जब बड़ा हुआ, तो एक दिन मदालसा ने उसे कहा, ' तुम्हारा नाम विक्रांत रखा गया है, इसलिए किसी और दिए गए नाम से तुम्हारा कोई संबंध नहीं है। आत्मा ही एकमात्र सच्चाई है, शरीर और नाम चाप अस्थायी और मिथ्या हैंइसलिए सांसरिक सुख-दुख में अपना समय बर्बाद किए बिना अनासक्त भाव से सच्चाई की तलाश करो' अपनी मां के उपदेश से विक्रांत ने संन्यास ग्रहण कर लिया, अपने आपको राजसिंहासन से दूर रखते हुए। धीरे-धीरे समय बीतता गया, उनके दूसरे बेटा पैदा हुआ। इस बार राजा ने उसका नाम सुबाहू रखा। फिर एक और बेटा हुआ, जिसका नाम शत्रुमर्दन रखा गया। उन नामों का मदलासा उपहास करने लगी। मां के संस्पर्श से  इन दोनों पुत्रों ने 'आत्म-ज्ञान' प्राप्त किया और इस दुनिया को मिथ्या माना। राजा हमेशा अवसाद में रहने लगा, यदि सारे पुत्र संन्यासी बने गए तो राजा कौन बनेगा ?  कौन शासन की बागडोर कौन संभालेगा? जब चौथा बेटा पैदा हुआ था, तो राजा ने उसे नाम नहीं दिया और उसे एक उपयुक्त नाम देने के लिए मदलासा से अनुरोध किया। मदलासा ने उसका नाम रखा 'अलर्क', जिसका अर्थ है पागल कुत्ता। राजा यह नाम सुनकर दुखी हुआ। विक्रांत, सुबाहू या शत्रुमर्दन जैसे नाम दिए बिना रानी ने उसका नाम रखा अलर्क रानी ने  कहा कि दुनिया में अधिकांश लोग नाम और उपाधि पाने के लिए लगभग पागल कुत्ते बन गए हैं, जबकि ये नाम या उपाधि व्यक्ति की वास्तविक सच्चाई को छिपाती है। इसलिए यदि आप खराब नाम रखते हैं, तो बेटे का नाम के प्रति ज्यादा लगाव नहीं होगा। अंत में अलर्क ने ही सिंहासन की जिम्मेदारी उठाई और अपना शेष जीवन 'वानप्रस्थ' में बिताया।
अल्बर्टो यह कहानी सुनकर बहुत खुश हुआ था, "वास्तव में बहुत अच्छी कहानी है।क्या मैं तुम्हें मदालसा कह सकता हूँ? "
"नहीं, तुम इस नाम का भी सही ढंग से उच्चारण नहीं कर सकते हो।तुम मुझे उस नाम से पुकार सकते हो,जिसका तुम आसानी से उच्चारण कर सकते हो। "
"क्या मैं तुम्हें हाना कह सकता हूँ? यह पुर्तगाली नाम नहीं है, बल्कि एक जर्मन नाम है। तुम जानती हो, मेरी पत्नी क्रिस्टीना जर्मनी में पैदा हुई। "
"वास्तव में ?"
"वह बहुत दिनों से पुर्तगाल की निवासी बन गई हैं।"
"ठीक है। क्या तुम्हारे नामों का हमारे नामों की तरह अर्थ होता हैं, अल्बर्टों ? "
"निश्चित रूप से, उदाहरण के लिए, मेरा नाम अल्बर्टों को इंग्लैंड या जर्मनी में 'अल्बर्ट' कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'एक स्वच्छ उदार मन।'
"और हाना का अर्थ क्या है?"
" लड़की, हम एक छोटी लड़की को ऐना या हाना कहते हैं।"
उस दिन से अल्बर्टो उसे हाना नाम से बुलाने लगा। मगर हर्षा अल्बर्टो को युधिष्ठिर के नाम से नहीं बुलाती थी, क्योंकि वह नाम उसकी त्वचा के रंग से मेल नहीं खा रहा था। "
"ठीक है, तुम्हारे पास पूछने के लिए बहुत सारे सवाल थे?"
"हाँ थे तो;  मैं सोच रहा हूँ कि मैं उन्हें कल पूछूंगा। "
"फिर कल?"
"क्या कोई दिक्कत है, हाना?" अल्बर्टो  बेंच से उठा। फुसफुसाते हुए कहने लगा, "मुझे पता नहीं  चला, तुम्हारे साथ समय कितना जल्दी बीत गया। अगर हमारी कल मुलाक़ात होती  हैं तो मुझे बहुत खुशी होगी। "
"देखते हैं।" कहकर हर्षा उठ गई

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