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10.
तुम कहां हो, अल्बर्टों? तुम मेरी पहुंच से बाहर क्यों हो ? देखो, तुम्हारी हाना किस तरह छिन्न-भिन्न असहाय होकर पड़ी हुई है। देखो, किस तरह दुर्भाग्य उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है। तुम मेरे इस दुर्दिनों में कहाँ गायब हो गए? क्या तुम अचानक मेरा देश छोड़कर चले गए? देश
छोड़ने से पहले कम
से कम मुझे कहकर
तो जाते ?
हर्षा को रात में बहुत समय तक नींद नहीं आई। क्या अल्बर्टों को उस आदमी के आने के बारे में पता चल गया है? क्या उसकी घर में अनुपस्थिति के समय अल्बर्टों ने इस आदमी के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली थी? या क्या वह अभी भी नाराज है ?
निवृत्ति
और प्रवृति के बीच लटक रहे विदेशी बौद्ध ने पश्चाताप की आग में जलकर क्या उसने खुद को हर्षा से दूर तो नहीं कर दिया ? नहीं,नहीं ... यह नहीं हो सकता। कम से कम वह
खुद को चोर की तरह छुपा तो नहीं सकता। उस पर हर्षा का क्या अधिकार है, जिससे उसे अपने को छुपाना पड़े ? वह
बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि वह एक गंभीर पढ़ाकू आदमी है। उसे भारत में आए हुए अभी तक एक वर्ष भी पूरा नहीं हो पाया था। मगर उसने पूर्व और पश्चिम के दर्शनशास्त्रों के
तुलनात्मक अध्ययन पर पहले से ही एक पुस्तक तैयार कर ली थी। हर्षा ने देखा कि वह हमेशा
शुरु-शुरू में
शिक्षार्थी की तरह ध्यान
लगाकर प्रत्येक शब्द को सुनता था। हर्षा द्वारा सुनाई गई कहानियों की सच्चाई को संदर्भ पुस्तकों में परखता था। अगर कुछ समझ में नहीं आता तो वह अगले दिन आकर पूछ लेता था। कभी-कभी उन दोनों के बीच तर्क-वितर्क भी होता था। इसलिए वह बिना किसी कारण के इस तरह छुप कर नहीं रह सकता।
वह आदमी फिर से कहीं बीमार तो नहीं हो गया या किसी अस्पताल या नर्सिंग होम में भर्ती तो नहीं हो गया? वह डायरिया से पीड़ित तो नहीं है,जैसे कि पिछली बार हुआ था।
हर्षा को नींद नहीं आ रही थी। थोड़ी देर पहले ही भैरवी और नवीना लाइट बंद कर सोने चली गई थी। वे अपना प्रोजेक्ट पेपर तैयार करने में लगी हुई
थीं। उन्होंने उसे खाने के समय भी नहीं बुलाया था , हालांकि वह बिस्तर पर करवट बदलकर सो रही थी।क्या वे उसके बारे में बहुत कुछ बोल रही होगी ?, उस
आदमी और अल्बर्टो को
लेकर उनकी चर्चा बहुत ही रोचक बनी होगी ?उसके प्रति गंदी-गंदी टिप्पणी कर रही होगी? उसे खाने पर उन्होंने
क्यों
नहीं बुलाया ?
उस आदमी ने अचानक आकर जैसे तूफान की तरह सब-कुछ तबाह कर दिया। उसकी इच्छा हो रही थी कि वह कहीं भाग जाए। लेकिन उसे लग रहा था कि वह जहां भी जाएगी, वह आदमी उसका पीछा करेगा।अल्बर्टो ऐसे खराब समय
में उसकी सहायता करने के लिए वहां नहीं था।कौन जानता
है कि कल सुबह वह आदमी यहाँ आकर झमेला न कर दे? हो सकता है, वह उसे टाटा जबरन खींच कर ले जाए ? किसको पता,कल क्या होगा ? ऐसा भी हो सकता है कि हर्षा चलती ट्रेन से बाहर कूद जाए।कौन जानता है,क्या होगा ?
हर्षा ने अपने पूरे शरीर पर दांतों की दो पंक्तियों के काटने के निशान देखें। वह भैरवी और नवीना से कल दिन के उजाले में उन्हें कैसे छिपाकर रखेगी ? वह क्या जवाब देगी, उनकी मजाकिया टिप्पणियों का ? क्या उस आदमी का नशा उतर गया होगा ? क्या
वह उसे खोज रहा होगा ? हर्षा को पास में न देखकर क्या वह चिंतित हो उठेगा ? नहीं, चिंतित कभी नहीं, लेकिन वह क्रोध से पागल तो नहीं हो जाएगा ?
नहीं, उसका नशा उतरा नहीं होगा, अन्यथा अभी तक उसने फोन पर उसे धमकी दे दी होती: "तुम बहुत स्मार्ट हो गई हो? बिना कुछ पूछेअकेली चली आई ? तुम्हारा
सतीत्व नष्ट हो
जाता, मेरे साथ रात गुजारने से?” नहीं, तो वह आदमी यहां पहुंचकर सब-कुछ उगल देगा?उसके अतीत जीवन, उसके पति को छोड़कर आने की कहानी। क्या उसे भैरवी और नवीना के सामने और छोटा होना पड़ेगा? उन्हें कल रात की यंत्रणा कैसे समझ में आएगी ? वह उसके विरोधाभासी अनुभवों को कैसे समझ पाएगी ? कभी-कभी इस शरीर पर कविता की सुंदर पंक्तियाँ लिखी जा सकती है, तो कभी-कभी इस शरीर पर तेज चाकू से रेखाएँ खींची जाती है।
हर्षा चुपचाप उठकर बाथरूम में चली गई। अल्बर्टो से संपर्क करने की आशा के साथ
आधी रात को मोबाइल ऑन कर दिया।उधर फोन में रिंग बजने लगी। “मोबाइल
उठाओ, अल्बर्टो। मेरे दुर्दिन में चुप मत रहो। हम दोनों ने एक नया जीवन गढ़ा है ।अगर हम एक-दूसरे से नहीं मिलेहोते तो हम स्वर्गिक सुख से वंचित हो जाते। पांच साल की उम्र में पैदा हुए उस दर्दनाक अनुभूति से तुम्हारा सारा जीवन उबर नहीं पाता, अगर तुम इस सुख से वंचित हो जाते तो, शायद तुम पलायनवादी होते और
औरतों को निवृति मार्ग की कहानी सुनाते । तुम्हारा यह जीवन व्यर्थ चला जाता। अल्बर्टों, मैंने तुम्हारे अधरों पर मुस्कुराहट लाई । तुम्हारी वह मधुर मुस्कान मैं कभी नहीं भूल सकती। तुमने मुझे पत्थर से इंसान बनाया है। देख, कल रात किस तरह मेरे शरीर की हरी पत्तियों, फूलों और फलों का सुंदर उद्यान पूरी तरह
से नष्ट हो गया।अल्बर्टो,फोन
उठाओ, क्या तुम इतनी गहरी नींद में हो?”
वह
सो नहीं सकी ; रात भर दर्द होता रहा। दरवाजे की ओट से भोर का प्रकाश दिखाई देने लगा था।धीरे से दरवाजा खोलकर वह बालकनी में खड़ी हो गई। आसमान अभी तक गोबर पुते हुए आँगन की तरह दिख रहा था।
सुबह-सुबह घूमने वाले कुछ लोग दिखाई दे रहे थे। फिर वाहनों ने सड़कों पर चलना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे
आसमान साफ हो रहा
था। दिन के उजाले से वह और डरने लगी थी। यदि वह आदमी सुबह-सुबह यहाँ पहुंच गया, तो वह कहाँ जाएगी, कहाँ छुपेगी ?
हर्षा बाहों और गर्दन पर बने निशान बहुत ही अश्लील
लग रहे थे। उसे रोने का मन हो रहा था। वह अपने कमरे में लौट आई और अलमारी से लंबी पोशाक बाहर निकाली। कड़ाके की सर्दी की सुबह में भी वह बाथरूम में चली गई,नहाने के लिए। भैरवी नल से पानी गिरने की आवाज़सुनकर जाग गई। खाट के नीचे से तानपुरा बाहर निकाल कर वह रियाज़ करने बैठ गई। नवीना के खांसने और चिड्चिड़ाने की आवाज सुनाई दे रही थी। नींद में व्याघात होने से वह शायद नाराज़ हो गई थी।दिल्ली में दुर्गा पूजा के बाद थोड़ी-थोड़ी ठंड पड़ने लगती है। इसलिए सुबह उठना कष्टप्रद होता है। नवीना के झुंझलाहट की परवाह किए बगैर भैरवी तानपुरा पर स्वर निकालने शुरू किए। इधर साबुन
और तेल लगाकर हर्षा दाग मिटाने की कोशिश कर रही थी। नहीं, ये दाग नहीं मिटेंगे । हर्षा ने शरीर पोंछते हुए लंबे बाजू वाली पोशाक पहन ली।
हर्षा देवताओं के सामने धूप-अगरबत्ती जलाकर सभी के लिए चाय तैयार करने लगी। आँखें मलते हुए नवीना ने पूछा, “ सुबह-सुबह जीजू के पास जा रही हो? तुम रात को वहां रुक जाती।"
"नहीं, मैं सुबह जल्दी उठ गई, इसलिए नहाने चली गई।"
हर्षा
ने अपने गीले बाल पोंछे। तानपुरा को एक तरफ रखकर भैरवी चाय का कप उठाकर बिस्तर पर बैठ गई:"आज जीजू को यहां लेकर आना," उसने कहा।
"नहीं, यह संभव नहीं है। वह कह रहे थे आज वापस जाने के लिए। इसके अलावा, मुझे अपना प्रोजेक्ट पूरा करना है। शायद पूरा दिन लग जाए। "
"तुमने तो अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया नहीं ? वह तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता है। बेचारे को क्या पता, तुम
किसी और की संपत्ति हो।”
“हे भगवान! घूम-फिरकर बात वहीं आ जाती है?” हर्षा ने कहा: "आज मैं कुछ नहीं
खाऊंगी, मैं तुम्हारे लिए खाना बना देती हूँ।"
"नहीं, तुम जाओ,इसके बारे में चिंता मत करो, हम देखेंगे।"
उस समय आठ बजने जा रहे थे, हर्षा को आशंका थी कि वह आदमी किसी भी वक्त वहाँ पहुंच सकता है। उससे पहले उसे घर छोड़ना पड़ेगा। लेकिन सुबह-सुबह वह कहाँ जाएगी ? उसने पहले से कुछ भी योजना तैयार नहीं की थी। उसे बचने के लिए एक
अज्ञात जगह की जरूरत थी। वह वृंदावन मौसा के घर जाने के बारे में सोच रही थी। वह आदमी उस जगह को कभी खोज नहीं पाएगा। अगर अल्बर्टो होता तो कितना अच्छा होता! वह उसके साथ कुछ दिनों के लिए दिल्ली से बाहर चली जाती। मगर अल्बर्टो इतना नाराज है ? तीन-तीन
एसएमएस का जवाब तक नहीं दिया, उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। मिलने पर उससे पूछेगी
हर्षा:" तुम
युधिष्ठिर हो? क्या युधिष्ठिर को कभी इतना गुस्सा आता है? इसके अलावा, तुम्हारे वायदे का क्या हुआ ? छोटी-सी
बात पर अपना वायदा तोड़कर तुम चुपचाप बैठे हो? मैं बहुत बुरे समय से गुजर रही हूं। दुर्दिन में काम आने वाला ही सच्चा दोस्त है। तुम्हारा पसंदीदा खेल गोल्फ
है और मेरे शरीर पर देख ये सब गोल्फ के हरे भरे मैदान? इतना जल्दी खत्म हो गया तुम्हारा गोल्फ
का आकर्षण?”
हर्षा
ने पर्स में पैसे रखे, कैमरा
रखा और कहा,
“मैं जा रही हूँ।”
भैरवी
को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा," सुबह इतनी जल्दी?"
"मुझे
जाना होगा।" कहकर हर्षा बाहर निकल गई। गली के मोड से वह ऑटो रिक्शा में अल्बर्टो के घर की तरफ गई। उसका घर ज्यादा दूर
नहीं था। अल्बर्टो के घर पर ताला लगा हुआ था। कहाँ अन्तर्धान हो गया वह ? क्या किसी जरूरी काम से अपने देश चला
गया ? हर्षा को उसका अंतिम एसएमएस याद
आया:"मैं इंतजार नहीं कर सकता, मुझे आज तुम्हारी ज़रूरत है। मैं
तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं।"
वह
क्यों इंतज़ार कर रहा था? क्या
वह कुछ कहना चाहता था? कहना
होता तो परसो जब हर्षा ने फोन किया था, वह उसे निश्चित रूप से बता सकता था ? नहीं, वह जानबूझकर चुप है। नहीं तो वह चाहे
कभी भी हो,
बता सकता था ? अल्बर्टो के पड़ोसी नाइजीरियन स्कॉलर को क्या
उसके बारे में कुछ जानकारी होगी ? हर्षा
को उससे अल्बर्टो के बारे में पूछने के लिए थोड़ा संकोच हो रहा था।उसने संक्षिप्त
पत्र लिखकर अल्बर्टो के लेटर-बॉक्स में डालकर चली गई।
अब
वह कहाँ जाएगी ? पूरे
दिन कहाँ घूमेगी ? उसने
वृंदावन मौसा के घर की तरफ रिक्शा मोड़ा। वे नार्थ में रहते थे। वह जगह बहुत दूर
थी। ऑटो रिक्शा निश्चित तौर पर अधिक किराया लेगा, मगर उसे जाना पड़ेगा। उसके पास और कोई रास्ता नहीं था। उसके ठाट-बाट देखकर भैरवी और नवीना कहेगी "तुम्हारे
पास क्या कमी है,
तुम्हें तो डॉलर मिलते हैं।अगर हमें मिलते तो हम स्टार होटल में खाना खाते;नहीं तो आधा पैसा जाता डिस्कोथेक्स में और आधा
बुटीक में। "
हर्षा
ने अपना मोबाइल बंद कर दिया,
उस आदमी के खातिर। वह जानती थी कि अल्बर्टो भी उसे खोज सकता है, लेकिन उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं
था। वह जानती थी कि वह जो भी कर रही है,ठीक नहीं है। उस आदमी से कितने दिन
छिपती फिरेगी ? अगर
वह एक दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक इधर-उधर भटकती रहेगी तो क्या वह दया करके उसे
मुक्त कर देगा ? दूसरी
तरफ, क्या वह ज्यादा क्रोधित तो नहीं हो
जाएगा?
वह
आदमी उसे छोड़ क्यों नहीं रहा है? क्या
उसके लिए लड़कियों की कमी है? उसके
छूते ही रोगी ठीक हो जाते है। यदि वह चाहेगा तो कल ही उसे बहुत सारी लड़कियां मिल
जाएगी। एक बार केवल वह कह देता:"हर्षा, जाओ,तुम्हें मैं मुक्त करता हूं।"
हर्षा
बहुत अच्छी तरह जानती थी कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। उस आदमी ने अपनी मर्दानगी का प्रचंड आघात किया, उसे अपने जीवन से भगाने के लिए। मगर वह
अभी भी उसका कारण समझ नहीं पाई। कभी-कभी हर्षा को लगता है : जो कोई भी सुनेगा,वह कहेगा कि पति ऐसे ही होते हैं। दे आर
मास्टर,दे फील लाइक सो। उनमें अधिकार भाव होना
एकदम स्वाभाविक है। इसके बिना क्या पति, पति जैसा लगेगा ? आजकल कौन नहीं पीता है? कलाकार तक ? किसी को छोड़ने का यह कोई कारण है? क्या इस कारण से कोई लड़की अपने पति के
साथ नहीं रहेगी ? सिर्फ
इसलिए कि वह पीते हैं? हर्षा
कभी भी किसी को मुख्य कारण नहीं समझा पाएगी।
दुनिया
में बहुत सारी खूबसूरत चीजें हैं,
जिसका किसी को उपहार दिया जा सकता है।दे सकते है नरम हाथों का स्पर्श, एक मुट्ठी भर चांदनी रात। सुना सकते है
झरने के कल-कल नाद की तरह प्रेम कविता। दे सकते है आकाश जैसा आश्रय,बाहों का सुरक्षा कवच,लिख सकते है बांवरे कवि की तरह अधरों पर कविता।
तुम
उस आदमी को तलाक क्यों नहीं दे देती? अल्बर्टो ने कई बार पूछा था "मैं
समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम क्यों इस बात के लिए मानसिक पीड़ा भोग रही हो। जब
रिश्ता मर गया है, तो
तुम इसे क्यों खींच रही हो? तुम
न्याय के लिए अदालत में क्यों नहीं जाती
हो, तुम अपनी जिंदगी क्यों खराब कर रही हो ? "
"यदि
यह संभव हो गया होता, तो
क्या मैं सारा जीवन 'सिसफस' पत्थर ढोती रहती ? हमारी भारतीय जीवन-शैली तुम्हारे देश की
तरह नहीं है, अल्बर्टों। जब मेरी शादी दादाजी की इच्छा से हुई, उस समय मेरी उम्र बीस साल भी नहीं
हुई थी। क्योंकि वह अपनी मृत्यु से पहले अपनी
नातिन की शादी देखना चाहते थे। अब मेरे पिताजी चाहते है कि मैं उस आदमी से अलग न
होऊँ। क्योंकि वे बूढ़े हो गए है। उन्हें उम्मीद है कि एक-न-एक दिन मैं मैच्योर हो
जाऊंगी।जीवन जीने के गणितीय सूत्र समझ पाऊँगी और फिर उस दिन निश्चित रूप से उस
आदमी के पास लौट जाऊँगी।मेरे कारण उन्हें और अपमान सहना नहीं पड़ेगा।"
आश्चर्य
चकित होकर अल्बर्टो उसकी तरफ देखता रहा और कहने लगा,
"
भारतीय लोग बहुत भावुक होते हैं?
"
"और
क्या पुर्तगाली लोग भावुक नहीं होते हैं?"
"नहीं, ऐसा नहीं है, हम कभी भी अपनी इच्छा-अनिच्छा दूसरों पर
नहीं थोपते है। मेरा देश पूरे पश्चिमी यूरोप का सबसे रूढ़िवादी देश है, लेकिन किसी भी व्यक्ति की पसंद-नापसंद,गोपनीयता रक्षा में सभी को पर्याप्त
स्वतंत्रता प्राप्त है। "
विभिन्न
मुद्दों पर दोनों के बीच में भारी बहस होती थी और फिर वे एक-दूसरे से विदा लेते
थे। ऑटो वाले की आवाज से हर्षा यादों की दुनिया से लौट आई। अपार्टमेंट गेट के पास
वह उतर गई। अगर वृंदावन मौसा ने पूछ लिया “
इतनी सुबह-सुबह?”
तो वह क्या जवाब देगी? रविवार होता तो वह बहाना भी बना सकती थी।
सीढ़ियों पर चढ़ते समय उसने सोच लिया था, जो होगा सो देखा जाएगा। इतनी दूर आई है
तो और नहीं लौटेगी। यदि मौसी उसे मिलेगी तो
वह अपनी डायरी
से अपनी कविताएं सुनाएगी। कविताएं पुरानी है और किसी भी संदर्भहीन भी, लेकिन कम से कम कुछ समय तो कट जाएगा।
कॉलिंग
बेल की आवाज सुनकर मौसा ने दरवाजा खोला। वह उसे देखकर आश्चर्यचकित होकर पूछने लगे, “तुम यहाँ ? डॉक्टर बाबू चले गए ?”
"तुम्हारे पिताजी ने कल मुझे फोन किया कि
डॉक्टर बाबू यहाँ आए हुए है।"
मौसा
की बात सुनकर हर्षा का चेहरा अचानक काला पड़ गया। वह
स्तंभित रह गई। उसे लगा कि पूरी दिल्ली पर एक बड़ा जाल फैला दिया गया है। वह जिस
दिशा में भी दौड़ेगी,
उस जाल के भीतर फँसेगी ही फँसेगी।
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