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1.
वे लोग तीन महीनों से विधिवत इस खेल में लगे हुए थे। एक अद्भुत
खेल, परत-दर-परत खोलते हुए मानो वे एक गहनतम प्रदेश के प्रवेश द्वार तक पहुंच गए थे।
अवश्य हर्षा को यह खेल खेलना
नहीं आता था।अल्बर्टो की सबसे पहले इच्छा हुई यह खेल खेलने की।
जब अल्बर्टो ने यह खेल खेलने का प्रस्ताव रखा तो
हर्षा को उसका
बचपना-सा
लग रहा था। अल्बर्टो ने कहा था कि पुर्तगाल में यह खेल एक दूसरे को जानने तथा
परस्पर एक दूसरे के नजदीक आने के लिए खेला जाता है।
हर्षा
ने सोचा था, उसे अपने जीवन में अनेक लोगों के साक्षात्कार लेने
पड़ेंगे, भविष्य
में जोड़-तोड़ कर प्रश्न पूछने पड़ेंगे। आज से यदि किसी के प्रश्न का उत्तर
देना पड़ेगा तो उसमें चिंता किस बात की? यद्यपि
हर्षा जानती थी
ये प्रश्नोत्तरी खेल कितना बचकाना और अप्रासंगिक हैं! क्या कोई प्रश्न
पूछ कर किसी के हृदय तक पहुंच सकता है?
जैसे अल्बर्टो ने पूछा, तुम्हें अंधेरे से डर लगता है? हर्षा ने उत्तर दिया, मैं जब घर में अकेली होती हूं तो मुझे डर नहीं लगता, मगर अनजान जगह पर मुझे डर लगने लगता है।
अल्बर्टो इस प्रश्न
का दूसरे ढंग से उत्तर देता था। मुझे सूरज की चमकती किरणें बहुत
अच्छी लगती है, इसलिए तेज धूप मुझे बहुत अच्छी
लगती है। मगर जब मैं बिस्तर पर सोने जाता हूं तो मुझे गहन अंधेरा अच्छा लगने लगता
है। मगर मेरा दार्शनिक मत क्या है,जानती हो? ‘हमेशा अंधेरे से
उजाले की ओर आगे बढ़ना’।
हर्षा जानती थी, अल्बर्टो बौद्ध धर्म का अनुयायी है। बौद्ध धर्म के अनुयायी
जैसे
दिखाई देते हैं, वह वैसा नहीं दिखाई देता है।उसने
बौद्ध धर्म दीक्षा नहीं ली है,मगर बौद्ध धर्म में वह अटूट विश्वास रखता है।अपने आप को बौद्ध
कहलवाने
में गर्व अनुभव करता है। वह बौद्ध धर्म से इतना ज्यादा
प्रभावित है कि सारा जीवन बौद्ध धर्म द्वारा निर्देशित मार्गों पर चलना चाहता है। यद्यपि
वह
यूरोपियन ईसाई परिवार का एक सदस्य है, छोटे देश पुर्तगाल का एक
निवासी है।फिर भी भारत के प्रति इतनी गहरी आसक्ति है कि वह उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह
सकता। कभी उसके पिताजी पुर्तगाली सेना में काम करते थे। उस समय
उनकी पोस्टिंग गोवा में थी। गोवा
में उसकी बड़ी बहन का जन्म हुआ था। उसके जन्म के समय उसके पिताजी अंगारा
में थे।
पिताजी की 50 साल की उम्र में अल्बर्टो का
जन्म हुआ था। इसलिए वह अपने माता-पिता की
आंखों का तारा था। मां उसे भारत के बारे में अनेक कहानियां सुनाया करती थी। परियों की कहानियों की तरह बचपन
में वह अनजान देश की कहानियां सुना करता था। गोवा के उमस भरे वातावरण से लेकर अनेक हिंदू देवी-देवताओं
के बारे में विभिन्न कथा-किवदंतियां वह अपनी मां से सुना करता था।अल्बर्टो कहा
करता था कि उसकी मां को भारत से प्यार नहीं था,मगर वह भारत से प्यार करता है।
अल्बर्टो ने फिर से
पूछा, “तुम्हारा प्रिय
रंग कौनसा है?”
“मेरा ऐसा कोई रंग प्रिय नहीं है। मुझे कभी पीला तो कभी हरा रंग अच्छा
लगने लगता है। एक साल पहले जो रंग अच्छा लगता था, एक साल बाद उस रंग के बदले दूसरा रंग अच्छा
लगने लगता है।अभी मुझे बैंगनी रंग अच्छा लगता है।”यह
कहकर हर्षा अन्यमनस्क
हो गई।
“हाना, तुम्हें
ऐसा उदास रंग क्यों पसंद है?जीवन के प्रति ऐसे
विषाद भाव रखना
उचित नहीं है।तुम्हें मेरा प्रिय रंग पता है? नीला रंग, मुझे समुद्र की नीली जलराशि बहुत अच्छी लगती है।”
“वास्कोडिगामा?” कहते हुए हर्षा मुस्कुराई।
“क्या कहा?”, अल्बर्टो ने पूछा, “तुमने मुझे वास्कोडिगामा कहा है ना? क्या तुम सोच रही हो मैंने कुछ भी नहीं सुना? हां, हम पुर्तगालियों को समुद्र
बहुत अच्छा लगता है।तुम जानती हो, हाना, गर्मियों के मौसम में हम लेस्बो में नहीं रहते है।लेस्बो
का मतलब
लिस्बन। लिस्बन पूरा खाली हो जाता है। लोग छुट्टी बिताने के लिए समुद्र के किनारे
इकट्ठे होते हैं।सभी बालू-शैय्या पर मछली की तरह नंगे सो जाते
हैं। सूर्य किरणों को सोखने में अद्भुत आनंद मिलता है। इसलिए मुझे बसंत ऋतु
और
समुद्र तट बहुत पसंद है।
हर्षा को इतने दिनों में पता चल गया
था कि अल्बर्टो समुद्र से बहुत प्यार करता है।उसने पहले भी बोटिंग करते हुए अपनी
अनेक
फोटो हर्षा को दिखाई थी। एक बार उसने कहा था, मेरे पास कोई बोट नहीं है,हाना। काश! मेरे पास भी कोई बोट होती तो मैं पुर्तगाल से सीधे तुम्हारे
पास पुरी पहुंच
जाता। समुद्र से अगाध प्रेम होने के बाद भी मेरे पास कोई बोट
नहीं है।
हर्षा ने हंसते हुए कहा, “तुम प्रोफेसर हो या कोई धीवर?”
“मैं जानता हूं कि मैं प्रोफेसर हूं, फिर भी समुद्र की पुकार सुनकर चुप रहना
मेरे लिए
संभव नहीं है।”
समुद्र से प्यार करने वाले इस इंसान ने मुझसे पूछा, “हर्षा, तुम्हें बारिश में भीगना अच्छा लगता है?”
“ हमेशा नहीं। मानसून की पहली बारिश मुझे बहुत अच्छी लगती है। सूखी
धरती पर
पहली बारिश की बड़ी-बड़ी बूंदें गिरने से जो सोंधी गंध पैदा होती है, वह गीली मिट्टी की खुशबू मुझे बहुत आकर्षित करती है। मैं अपनी उम्र भूल जाती हूं, एक बच्चे की तरह नाचते हुए बारिश का आनंद लेती हूं। लेकिन लगातार चार महीनों
तक बारिश होना मेरे लिए बहुत दुखद है। सावन के महीने में तेज बारिश के समय माँ
हमें स्कूल
नहीं भेजती है,उस दिन वह घर में खिचड़ी बनाती
है,पकौड़े तलती है।हम अपनी स्कूल की
किताबों के पत्ते फाड़कर कागज की नाव बनाकर पानी में तैराने लगते
हैं।
“ओह! वंडरफुल। इसका मतलब तुम्हें भी बोट
पसंद है, हाना?”
“धत्, केवट कहीं का!”
“ तुम अपनी भाषा में कहोगी तो मुझे कैसे पता चलेगा?” अल्बर्टो ने अपना दुख प्रकट किया।
“मैंने तुम्हें केवट कहा।केवट का मतलब होता है बोटमेन।”
अल्बर्टो इस संबोधन से खुश होकर कहने लगा,“हां, मैं बोटमेन हूं। नीले समुद्र के वक्ष-स्थल
पर अनवरत दीर्घ यात्रा करना चाहता हूं।”
“अरे! तुमने तो अभी तक बताया नहीं कि तुम्हें बारिश में भीगना अच्छा
लगता है या नहीं?” मानो अल्बर्टो नीले समुद्र के
वक्ष स्थल से लौट आया हो।
“अहो, मैं तो भूल ही गई थी। गर्मी के दिनों में मुझे बारिश बहुत अच्छी
लगती है।मगर सर्दी के दिनों में जितना जल्दी हो, घर जाना अच्छा लगता है।”
हर्षा जानती थी कि अल्बर्टो को सूर्य की किरणें
प्यारी लगती है।प्राय: उसकी प्रत्येक बातों में उजाला और उत्ताप की इच्छा प्रकट होती है।
“जानती हो,हाना!
लेस्बो
में कभी-कभी बसंत ऋतु आने में देर हो जाती है।सौभाग्यवश मेरे घर में 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बना
रहता है, अन्यथा यहां रहना मुश्किल है।बसंत
ऋतु आते ही सब कुछ बदल जाता है। मन के ऊपर से मानो बर्फ की परत हट जाती
हो। प्रेम की भावना जागने लगती है। शायद यही कारण है कि ठंडी आबोहवा के कारण यूरोपियन दैहिक प्रेम में ज्यादा ठंडे है।”
हर्षा सहज में अल्बर्टो की बात नहीं
मान पाई। वह तर्क करने लगी,“कौन कहता है यूरोपियन ठंडे
मिजाज के होते हैं? फ्रांस की गलियों में जितनी वैश्याएँ
देखने को
मिलती है,क्या असत्य है? जेम्स जॉयस की ‘मल्ली
ब्लूम’ में जो वर्णन मिलता है,उसे क्या कहेंगे? मोपसां से लेकर फ्लेबार्ट तक के विवाहेत्तर संबंध क्या कम थे?”
हथियार डालते हुए अल्बर्टो ने उत्तर दिया,”हां, यह बात सत्य है। मगर मेरी
धारणा है कि गर्म देश के लोगों की तुलना में ठंडे देशों में प्रेम की
अभिव्यक्ति कुछ कम होती है।”
अल्बर्टो ने शारीरिक संबंध को प्रेम कहकर अपना काम चला दिया।इस बात को
लेकर उन दोनों में बहुत तर्क-वितर्क हो सकता था। मगर उस
समय अल्बर्टो
ने दूसरा प्रश्न पूछा,“क्या तुम सहजता से रो सकती हो?”
“ हां” हर्षा ने कहा। यद्यपि मेरा नाम आसुओं के विपरीत है
फिर भी मैं जल्दी से रो सकती हूं। स्त्रियाँ तो स्वभाव से कुछ ज्यादा ही
भावुक होती है।अपने दुख में रोती है और दूसरों के दुख में भी।
अल्बर्टो उसकी बात सुनकर हंसने लगा, “हां,लड़कियां कुछ नरम हृदय की होती
है। वे बड़ी दयालु होती है। मगर मैं अनजान लोगों के सामने नहीं रो पाता
हूं, जानती हो, हाना, मैं कभी-कभी सिनेमा या डॉक्यूमेंट्री फिल्म देखते-देखते रो देता हूं। लोग मेरी इस भावुकता
का मजाक उड़ाते हैं।”
प्रतिदिन इस प्रकार से साक्षात्कार होता रहा।दोनों अपना-अपना
समय निकाल कर आपस में एक दूसरे से मिलते रहे। जिस दिन जो प्रश्न करता था, फिर भी दोनों उन समान प्रश्नों के उत्तर देते थे। खेल का सबसे बड़ा नियम यही था।
जबकि यह खेल उनके बीच शुरू से नहीं चल
रहा था।शुरू-शुरू में वे दार्शनिक बातों पर इतना तर्क-वितर्क करते थे कि उनका सिर
चकराने लगता था। एक दिन हर्षा ने गुस्से से कहा, “हम क्या शास्त्रों की समीक्षा
करते रहेंगे? हमारा देश देश न होकर
दर्शनशास्त्र होकर रह गया है? हम जीवन की यथार्थता का चिंतन
किए बगैर हमेशा केवल नैतिकता के बारे में सोचते रहेंगे? तुम्हें भारत के बारे में जितनी जानकारी है,क्या मेरे बारे में इतनी जानकारी है? क्या तुम मेरे सुख-दुख,आनंद-विषाद के बारे में जानते हो? मेरी पसंद-नापसंद के बारे में
जानते हो? तुम जानते हो कि मैं दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी
नहीं रही फिर भी मुझे तुम वेद-वेदांत उपनिषद के सवाल पूछते रहते हो? क्या तुम्हें मेरे उत्तरों की सत्यता पर संदेह नहीं होता है ?”
अल्बर्टो ने हर्षा का ऐसा विकराल रूप कभी नहीं
देखा था।उसकी डांट-फटकार सुनकर एक छोटे बच्चे की तरह मुंह फुलाकर वह उसके पास बैठ गया।
उसका उदास चेहरा हर्षा को अच्छा नहीं लग रहा था। उस बेचारे निसंग
आदमी ने
विदेश की धरती पर कुछ पलों के सान्निध्य हेतु प्रश्न पूछे थे और तो कुछ
नहीं मांगा था। हर्षा को वह अपना मानता है, इसलिए तो इतने सवाल पूछता है, अन्यथा क्या उसके फैकल्टी में
सदस्यों की कमी है जो उसके प्रश्नों का कोई उत्तर न दे? कभी-कभी हर्षा सोचती है कि प्रश्न पूछना उसका एक मात्र
बहाना है। वह उससे नजदीकी
चाहता है, इसलिए प्रश्नोत्तरी उसकी
भूमिका मात्र है। अगर हर्षा उसे प्रश्न पूछने से इंकार करेगी तो अल्बर्टो को उसे बार-बार मिलने का मौका
नहीं मिलेगा।
तो क्या हर्षा
को अल्बर्टो
का संसर्ग पसंद नहीं है? क्या उसके
निसंग जीवन में खुशियाँ नहीं लाई है अल्बर्टो ने ? गुस्सा ठंडा होने के बाद हर्षा
ने धीमे
स्वर में
उससे पूछा, “अल्बर्टो, क्या तुम मुझसे नाराज हो? मेरे कहने का मतलब था कि हम एक दूसरे के बारे में
बिल्कुल नहीं जानते हैं?”
“नहीं,हाना, मैं
तुमसे नाराज नहीं हूँ। बल्कि मैं तुम्हारी बातों का मर्म समझ सकता हूं। मेरे बारे में जो कुछ तुम पूछना चाहती हो, बेधड़क पूछ सकती हो। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मैं कभी भी झूठ या मनगढ़ंत
उत्तर
नहीं दूंगा।”
“मुझे तुम पर विश्वास है,अल्बर्टो। इसलिए जब तुम मुझे
पुकारते हो,मैं तुम्हारे पास दौडी चली आती
हूँ। मुझे इस
बात पर भरोसा है कि तुम कभी भी मुझसे झूठ नहीं बोलोगे। मैं भी तुम्हें विश्वास
दिलाना चाहती हूं कि जो भी प्रश्न तुम पूछोगे,भले ही, व्यक्तिगत क्यों न हो, मैं तुम्हें सही-सही उत्तर
दूंगी।”
“ठीक है हाना, चलो हम एक खेल खेलते हैं।पुर्तगाल
का बहुत ही लोकप्रिय खेल। हम कुछ ऐसे प्रश्न तैयार करेंगे जिससे हमें एक दूसरे को
अच्छी तरह से जानने में सुविधा हो।क्या तुम सहमत हो?”
इस
खेल के भीतर, पता नहीं, किसी भी तरह से दर्शन-शास्त्र की बातें आ जाती
थी। निशब्द प्रेम चला आता था।दोनों को लड़ाता
था, फिर संबंध को निबिड कर देता था।उनके प्रश्नोत्तरी के खेल में कई
पैकेट स्नैक्स खत्म हो जाते थे। कई कप चाय पी ली जाती थी। देखते-देखते दोपहर के
आकाश में काली चादर चढ़ने लगती थी। उनका उस तरफ ध्यान नहीं
जाता था। आखिरकर
ऐसे भी कोई खास प्रश्न नहीं होते थे।जैसे अल्बर्टो पूछता था, तुम कहां पर रहना पसंद करोगी? समुद्र के किनारे? झील के किनारे?जंगल में? गांव में? नहीं तो छोटे शहर में? नगर,महाकाश या गुफा में?
बहुत बार अन्यमनस्क
भाव से पॉपकॉर्न के दानों से खेलते हुए अल्बर्टो के प्रश्नों से खीझ
कर उसकी तरफ दाने फेंकती हुई वह कहती, “कम से कम कुछ तो ढंग के प्रश्न पूछ लिया करो।”
फेंके हुए दानों को मुंह में डाल कर अल्बर्टो कहने लगता,“बताओ, तुम्हारी रुचि वाले सवाल बताओ।”
अल्बर्टो जंगली बंदर की तरह दिखाई देने लगता था।
सफ़ेद चेहरा,एकदम गहरे
लाल होठ, ललाट का सामने वाला हिस्सा पूरी तरह से खल्वाट,ठोड़ी पर हल्की-हल्की दाढ़ी,आंखों पर बड़े नंबर वाला चश्मा, दुबला-पतला शरीर, लंबे कद वाले इस आदमी और जंगली बंदर में जरूर
कुछ
समानता रही होगी। फिर भी अल्बर्टो को अपने आप पर गर्व है।कभी-कभी सीना फुलाकर गर्व से कहता,“आफ्टर ऑल आई एम लैटिन मेन” उसे केवल अपने लैटिन चेहरे पर
ही नहीं बल्कि लैटिन सभ्यता और संस्कृति पर भी गर्व था।
उसके लैटिन होने के दावे को खारिज करते
हुए हर्षा प्रश्न पूछने लगती,“अरे! तुम तो यूरोपियन हो।अपने
आपको यूरोपियन कहने की जगह लैटिनीयन कहना क्यों पसंद
करते हो?”
हर्षा के प्रश्न को गंभीरतापूर्वक लेते हुए वह इतिहास एवं पुरातत्व विज्ञान के
अनुभवों का उल्लेख करने लगता कि किस प्रकार उनके और स्पेन वालों के चेहरों पर छाप है और वे लोग उस मिट्टी से जुड़े हुए हैं, जिसका रक्त पूरी तरह से शुद्ध है,यह
इतिहास की बात हैं। अंत में निराश होकर वह कहने लगता कि पुर्तगाल यूरोप के सारे देशों
में सबसे ज्यादा गरीब देश है। गरीबी रेखा के नीचे अभी भी बहुत सारे लोग रह रहे हैं।
रास्तों में अभी भी भिखारी भीख मांगते हुए नजर आते हैं। आज भी उनके देश में
अनपढ़ों की संख्या कुछ कम नहीं है।
“फिर आप लोग भारत को भिखारियों का देश क्यों कहते हैं, बताओ अल्बर्टो?” अपनी उत्सुकता को दबा
नहीं सकी हर्षा।
“मैंने ऐसा कभी नहीं कहा।” जोर से अपना सिर हिलाते हुए वह
कहने लगा, “आई लव इंडिया। यू नो वेरी वेल
आई रेस्पेक्ट
इंडिया।”
हर्षा
जानती थी
कि अल्बर्टो की धारणा जिस भारत के बारे में हैं,वह आज का भारत नहीं है।आज से अढ़ाई-तीन
हजार साल
पुराना भारत है वह। जिसके बारे में उसने केवल किताबों में पढ़ा होगा।जिस समय जंगलों
में ऋषि-मुनि झोपड़ियों में रहकर शास्त्र-पुराणों की रचना करते थे।जब वातावरण में
ओम की ध्वनि का गुंजन हुआ करता था।जहां मायावी रावण के कपट से सीता का अपहरण हुआ
था। जहां राम ने अपनी प्रतिज्ञा के पालन के लिए चौदह वर्ष का वनवास भोगा
था। जहां
कृष्ण अवतरित हुए थे। जिस भारत में बुद्ध और शंकराचार्य के दर्शन विकसित हुए
थे। उस भारत को अल्बर्टो पसंद करता है।मगर आज का
भारत?
कई बार अल्बर्टो असहिष्णु और असंतुष्ट हो जाता था।रास्ते में
चलने वाले राहगीर उनकी तरफ घूर-घूर कर देखते थे तो वह कहता था, “दिल्ली के लोग बड़े ही अजीबोगरीब है। दूसरों के व्यक्तिगत जीवन
में हस्तक्षेप करने में,पता नहीं,उन्हें क्या मजा आता है?हमारे यूरोप में कभी भी कोई
किसी की निजी जिंदगी में दखलअंदाजी नहीं करता है।”
हर्षा को अल्बर्टो
का यह मंतव्य बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। वह कहने लगी, “आपको किसी भी तरह का सतही मंतव्य नहीं देना चाहिए।एक तरफ कहते हो कि तुम्हें मेरे देश से प्यार है
और दूसरी तरफ इस देश के लोगों की निंदा करते हो।मुझे आपकी यह बात अच्छी नहीं लगी। एक
गोरे आदमी के पास इस देश की लड़की क्यों बैठी है? यह देखकर एक पल के लिए कोई भी आकर्षित हो सकता है। इसका
मतलब यह तो नहीं है कि वह तुम्हारे व्यक्तिगत जीवन में झांक रहा है?”
ऐसे तर्क-वितर्कों की लड़ाई उन दोनों के बीच में
अक्सर होती ही रहती थी।यह कोई नई घटना नहीं थी। इसलिए एक बार अल्बर्टो ने उससे कहा,“हाना,मुझे तुम तीन वरदान दोगी?”
“वरदान?” हर्षा हंसते-हंसते लोट-पोट हो गई, “तुमने यह वरदान शब्द किससे सीखा ? अच्छा
मांगो, क्या वर मांग रहे हो? मैं शपथ खाती हूं कि आप जो भी वर मांगोगे, मैं तुम्हें देने के लिए तैयार हूं।”
“तुम मेरी बात सुन कर हंस रही हो, हाना? दशरथ ने
कैकेयी को क्या वर नहीं दिए थे? या यम ने सावित्री को नहीं दिए थे?”
अल्बर्टो की बातें
सुनकर हर्षा चकित हो गई। इस आदमी को बहुत कुछ जानकारी है।
अल्बर्टो कहने लगा, “पहला वर, मैं यूरोपीय हूं, इसलिए मेरे व्यवहार में निश्चय भिन्नता आएगी। मेरा अनुरोध है कि मेरी बातों से तुम्हारा
दिल दुखने पर भी उन बातों को गंभीरता से न लें।
दूसरा वर, मेरी अंग्रेजी तुम्हारी
अंग्रेजी की तरह अच्छी नहीं है,अतः कोई गलती हो भी जाए तो उसे
नजरअंदाज कर देना।
तीसरा वर, मैं थोड़ा शर्मीला स्वभाव का
हूं। कई बार अपने मन की बात खुलकर नहीं कर पाता हूं। ऐसी परिस्थिति में मुझे गलत
मत समझना।”
हर्षा सोचने लगी कि
ये किस तरह
के वर है! उसने एक जवान औरत के साथ घूमते रहने के बावजूद उसके प्यार,संसर्ग और शारीरिक सुख जैसे वर न मांगकर ऐसे अजीबो-गरीब वर मांगे हैं।वास्तव में अल्बर्टो
बहुत अच्छा इंसान है। उसके पास रहने पर कभी भी हर्षा के मन में असुरक्षा की भावना
नहीं आती थी।कभी भी आज तक शब्दों से उसने आघात नहीं किया।
हर्षा ने कहा, “तुम निश्चिंत रहो। मैं वायदा
करती हूं कि ये तीनों बातें कभी भी नहीं भूलूंगी।”
हर्षा को हिलाते हुए अल्बर्टो पूछने लगा,“कहां खो गई हो,हाना?तुम कहां रहना पसंद करोगी? समुद्र-तट के
किनारे? झील के
पास?जंगल के भीतर? गांव के अंदर? नहीं तो छोटे से शहर में, नगर या महाकाश में?या गुफा में?”
हर्षा
सपनों की दुनिया से लौट आई और वह बच्चों की तरह खेल खेलने में शामिल
हो गई।वह कहने
लगी, “मैं अपनी रुचि के अनुसार क्रमशः
उन्हें सजा कर कह देती हूं। इससे आप अंदाज लगा लेना कि मेरी पसंद क्या है? अच्छा,आप मेरी पसंद से मेरे व्यक्तित्व के बारे में
जानने की कोशिश तो नहीं कर रहे हो? तुम्हें जो भी सोचना है, सोचो। मैं तो जंगल में रहना सबसे ज्यादा पसंद करूंगी।चारों तरफ
जंगल हो,मगर उसके अंदर मेरा घर सुरक्षित
होना चाहिए।उसके बाद मैं झील के पास रहना पसंद करूंगी।उसके बाद नगर,समुद्र-तट,गांव के बाद महाकाश और अंत में गुफा मेरी
पसंद है।गुफा के
बारे में सोचने-मात्र से अपने आपको आदि मानव जैसा नहीं लगता? महाकाश के बारे में सोचने से
अपने आपको अपार्थिव अनुभव होने लगता है। जैसे शरीर न होकर केवल आत्मा हो, एक भटकती आत्मा। जानते हो अल्बर्टो, इस बारे में हमारा हिंदू दर्शन क्या कहता है? एक जीव बारंबार
अलग-अलग योनियों
में जन्म लेता है। प्रत्येक मृत्यु के बाद
दूसरा जन्म। अपने पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर नया जन्म निर्धारित होता है। आत्मा
अमर है, उसकी मृत्यु नहीं होती। एक शरीर को
त्याग कर दूसरे शरीर को धारण करने में आत्मा को भिन्न-भिन्न स्तरों पर विचरण करना
पड़ता है।
अल्बर्टो ने सिर हिलाकर हामी भरी और कहने लगा, “हां, मैं जानता हूं। हिंदुओं की तरह बौद्ध धर्म वाले भी पुनर्जन्म में
विश्वास रखते हैं।गौतम बुद्ध को भी बार-बार जन्म लेने पड़ते हैं, परंतु बौद्ध हिंदू-धर्म की तरह आत्मा-वात्मा में विश्वास नहीं रखता है।
मुंडक उपनिषद् कभी पढ़ी हो, हाना?”
“नहीं, मैंने नहीं पढ़ी, अल्बर्टो।”
“मुंडक उपनिषद् के अनुसार जिस तरह सारथी रथ चलाता है, आत्मा भी शरीर रूपी रथ को चलाती है। मगर बुद्ध ने इस सिद्धांत का
विरोध किया।उनके मतानुसार आपके रथ का पहिया टूट जाने पर क्या सारथी उसे चला
पाएगा? इसलिए उन्होंने सारथी को
ज्यादा महत्व नहीं दिया।”
हर्षा ने पूछा,“जब बौद्ध-धर्म पुनर्जन्म में
विश्वास करता है तो फिर पुनर्जन्म होता किसका है, अल्बर्टो? यद्यपि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति यहाँ पर हुई, मगर मुझे बौद्ध धर्म के बारे में विशेष जानकारी नहीं है। क्या
तुम्हें पता है,अल्बर्टो, अगर आत्मा नहीं है तो कौन बार-बार इस शरीर को बदलता है?”
“हां, मैं जानता हूं।” उसने उत्तर
दिया,“जब एक जीव की मृत्यु होती है,तब वह अपनी तृष्णा के अनुरूप जन्म लेता है।जब नर और मादा संभोग
करते हैं तो वह जीव शुक्राणु के रूप में गर्भ में प्रवेश करता है।”
“क्या यह आत्मा के तत्व नहीं है?”
“ नहीं,नहीं, यह आत्मा के तत्व नहीं है।यह तो विज्ञान, अविद्या की तरह पंचतत्व के अंश है।”
“छोड़ो, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा
है।” हर्षा
ने कहा,“फिर से हम उसी बोरिंग दर्शनशास्त्र की तरफ आ गए न? हम तो तुम्हारा ओलोंदाज खेल खेल रहे थे।”
अल्बर्टो दर्शनशास्त्र का
विजिटिंग प्रोफेसर था। प्राच्य और पाश्चात्य दर्शनशास्त्र का वह प्रकांड पंडित था। हर्षा
को लगने लगा कि अल्बर्टो को भारतीय दर्शन की जितनी जानकारी है,उसका एक रत्ती भर भी उसे मालूम नहीं है।फिलहाल
अल्बर्टो
से मुलाकत होने पर दर्शनशास्त्र पर उसने आलोचना करना शुरु किया है।कॉलेज
में पढ़ते समय वैकल्पिक विषयों में उसने न तो तर्क-शास्त्र
लिया था
और नहीं दर्शनशास्त्र। वह तो अंग्रेजी साहित्य की विद्यार्थी थी। दर्शनशास्त्र उसकी समझ से परे था। हम
लोग दादाजी को बापा कहकर बुलाते थे। पुरी के ब्राह्मण परिवार में यही चलन है कि
पिताजी को बापा न कहकर दादाजी को बापा कहते हैं। वह दादाजी को पिताजी कहकर बुलाती थी।मुक्ति-मंडप में पंडित होने
के कारण उनकी लोगों के
साथ बहस होती थी। घर में कम से कम चालीस-पचास पुराणों की पोथियाँ पड़ी
होगी। दादाजी
की तरह अल्बर्टो को तर्क करना अच्छा लगता था।दादाजी अगर जिंदा होते तो इन दोनों की जोड़ी खूब जमती।
मगर क्या
वह उसे
अपने घर में आने की अनुमति देते?
अल्बर्टो ने कहा, “हाना, मैं
तुम्हारी बातों से दुखी हूं।”
“क्यों, मैंने तो तुम्हें दुख
देने जैसी कोई भी
बात नहीं कही।”
“याद करो, तुमने क्या कहा? तुमने कहा नहीं कि दर्शनशास्त्र बोरिंग है? फिर तुमने इसे ओलोंदाज खेल भी कहा?”
अपने हाथों से अपने कानों को पकड़ते हुए हर्षा ने कहा, “सॉरी, तुम्हारा दिल दुखाना मेरा
उद्देश्य नहीं था।सच कहूं तो मैंने दर्शनशास्त्र को बोरिंग नहीं कहा। सही बात तो
यह है कि हम खेल-खेलते फिर से उसी अध्याय पर पहुंच गए, इसलिए मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने उसे बोरिंग कहा। मगर
मैं यह
समझ नहीं पाई कि पुर्तगाली खेल कहने पर तुम नाराज क्यों
हो गए?”
“एक बात कहूं कि हम ओलोंदाज लोग नहीं है,हाना। मैं पुर्तगाली हूं और
पुर्तगाल में एक-दूसरे को जानने के लिए प्रश्नोत्तरी का यह खेल खेला जाता है।”
“हां, हम तुम्हें ओलोंदाज
कहते हैं।जानते हो,अल्बर्टो, तुम्हारे पूर्वजों का हमारे ओड़िशा के साथ सामुद्रिक व्यापार होता
था।आज भी बालासोर के बलरामगड़ी में ओलोंदाज कॉलोनी मौजूद है।”
“तुम गलत कहती हो,हाना!
हालैंड
के निवासियों को ओलोंदाज कहा जाता है। ओलोंदाज
शब्द की उत्पत्ति हॉलेंड से हुई है। हां, कुछ समय के लिए पुर्तगाल हॉलेंड के अधीन था, इसलिए पुर्तगाली लोग तुम्हारे राज्य में आकर अपना परिचय ओलोंदाज
के नाम से देते रहे होंगे। यह
हो सकता है।”
“हे भगवान! तुम्हारे साथ बातचीत करना बहुत ही मुश्किल है। चलो, हम अपने खेल की ओर वापस लौटते हैं। हां उत्तर देने की बारी तुम्हारी
थी न? कहो, तुम्हें कहां रहना पसंद है, गुफा में न?” कहते-कहते हर्षा हंसने लगी।
“ तुम यह क्या कह रही हो? गुफा में कौन रहना चाहेगा? तुम तो जानती हो हाना झील का
किनारा मेरी पसंदीदा जगह है।उसके बाद समुद्र, उसके बाद छोटा
शहर,फिर नगर, गांव होने पर भी चलेगा। फिर
जंगल, फिर महाकाश और सबके बाद में गुफा।जानती हो, हाना! मेरा जन्म हुआ था अंगारा बेसिन के पास में। मेरा घर टागोस नदी के मुहाने पर था। बहुत
छोटी जगह थी यह कोक्सियास। जानती हो,हाना! कोक्सियास नाम की दो जगहें इस धरती पर है। एक ब्राजील में तो दूसरी पुर्तगाल में। ब्राजील
का कोक्सियास एक बड़ा शहर है, मगर मेरा गांव बहुत छोटा है। फिर
भी बहुत प्रसिद्ध है। कोक्सियास के पास वेलेम से वास्कोडिगामा ने अपनी जल-यात्रा
शुरु की थी। मगर दुख की बात है मेरे गांव में सिनेमा हॉल नहीं है और नहीं शॉपिंग
सेंटर। मेरे गांव से आधा किलोमीटर दूर पासोड़ी आरकस गांव है। वहां मगर सब कुछ है।हमें
जो कुछ खरीदना होता है, फोन कर देने से घर पर दुकानदार
पहुंचा जाता है।”
अल्बर्टो अपने गांव की कहानी इतनी तन्मयता से सुना रहा था मानो
वह टागोस नदी के
मुहाने पर बैठा हुआ हो।
उस दिन अल्बर्टो के प्रश्न पूछने की बारी थी।पता नहीं, कितने सपने संजोए रखे होंगे उसने! सारे प्रश्न नहीं पूछने तक वह छोड़ने
वाला नहीं था। हर्षा भी
उसे रोक नहीं पाई, बल्कि उसका आनंद लेने लगी।बचपन में जैसे वे लोग झूठ-मूठ
खेल खेलते थे, वैसा ही यह खेल था। क्या वास्तव में सब कुछ खेला
जा सकता है इस खेल में?
अल्बर्टो ने पूछा, “जीवन में सबसे ज्यादा दयनीय
अवस्था
क्या होती है,हाना?”
जीवन में अनेक दयनीय अवस्थाओं से गुजर चुकी थी वह। मगर
क्या एक अनजान आदमी के सामने उन्हें बताया जा सकता है?
“मुझे तुम्हारा प्रश्न समझ में नहीं आया,अल्बर्टो।”
“ इसमें नहीं समझने की बात क्या है? मुझे कोई ऐसे प्रश्न का उत्तर देने के लिए कहे तो
मैं कहूँगा कि यदि कोई
तुम्हें प्यार नहीं करता है या तुम्हारा प्यार किसी को समझ
में नहीं आता है तो दोनों में कौनसी अवस्था दयनीय होगी?”
“मतलब?” हर्षा अल्बर्टो के चेहरे की
तरफ देखने लगी।क्या कहना चाहता है अल्बर्टो? वह अप्रत्यक्ष रुप से कुछ
संदेश देना चाहता है ? क्या हर्षा के प्रति अपने प्रेम
को तो नहीं दर्शाना चाहता वह ? अचानक हर्षा को अल्बर्टो द्वारा मांगे गए तीसरे वर की बात याद आ गई। “मैं
थोड़ा शर्मीला हूं।कई बार अपने मन की बात खुलकर नहीं कह पाता हूं।”, हो सकता है अल्बर्टो किसी और से प्यार करता होगा,मगर उसके सामने अपने मन की बात रख नहीं पाता होगा?
"मैं माफी चाहता हूँ, वास्तव में मुझे
खेद है, हाना।" हर्षा
के हाथ को कसकर पकड़ते हुए वह कहने लगा, " मैं तुम्हें चोट पहुँचाना नहीं चाहता था।तुमने
जिस तरह से अपना हाथ ऊपर उठाया था, उस पर मुझे हंसी आ गई। आई एम सॉरी, आई एम वेरी सॉरी।"
" ठीक है, अब मेरा हाथ तो
छोड़ दीजिए।तुम किससे डरते हो, अल्बर्टो? "
"क्रूर लोग, हाना, मैं क्रूर लोगों
से ज्यादा डरता हूं।" अल्बर्टो के पास एक्स-रे जैसी आँखें थीं, जिससे वह किसी भी
व्यक्ति के मन को पढ़ सकता था। उसे हर्षा के मन की बात कैसे पता चल गई ? वह अल्बर्टो के
उत्तर से चौंक गई थी। वह कहने लगी, " ठीक कह रहे हो अल्बर्टो, क्रूर लोगों से डरना चाहिए। "
सिर हिलाते-हिलाते अल्बर्टो ने एक और सवाल
पूछ लिया, "तुम्हें किससे
शर्म आती हैं?"
"हे, अल्बर्टो, तुम्हारे प्रश्न खत्म ही नहीं हो रहे हैं? क्या तुम इन
सवालों पूछकर मेरे व्यक्तित्व का आकलन कर रहे हो? "
"किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का
अनुमान लगाने में क्या समस्या है? तुम भी तो मेरे उत्तरों से मेरी प्रकृति के बारे
में जान सकती हो। इसके अलावा, तुम्हें इस प्रश्नोंत्तरी खेल से विव्रत होने की
जरूरत नहीं है, क्योंकि महाभारत
में प्रश्न-उत्तर वाले कई अध्याय नहीं हैं? ‘युधिष्ठिर-यक्ष
संवाद', में यक्ष ने
युधिष्ठिर से प्रश्न नहीं पूछे?”
हर्षा ने बड़बड़ाते हुए कहा, "यह गोरा पंडित
सब-कुछ जानता है।"
" क्या कहा ?"
"मैंने तुम्हें बुद्धिजीवी कहा।अच्छा,अल्बर्टो, पहले तुम बताओ
तुम्हें किससे लज्जा आती है?'
" जानती हो, हाना, बुद्ध ने एक बार
कहा था कि हमेशा स्वयं को प्राज्ञ बनाए रखना संभव नहीं है, क्योंकि हम अपने
दोषों और कमजोरियों को अच्छी तरह देख सकते हैं।इसके अलावा, हम खुद के प्रशंसक
बन जाते हैं। भले ही, हम जानते हैं, हम एक-न-एक दिन सब-कुछ पीछे छोड़ देते हैं, चाहे वह शरीर हो या मन हो। क्या ऐसा नहीं होता है? लेकिन मैं अपने
जीवन में एक चीज़ को नहीं छोड़ सका, तुम्हें पता है कि वह चीज क्या है ? वह है मेरी शर्मीली प्रकृति। यही कारण है कि मैंने
अध्यापक बनने का फैसला किया।
अध्यापक होने पर मुझे मंच
से हरदिन भाषण देना पड़ता है। मैंने अठारह साल की उम्र में अध्यापक की नौकरी शुरू की। फिर भी, क्या मैं अपनी शर्मीली प्रकृति को छोड़ पाया? और शर्मीली
प्रकृति के कारण मैं दूसरों से मिल नहीं पाता था, मुझे बहुत शर्म आती थी। "
जैसे मन हल्का होने के बाद चेतना शून्य हो
जाती है, वैसे ही अल्बर्टो
ने पीठ पर अपने दोनों हाथों को रखकर दीर्घश्वास लेते हुए ऊपर की ओर देखने लगा।
"अरे क्या हुआ ? दीर्घश्वास क्यों ? " हर्षा ने पूछा।
"नहीं, नहीं, कुछ भी नहीं।" चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए अल्बर्टो ने कहा, "तुमने बताया
नहीं कि किस परिस्थिति में तुम्हें शर्म आती है ?"
"अरे, मैं तो लड़की हूँ, हर चीज में
मुझे शर्म लगती है।अगर कोई मेरी तरफ लगातार देखता है तो मुझे लाज आती है। कोई मेरी
तरफ इशारें करता है, तो शर्म आती है। लेकिन क्या आप जानते हो मुझे किस
चीज पर सबसे ज्यादा शर्म आती है ? क्रोध से ?अगर कभी आपे से बाहर होकर मैं कुछ अंट-शंट बोलती हूं,तो अगले ही पल में
मैं खुद को संकुचित और लज्जित अनुभव करने लगती
हूं। "
"वंडरफूल!," अल्बर्टो ने कहा
"क्या मैं आज का अंतिम सवाल पूछ सकता हूं, हाना?"
"ओह, बच गई !"
"क्या मैं तुम्हें परेशान कर
रहा हूं? मेरी धारणा यह है कि तुम प्रश्नोत्तरी खेल का आनंद
ले रही हो। आनंद लेने के अतिरिक्त, हमें एक-दूसरे को जानने का मौका मिल रहा है।
"
"ठीक है, पूछो, पूछो,जो भी तुम्हें
पसंद हो। मैंने तुम्हें चिढ़ाने के लिए नहीं कहा था। वैसे भी इस खेल के माध्यम से बहुत कुछ तुम्हारे
बारे में जान चुकी हूँ। "
हर्षा की यह बात सुनकर अल्बर्टो बहुत
उत्साहित हो गया था। कहने लगा, "हाना, तुम अपने को शिव-भक्त या शैव क्यों मानती हो?"
"तुम बताओ, तुम बौद्ध क्यों हो?"
"क्योंकि मैं मोक्ष चाहता हूं। प्रेम
और ध्यान के मार्ग से मैं अंतिम लक्ष्य तक पहुंचना चाहता हूं, जिसे तुम्हारे यहाँ
'मोक्ष' कहते हैं। "
"ओह, मेरे गोरे 'संन्यासी'?"
"क्या तुम मुझे चिढ़ा रही हो? क्या कहा, फिर कहो तो। मैं
तुम्हारी भाषा समझ नहीं पाया । "
"मैंने तुम्हें ‘व्हाइट मांक’ कहा, नहीं, नहीं, मैंने तुम्हें 'संन्यासी' कहा था।मैंने
तुम्हें चिढ़ाया नहीं।"
अल्बर्टो उत्तर से संतुष्ट नहीं था। शायद कभी-कभी
जब आप भाषा नहीं समझते हो, तो चेहरे की भाव-भंगिमा यह बता देती है कि कोई
तारीफ कर रहा है या व्यंग्य।अल्बर्टो के चेहरे से पता चल रहा था कि वह खुश नहीं
था।फिर भी कहने लगा: "हाना, अब तुम्हारी बारी है, बताओ तुम शैव क्यों
हो?"
"पता नहीं क्यों,मेरा विश्वास है कि
शिव निरासक्त, निर्विकार पुरुष
है। एक योगी की तरह। जानते हो, अल्बर्टो, हमारे हिंदू-शास्त्रों में भगवान शिव को
बोहेमियान के रूप में दर्शाया गया है, भले ही, वह सांसारिक है और उनके बाल-बच्चे हैं।"
अल्बर्टो खिलखिलाकर हंसने लगा,“वास्तव में तुमने
बड़ी कौतूहल भरी बात कही। भारत में ' एंथ्रोपोमोर्फिक ' में बहुत विश्वास है.”
"एंथ्रोपोमोर्फिक? यह क्या है ?"
"ईश्वर की मनुष्य के रूप में कल्पना
कर उसके मानवीय रूपों और गुणों में सजाना।
खैर,छोड़ो यह बात!
विश्वास बहुत बड़ी चीज है।तुम शिव में क्यों विश्वास करती हो, यह मुझे
बताओ।"
"शिव के पास कोई घर नहीं है। कभी-कभी
वह हिमालय के बर्फ से ढके पहाड़ों पर बैठते हैं,तो कभी-कभी श्मशान में रहते हैं।कपड़े कहने से
केवल बाघ की खाल पहनना है। गहनों के बदले गर्दन में साँप। प्राय: ध्यान-मग्न रहते
है।अनेक लोग उन्हें दयालु भगवान मानते हैं। जो कोई चीज उनसे मांगता है, तो वे उसे तुरंत
वरदान दे देते है। उनकी एक खूबसूरत कहानी सुनाऊँगी, जिससे तुम उनके निर्विकार गुणों के बारे में समझ
सको।" प्रवचन देने की भांति हर्षा ने भावुकता से भगवान शिव के गुणों के बारे
में बोलना शुरू किया।
"वास्तव में ? फिर मुझे वह कहानी
सुनाओ।" अल्बर्टो एक छोटे बच्चे की तरह कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगा।
"भारत के वेद-पुराणों के बारे में
तुम बहुत कुछ जानते हो, यह कहानी भी पहले से सुनी होगी?"
"कौनसी कहानी, मुझे बताओ ?"
"समुद्र-मंथन की।"
"समुद्र-मंथन? वह क्या है ? क्या यह महाभारत की कहानी है? यदि हां, तो मैं इसे नहीं जानता हूं? "
"नहीं, यह कहानी भागवत की है। देवताओं और राक्षसों के बीच
लड़ाई की सबसे दिलचस्प कहानी है। "
"तब सुनाओ, हाना।"
अल्बर्टो के साथ मुलाक़ात करने के दिन से हर्षा
बहुत अच्छी तरह जान चुकी थी कि पुराणों की कहानियों,आख्यान-उपाख्यानों
को सुनने में उसकी बहुत रुचि है।कहानियों को सुनते समय वह एक छोटा बच्चा बन जाता
था, लेकिन दार्शनिक
बात आने पर तर्क करने के लिए तैयार हो जाता था। कहने लगता था कि वह तर्क के बिना
कुछ भी स्वीकार नहीं कर सकता। हर्षा का लगता था कि दर्शन के क्षेत्र में वह
थोड़ा अहंकारी है।
“चलिए घूमकर आते हैं, एक जगह पर
बैठे-बैठे अच्छा नहीं लग रहा है। टहलते-टहलते मैं तुम्हें पूरी कहानी सुना दूँगी। क्या
दुर्वासा का नाम सुना है,अल्बर्टों? "
"वह ऋषि जो अपने क्रोध के लिए
विख्यात थे ?"
"हाँ, सही कह रहे हो।एक बार उनकी स्वर्ग के राजा इंद्र से रास्ते में मुलाक़ात हुई। उन्होंने
इंद्र को फूलों की माला दी। इंद्र ने उस माला को अपने हाथी के गले में डाल दिया।
हाथी ने अपनी सूँड से उस माला को बहुत दूर फेंक दिया। यह देखकर दुर्वासा ने
क्रोधित होकर उसे अभिशाप दिया, ' तुम्हारा इतना घमंड कि तुमने मेरे द्वारा दिए गए
हार की अवमानना की ? मैं तुम्हें अभिशाप देता हूँ कि तुम्हारे अहंकार का प्रतिफल तुम्हें
वहुत जल्दी ही मिलेगा।राक्षसों के साथ तुम्हारा घोर युद्ध होगा।
और सच में राक्षस देवताओं के खिलाफ भंयकर युद्ध की तैयारी करने लगे। इंद्र का सिंहासन हिलने लगा। उनके बीच एक घोर लड़ाई हुई।देवतागण राक्षसों का सामना करने में सक्षम नहीं थे। दूसरी ओर, राक्षसों की नृशंस गतिविधियों से
स्वर्ग पूरी तरह से तबाह हो गया। भयभीत देवता मदद के लिए भगवान विष्णु के शरण में गए। तब तक कई देवता मारे जा चुके थे। भगवान विष्णु ने सुझाव दिया कि युद्ध जीतने के लिए अमृतपान कर देवताओं को अमर होना चाहिए। अन्यथा थोड़े ही समय में राक्षसों का स्वर्ग पर अधिकार
होगा। लेकिन अमृत मिलेगा पाताल में,समुद्र में।उन्होंने देवताओं से
राक्षसों के पास जाकर अमृत-प्रलोभन हेतु समुद्र-मंथन के बारे में प्रस्ताव रखने के लिए
सुझाव दिया। इंद्र ने राक्षसों को अमृत का लालच देकर उन्हें
समुद्र-मंथन करने में सहयोग करने के लिए राजी किया। राक्षस अमर होने की आशा में इंद्र के प्रस्ताव में सहमत
हुए। राक्षस वैसे भी बहुत
शक्तिशाली और धन-संपत्ति में समृद्ध थे।उनके पास केवल एक चीज का अभाव था तो वह थी चिरकाल की शक्ति। क्षीर-सागर मंथन के लिए तय किया गया और मंदार पर्वत को मथनी के रूप में। भगवान
विष्णु कछुआ बनकर खुद समुद्र में छुप गए।उनके ऊपर मथनी के रूप
में मंदार पर्वत रखा गया। वासुकी नाग को रस्सी की तरह मंदार पर्वत पर लपेटा गया ।एक
तरफ देवताओं और दूसरे पर से राक्षसों द्वारा मंथन किया जाना था, देवता 'वासुकी' की पूंछ की तरफ और राक्षस उसके मुंह की तरफ गए। दोनों ने मंथन की
प्रक्रिया शुरू की।समुद्र से अमृत के स्थान पर जहर बाहर निकला, कोई भी इसे छूना नहीं चाहता था।अमरत्व की बजाय
मृत्यु कौन चाहता है? भगवान शिव निर्विकार पुरुष थे। उन्होने देखा कि अगर इस जहर का पान नहीं किया गया तो
पूरी दुनिया नष्ट हो जाएगी। बिना कुछ विचार किए
उन्होंने सारा जहर पी लिया,इस वजह सेउनका कंठ नीला
हो गया। "
“ वाह! बहुत सुंदर कहानी सुनाई,हाना” अल्बर्टों ने कहा।
"लगभग 70 प्रतिशत भारतीय लोग इस कहानी को जानते हैं। उसके बाद समुद्र
से निकली कामधेनु,उच्चैश्रवा अश्व,ऐरावत हस्ती,कौस्तुभ मणि और फिर कल्पवृक्ष। क्या आप जानते हो कल्पवृक्ष क्या है? कल्पवृक्ष के पास जो भी इच्छा करोगे, वह आपको मिलेगा।
फिर समुद्र से देवी लक्ष्मी बाहर आई। भगवान विष्णु ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप
में स्वीकार किया। समुद्र से अप्सराएँ बाहर आईं। "
"तुम्हारी तरह", अल्बर्टो ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो मैं कहानी सुनाना बंद करती हूँ।"
"अरे गुस्सा क्यों करती हो? तुम समुद्र-तट की लड़की हो इसलिए पूछ लिया। "
"शरारत बंद करो,ऊपर से साधारण कहानी
या फेंटेंसी लगने वाली कहानी से मैं अमृत कैसे निकालूँगी?"
"ऐसा है क्या? तो देर क्यों ? "
"अप्सराओं के बाद बाहर निकली शराब। अंत में धन्वन्तरी
निकले अमृत-पात्र साथ लेकर। देवताओं ने शुरु से ही राक्षसों के साथ छल-कपट आरंभ
किया। वे बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि अगर अमृत राक्षसों के हाथों में लग गया, तो उनकी योजना कभी सफल नहीं होगी। इसलिए उन्होंने अमृत-पात्र को राक्षसों
से दूर रखा, कभी स्वर्ग में, कभी धरती पर और कभी पाताल में। कहीं
राक्षसों को पता न चल जाए। लेकिन इस चीज को लंबे समय तक छिपाया नहीं जा सका। भगवान
विष्णु जानते थे कि अमृत के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध अवश्य होगा, इसलिए वह अमृत-पात्र के साथ मोहिनी रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने अमृत पान
के लिए दोनों देवताओं और राक्षसों को अलग-अलग पंक्तियों में
बैठने के लिए कहा। लेकिन मोहिनी की कटाक्ष और मनोरम
मुस्कान देखकर राक्षस मोहित हो गए। वे अमृत के बजाय मोहिनी हासिल करने में
अधिक रुचि दिखाने लगे। यह अवसर देखकर भगवान विष्णु 'मोहिनी' के भेष में देवताओं को अमृत देने लगे ।
"अद्भुत, बहुत अच्छी कहानी
सुनाई, हाना, ग्रीक महाकाव्यों में इस तरह की अनेक
कहानियाँ हैं। "
"क्या तुम केवल कहानी सुनकर संतुष्ट होना चाहते
हो या इसके अंतर्निहित सार को जानने में भी रुचि रखते हो?"
"बेशक, मैं इसके आंतरिक
अर्थ को जानना चाहता हूं।"
"तो सुनो। देवता और राक्षस क्रमशः अच्छे और बुरे
के प्रतीक हैं। साधक अच्छे और बुरे दोनों रास्तों से गुजरते हुए आगे बढ़ते हैं, जिसे आप दर्शन की भाषा में ज्ञान और अज्ञान कहते हैं। क्षीर-सागर मनुष्य का
मन है और समुद्र की तरंगें मन की चेतना हैं। क्या आप जानते हैं कि मंदार पर्वत
किसका प्रतीक है? 'मंदार' का मतलब एकाग्रता है। जिस तरह अपनी खोल
के अंदर छिपकर कछुआ दुनिया से विच्छिन्न होता है, वैसे ही एक साधक को
दुनियादारी से दूर रहना चाहिए। वासुकी नाग हमारी इच्छा है। इच्छाओं का अतिभोग करने
से ज़हर निकलता है। मोहिनी एक अहंकारी आदमी के लगाव और आकांक्षाओं का प्रतीक है।
फिर धनवंतरी किसका प्रतीक है? यह अमरत्व या मुक्ति की खोज है। "
"वंडरफूल, माय गर्ल," कहते हुए अल्बर्टो ने हर्षा को कमर से पकड़कर उसके माथे को
चूमा। "मुझे तुम पर गर्व है, हाना, तुम मेरे जीवन की
सबसे अनमोल वस्तु हो, मुझसे वादा करो, तुम कभी भी मुझे छोड़कर नहीं जाओगी,हाना। "
उस समय हर्षा लज्जा से पानी-पानी हो गई। शर्म से उसकी
नाक थरथरा रही थी। अल्बर्टो ने सार्वजनिक स्थान पर उसका चुंबन लिया था। लोग क्या
सोच रहे होंगे, जिन्होंने यह दृश्य देखा होगा ! पता नहीं क्यों, उसकी आँखों में आँसू आ गए। छाती में वह उत्तेजना महसूस करने लगी। सिहरन
से सारे रोम खड़े हो गए थे उसके। "यह तुम्हारा पुर्तगाल नहीं है।मेरी कमर से
अपना हाथ बाहर निकालो, मैं बिल्कुल सहज महसूस नहीं कर रही हूं।"
कहते ही अल्बर्टो ने अपना हाथ उसकी कमर से बाहर निकाल
दिया।
उसने आश्चर्य से पूछा "क्या मुझसे कुछ गलती हो
गई ?"
हर्षा अभी भी अपनी कमर पर उसके हाथ का स्पर्श अनुभव
कर रही थी। क्या अल्बर्टों उसकी बात से नाराज हो गया? क्या अपमानित अनुभव कर रहा है ? फिर वह चुप क्यों है ? उसका मन हो रहा था
यह कहने के लिए कि वह भी अपने जीवन में उसके जैसा एक साथी चाहती थी। जिसे पाकर वह
अपना खाना-पीना सब भूल जाती।भूल जाती, दिन-रात, शोक-दुख। नहीं, हर्षा अपने दिल की बात नहीं कह पाई।
हडबड़ाकर उसने अल्बर्टो का हाथ पकड़कर कहा: "क्या अब हम घर चलें?" दोनों चुपचाप पार्क के गेट की तरफ़ चले गए।
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